-दसवें आचार्य महाप्रज्ञजी के दीक्षा दिवस पर आचार्यश्री ने किया स्मरण

बीदासर। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में वीर भूमि बीदासर की धरती पर प्रवास कर रहे हैं। कई वर्षों बाद अपने आराध्य का निकट सान्निध्य प्राप्त कर बीदासर मानों नवीन ऊर्जा का अनुभव कर रहा है। आचार्यश्री के श्रीमुख से प्रवाहित होने वाली ज्ञानगंगा में श्रद्धालु निरंतर गोते लगा रहे हैं। राजस्थान की मरुभूमि पर आचार्यश्री द्वारा प्रवाहित हो रही ज्ञानगंगा की धारा लोगों की आत्मा का सात्विक अभिसिंचन कर उनके जीवन को आध्यात्मिकता के रंग में रंग रही है।

आगम के अधिकृत प्रवक्ता महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने श्रद्धालुओं को आगमवाणी के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि 32 आगमों में दसवेआलियं एक ऐसा आगम है, जो नवदीक्षित चारित्रात्माओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जिसे वे कंठस्थ भी करते हैं। दसवेआलियं के दस अध्यायों में अनेक प्रकार के ज्ञानों का भण्डार है। नंदी, आयारो व उत्तराध्यन आगम भी महत्त्वपूर्ण हैं। दसवेआलियं कंठस्थ हो जाए और साथ में भावार्थ आदि का अच्छा ज्ञान हो जाए तो सम्यक् चारित्र की अनुपालना में सुविधा हो सकती है। इसके पांचवें अध्याय में गोचरी-पानी से संबंधित जानकारी दी गई है। भाषा के संदर्भ में आवश्यक जानकारी दसवेआलियं के सातवें अध्ययन में निर्दिष्ट है। चौथे अध्ययन के अंत में सुगति की दुर्लभता और सुलभता का वर्णन प्राप्त होता है। इसके पहले अध्याय में अहिंसा, संयम और तप को धर्म के सार में रूप में वर्णित किया गया है। भिक्षु को कैसा होना चाहिए, इसके विषय में दसवें अध्याय में उल्लेख प्राप्त होता है। यदि चारित्रात्माओं के मन में विचलन की स्थिति पैदा हो तो इसकी चुलिकाओं का स्वाध्याय, मन करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार चारित्रात्माएं आगम को अपना मित्र बनाएं, जिससे उन्हें अच्छी खुराक मिल सके। आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज माघ शुक्ला दसमी है। आज के दिन सरदारशहर में परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की दीक्षा हुई थी। वे परम विद्वान संत थे। आचार्य तुलसी के निकाय सचिव, युवाचार्य और फिर आचार्य तुलसी के उत्तराधिकारी भी बने। वे एक ऐसे अद्वितीय आचार्य हैं जो अपने गुरु के सामने आचार्य पद पर सुशोभित हुए। उनमें कितना वैदुष्य था। संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं पर उनका अधिकृत अधिकार था। आगम के संपादन और वाचन की बात की जाए तो आचार्यश्री तुलसी को यदि आगम का राष्ट्रपति कहें तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को प्रधानमंत्री कहा जा सकता है। जिन्होंने प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान जैसे अवदान दिए। उनके प्रवचनों में उनका वैशिष्ट्य उजागर होता था। मैं उनका श्रद्धा के साथ स्मरण करता हूं। कार्यक्रम में आचार्यश्री के आगमन से पूर्व चेतनजी, सरोज दुगड़, पुष्पा सुराणा, सुरेन्द्र सेखानी व पारस गोलछा, रूपम बेंगानी व पद्मा सिंघी ने पृथक्-पृथक् गीतों के माध्यम से अपने आराध्य के चरणों में अपनी प्रणति अर्पित की।

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