-सीबीआई को जांच देने में किस पेपर के लीक होने का इंतजार है?

जयपुर(हरीश गुप्ता)। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा कह चुके हैं कि जरूरत पड़ी तो पेपर लीक की जांच सीबीआई को सौंपी जाएगी। सवाल यह है की जरूरत की परिभाषा क्या है? क्या आग लगने के बाद कुआं खोदना शुरू होगा? बेरोजगारों को जरूरत आज है, फिर इंतजार कैसा? क्या सरकार पेपर लीक के असल दोषी, जो अभी तक बचे हुए हैं, उन्हें बचाने की कोशिश कर रही है?
गौरतलब है युवाओं की मांग को देखते हुए हमने कई बार पेपर लीक की जांच सीबीआई से करवाने के बारे में लिखा। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने करीब सवा महीने पहले कहा था कि जरूरत पड़ी तो पेपर लीक की जांच सीबीआई को सौंपी जाएगी। गौरतलब यह भी है कि एडीजी विजय कुमार सिंह की देखरेख में गठित एसआईटी अभी इसकी जांच में जुटी हुई है। सवाल वही एसआईटी में कितने लोग हैं जो आरपीएससी में इंटरव्यू लेने गए? वह क्या जांच करेंगे?
सूत्रों की मानें तो चर्चाएं जोरों पर हैं, ‘सत्ता में आने से पहले भाजपा के किरोड़ी लाल मीणा, राजेंद्र राठौड़ व सतीश पूनिया ने युवाओं के लिए कितनी मशक्कत की।’ ‘…उनकी मेहनत का नतीजा 70 लाख युवा व उनके परिजन भाजपा के हुए।’ रीट के पेपर को लेकर आ रहे ट्रक का एक्सीडेंट हो गया था, उसमें चालक की मौत हो गई थी, तब किरोड़ी ‘बाबा’ मुआवजे की मांग को लेकर राजेंद्र गुढ़ा के सरकारी आवास पर बैठे। युवाओं की मांग को लेकर सड़क पर बैठे। उदयपुर में चिंतन शिविर में जाने से पुलिस ने उन्हें रोका। चौमूं में पुलिस से मशक्कत में उनके कपड़े फट गए थे।
इतना ही नहीं, पेपर लीक मामले को लेकर भाजपा जब मुख्यमंत्री आवास को घेरने जा रही थी, तब ‘बाबा’, राजेंद्र राठौड़ और सतीश पूनिया समेत कई नेताओं को पानी की बौछारों से भिगोया गया। दीया कुमारी ने महिलाओं के साथ प्रदर्शन किया था। भाजपा की इतनी मेहनत के बाद युवाओं का कांग्रेस से मोहभंग हुआ। ऐसे में मुख्यमंत्री जी युवाओं का प्रश्न है, ‘जरूरत की परिभाषा क्या है? सुरेश ढाका को लाना तो मोदी की गारंटी थी। प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘चाहे पाताल से लाएं, ढाका को जल्द लाएंगे।’ क्या एसआईटी के भरोसे हो जाएगी मोदी की गारंटी पूरी? अभी तक की जांच में लगभग वही लोग हैं, जिन्होंने गोपाल के सावत को पूछताछ कर छोड़ दिया था।
सूत्रों की मानें तो चर्चाएं जोरों पर हैं, ‘पेपर कैंसिल होने से कितने बच्चों ने सुसाइड कर लिया। कितनों की शादियां कैंसिल हो गई।’ ‘मुख्यमंत्रीजी आखिर ‘जरूरत’ के लिए पीले चावल बांटने पड़ेंगे क्या?’ आज तक आरपीएससी मुखिया से किसी ने पूछताछ नहीं की, जबकि आरपीएससी की हैंडबुक को मानें तो क्लियर हो जाएगा कि पेपर सेट होने से बंटने तक कौन जिम्मेवार होता है। खुले लिफाफे क्यों लिए गए? खुले लिफाफे स्वीकार करना युवाओं के सपनों पर ‘खंजर’ मारने के बराबर था। अब समय आ गया है जब सीबीआई को इसकी जांच सौंप देनी चाहिए। यही बेरोजगारों और समय की मांग है।-पेंच पूर्व जयपुर कलेक्टर अतर सिंह नेहरा के भाजपा ज्वाइन करने और आरएलडी के भाजपा से गठबंधन करने से फंस गया है।
सूत्रों की मानें तो चर्चाएं जोरों पर हैं, ‘नेहरा का आरोप है उन्होंने रीट के पेपर शिक्षा संकुल में रखवाए और वहां प्राइवेट व्यक्तियों को जाने की अनुमति दे दी।’ पेपर नियम से ट्रेजरी या पुलिस थानों में रखवाए जाने चाहिए थे।
चर्चाएं हैं, ‘ऐसे ही पूर्व सरकार में मंत्री और गहलोत के विश्वसनीय सुभाष गर्ग की उच्च शिक्षा विभाग में तकनीकी शिक्षा मंत्री से ज्यादा चलती थी।’ ‘…जब कोटा तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति आर ए गुप्ता घूस लेते पकड़े गए थे, उन्होंने पूछताछ में बताया था कि कार्यकाल बढ़वाने के लिए उन्होंने राशि ली थी।’ ‘आखिर वह राशि किसके पास जानी थी?’ राजीव गांधी स्टेडी का प्रमुख कौन था? जारौली को माध्यमिक शिक्षा बोर्ड का अध्यक्ष किसकी सिफारिश पर बनाया गया? इन सभी के लिए सुभाष गर्ग से पूछताछ होनी जरूरी थी। अब उनकी पार्टी आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने बीजेपी से हाथ मिला लिया। क्या अब सुभाष गर्ग से पूछताछ होगी? जब दोनों से पूछताछ नहीं होगी तो बेरोजगारों को न्याय कैसे मिलेगा? इसलिए भी सीबीआई को जांच सौंप देना न्याय हित में होगा।