श्रीगंगानगर। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के पूर्व अध्यक्ष तथा हिंदी एवं राजस्थानी के प्रख्यात साहित्यकार श्याम महर्षि ने कहा है कि आने वाली पीढ़ी के सामने बहुत चुनौतियां तो हैं, लेकिन आज की पीढ़ी उन चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम है। वह हमसे कहीं ज्यादा जागरूक है और अपने अधिकार प्राप्त करना भी जानती है। यह हमारे लिए संतोष की बात है।
वे रविवार को सृजन सेवा संस्थान के मासिक कार्यक्रम ‘लेखक से मिलिए’ की 97वीं कड़ी में अतिथि लेखक के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि लेखक के रूप में वे सदैव स्वतंत्र रहे हैं। नौकरी में रहते हुए भी उन्होंने कभी अपने लेखक को मरने या घुटने नहीं दिया।
कार्यक्रम में महर्षि ने अपनी हिंदी एवं राजस्थानी की अनेक कविताएं सुनाकर श्रोताओं का मन मोह लिया। उन्होंने वर्तमान दौर में आम आदमी की स्थिति की चर्चा करते हुए कविता पढ़ी-तुम्हारा कहना/ब्रह्म वाक्य/मेरा कहना/फकत कहना है/तुम्हारी गाली/मेरे लिए गहना है/मुझे कुछ कहना है।
इसी तरह बदली परिस्थितियों में हर घर में चल रहे महाभारत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा-अब धृतराष्ट्र के कारण/गांधारी नहीं बांधेगी/पट्टी आंखों पर/अब रिश्तेदारों का महाभारत/अठारह दिनों में नहीं थमेगा/भाई-भतीजे/काका-ताऊ/मामा-भानजे और बहनोई/लड़ते रहेंगे निरंतर/जर, जोरू और जमीन के लिए।
कार्यक्रम में कर्नल पंकजसिंह, मनोज भाटिया, भूपेंद्रसिंह, ऋतुसिंह, मीनाक्षी आहुजा, भूपेंद्रसिंह, दौलतराम अनपढ़, राकेश मितवा आदि ने महर्षि से अनेक सवाल किए, जिनका महर्षि ने सहजता से जवाब दिया।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि हनुमानगढ़ केंद्रीय सहकारी बैंक के महाप्रबंधक दीपक कुक्कड़ ने माना कि बेशक आज लोग किताबों से दूर हो रहे हैं, लेकिन मौजूदा दौर की विकरालता से हमें किताबें ही बचाएंगी। किताबों के बहाने ही कभी रिश्ते जुड़ा करते थे, किताबें ही हमें वापस उसी दौर से जोड़ेंगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार नीलप्रभा भारद्वाज ने कहा कि सृजन सेवा संस्थान इस क्षेत्र में जिस तरह का काम कर रहा है, उसे देखकर संतुष्टि होती है कि आने वाले दौर में इस इलाके के साहित्य को पहचान अवश्य मिलेगी। उन्होंने साहित्य की अलख जगाए रखने के लिए सभी से आगे आने का आग्रह किया।
इस मौके पर महर्षि को सृजन साहित्य सम्मान प्रदान किया गया। नीलप्रभा भारद्वाज, दीपक कुक्कड़ एवं सृजन के संरक्षक विजयकुमार गोयल ने उन्हें शॉल ओढ़ा कर, सम्मान प्रतीक एवं साहित्य भेंट करके सम्मानित किया। इससे पहले सचिव कृष्णकुमार आशु ने महर्षि का परिचय दिया। संचालन डॉ. संदेश त्यागी ने किया।