शनिवार 14/11/2020 दीपावली है
दरभंगा का शुभ-समय:
-पं नीरज शर्मापं नीरज शर्मा
–स्थिर-वृष-लग्न 17:02 से 18:58 तक ।
– सायं-प्रदोष-काल 16:55 से 19:19 तक ।
– स्थिर-सिंह-लग्न 23:30 से 01:44 तक ।
– शुभसमय:
– स्थिर-वृष-लग्न 17:55 से 19:51 तक ।
– सायं-प्रदोष-काल 17:48 से 20:12 तक।
स्थिर-सिंह-लग्न 00:23 से 02:37 तक
दीपावली की रात्रि में 11 बजे के बाद एकाग्रता से बैठकर के नेत्र बंद करके ऐसा ध्यान करें कि सामने महालक्ष्मी कमलासन पर विराजमान हो और आप उनके ऊपर कमल पुष्प चढ़ा रहे हैं। ऐसे कुल 108 मानसिक कमल पुष्प अर्पित करें। ऐसा करने से लक्ष्मी की कृपा होती है। साथ में विष्णु सहस्रनाम या गोपाल सहस्रनाम का पाठ करें तो अति उत्तम है। आइए जानें संपूर्ण प्रामाणिक विधि…
माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।
माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर, अनार व सिंघाड़े प्रिय हैं। सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज में चावल तथा मिठाई में घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, बिल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर, भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
— तैयारी
चौकी पर लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां इस प्रकार रखें कि उनका मुख पूर्व या पश्चिम में रहे। लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। पूजनकर्ता मूर्तियों के सामने की तरफ बैठें। कलश को लक्ष्मीजी के पास चावलों पर रखें। नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे व इसे कलश पर रखें। यह कलश वरुण का प्रतीक है।
दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक दीपक गणेशजी के पास रखें।
मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएं। कलश की ओर एक मुट्ठी चावल से लाल वस्त्र पर नवग्रह की प्रतीक नौ ढेरियां बनाएं। गणेशजी की ओर चावल की सोलह ढेरियां बनाएं। ये सोलह मातृका की प्रतीक हैं। नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएं।
इसके बीच में सुपारी रखें व चारों कोनों पर चावल की ढेरी। सबसे ऊपर बीचोंबीच ॐ लिखें। छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें- 1. ग्यारह दीपक, 2. खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, सिन्दूर, कुंकुम, सुपारी, पान, 3. फूल, दुर्वा, चावल, लौंग, इलायची, केसर-कपूर, हल्दी-चूने का लेप, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक।
इन थालियों के सामने यजमान बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।
–चौकी
(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
-पूजा की संक्षिप्त विधि
सबसे पहले पवित्रीकरण करें।
आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोड़ा सा जल ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिड़कें। साथ में मंत्र पढ़ें। इस मंत्र और पानी को छिड़ककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्तर शुचिः॥
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुनः तिलक लगाने के बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।
आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोड़ा जल लेकर स्वतिनः इंद्र वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।
संकल्प -आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए। कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ है कुछ धन। ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों। सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरुण पूजा यानी कलश पूजन करनी चाहिए।
हाथ में थोड़ा सा जल ले लीजिए और आह्वान व पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढ़ाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलह माताओं को नमस्कार कर लीजिए और पूजा सामग्री चढ़ा दीजिए।
सोलह माताओं की पूजा के बाद दीपावली का रक्षाबंधन होता है। रक्षाबंधन विधि में मौली लेकर भगवान गणपति पर चढ़ाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित्त से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा प्रारंभ कीजिए
– नरक चतुर्दशी 14 नवम्बर 2020 विशेष
नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को ‘छोटी दीपावली’ भी कहते हैं। इसके अतिरिक्त इस चतुर्दशी को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी’, ‘नर्क चतुर्दशी’ या ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं। इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।
ध्यान रहे इस वर्ष छोटी एवं बड़ी दीपावली 14 नवम्बर के दिन ही मनाई जाएगी परन्तु यम के लिये दीप दान एक दिन पहले 13 नवम्बर की रात्रि में और अभ्यंग स्नान 14 नवम्बर प्रातः ही मान्य ही होगा।
पौराणिक कथा
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रन्तिदेव नामक एक राजा हुए थे। वह बहुत ही पुण्यात्मा और धर्मात्मा पुरुष थे। सदैव धर्म, कर्म के कार्यों में लगे रहते थे। जब उनका अंतिम समय आया तो यमराज के दूत उन्हें लेने के लिए आये। वे दूत राजा को नरक में ले जाने के लिए आगे बढ़े। यमदूतों को देख कर राजा आश्चर्य चकित हो गये और उन्होंने पूछा- “मैंने तो कभी कोई अधर्म या पाप नहीं किया है तो फिर आप लोग मुझे नर्क में क्यों भेज रहे हैं। कृपा कर मुझे मेरा अपराध बताइये, कि किस कारण मुझे नरक का भागी होना पड़ रहा है।”. राजा की करूणा भरी वाणी सुनकर यमदूतों ने कहा- “हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से एक ब्राह्मण भूखा ही लौट गया था, जिस कारण तुम्हें नरक जाना पड़ रहा है।
राजा ने यमदूतों से विनती करते हुए कहा कि वह उसे एक वर्ष का और समय देने की कृपा करें। राजा का कथन सुनकर यमदूत विचार करने लगे और राजा को एक वर्ष की आयु प्रदान कर वे चले गये। यमदूतों के जाने के बाद राजा इस समस्या के निदान के लिए ऋषियों के पास गया और उन्हें समस्त वृत्तांत बताया। ऋषि राजा से कहते हैं कि यदि राजन कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करे और ब्राह्मणों को भोजन कराये और उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करे तो वह पाप से मुक्त हो सकता है। ऋषियों के कथन के अनुसार राजा कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत करता है। इस प्रकार वह पाप से मुक्त होकर भगवान विष्णु के वैकुण्ठ धाम को पाता है।
अन्य कथा अनुसार
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आज के ही दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। नरकासुर ने देवताओं की माता अदिति के आभूषण छीन लिए थे। वरुण को छत्र से वंचित कर दिया था ।मंदराचल के मणिपर्वत शिखर को कब्ज़ा लिया था देवताओं, सिद्ध पुरुषों और राजाओं को 16100 कन्याओं का अपहरण करके उन्हें बंदी बना लिया था कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवान श्रीकृष्ण ने उसका वध करके उन कन्याओं को बंदीगृह से छुड़ाया, उसके बाद स्वयं भगवान ने उन्हें सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए सभी अपनी पत्नी स्वरुप वरण किया इस प्रकार सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई, इस महत्वपूर्ण घटना के रूप में नरकचतुर्दशी के रूप में छोटी दीपावली मनाई जाती है।
रूप चतुर्दशी के दिन (उबटन लगाना और अपामार्ग का प्रोक्षण ) करना
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आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान अवश्य करना चाहिए सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए उसके बाद अपामार्ग का प्रोक्षण करना चाहिए तथा लौकी के टुकडे और अपामार्ग दोनों को अपने सिर के चारों ओर सात बार घुमाएं ऐसा करने से नरक का भय दूर होता है साथ ही पद्म-पुराण के मंत्र का पाठ करें।
“सितालोष्ठसमायुक्तं संकटकदलान्वितम। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:”
“हे तुम्बी(लौकी) हे अपामार्ग तुम बार बार फिराए जाते हुए मेरे पापों को दूर करो और मेरी कुबुद्धि का नाश कर दो”
फिर स्नान करें और स्नान के उपरांत साफ कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:।
इसके बाद लौकी और अपामार्ग को घर के दक्षिण दिशा में विसर्जित कर देना चाहिए इस से रूप बढ़ता है और शरीर स्वस्थ्य रहता है।
आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से मनुष्य नरक के भय से मुक्त हो जाता है।
पद्मपुराण में लिखा है जो मनुष्य सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है, वह यमलोक नहीं जाता है अर्थात नरक का भागी नहीं होता है।
भविष्य पुराण के अनुसार जो कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक वर्ष के समस्त पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं। इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल की मालिश करनी चाहिए यद्यपि कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित होती है, किन्तु नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है। नरक चतुर्दशी को तिल्ली के तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में गंगाजी का निवास# होता है।
नरक चतुर्दशी को सूर्यास्त के पश्चात अपने घर व व्यावसायिक स्थल पर तेल के दीपक जलाने चाहिए तेल की दीपमाला जलाने से लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है ऐसा स्वयं भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा था। भगवान विष्णु ने राजा बलि को धन-त्रियोदशी से दीपावली तक तीन दिनों में दीप जलाने वाले घर में लक्ष्मी के स्थायी निवास का वरदान दिया था।
नरक चतुर्दशी पर किये जाने वाले आवश्यक कार्य
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1. नरक चतुर्दशी से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन एक लोटे में पानी भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल नहाने के पानी में मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
2. स्नान के बाद दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से मनुष्य द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।
3. इस दिन यमराज के निमित्त तेल का दीया घर के मुख्य द्वार से बाहर की ओर लगाएं।
4. नरक चतुर्दशी के दिन शाम के समय सभी देवताओं की पूजन के बाद तेल के दीपक जलाकर घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व कार्य स्थल के प्रवेश द्वार पर रख दें। मान्यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मी जी सदैव घर में निवास करती हैं।
5. नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहते हैं इसलिए रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए ऐसा करने से सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
6. इस दिन निशीथ काल (अर्धरात्रि का समय) में घर से बेकार के सामान फेंक देना चाहिए। इस परंपरा को दारिद्रय नि: सारण कहा जाता है। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन दीपावली पर लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है, इसलिए दरिद्रय यानि गंदगी को घर से निकाल देना चाहिए।
7. लिंग पुराण के अनुसार इस दिन उड़द के पत्तों के साग से युक्त भोजन करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
8. नरक चतुर्दशी के दिन सर्वप्रथम लाल चंदन, गुलाब के फूल व रोली के पैकेट की पूजा करें तत्पश्चात उन्हें एक लाल कपड़ें में बांधकर तिजोरी में रख दे। इस उपाय को करने से धन की प्राप्ति होती है और धन घर में रुकता भी है।
नरक चतुर्दशी का शास्त्रोक्त नियम
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दो विभिन्न परंपरा के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है।
1👉 कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन चंद्र उदय या अरुणोदय (सूर्य उदय से सामान्यत: 1 घंटे 36 मिनट पहले का समय) होने पर नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। हालांकि अरुणोदय पर चतुर्दशी मनाने का विधान सबसे ज्यादा प्रचलित है।
2👉 यदि दोनों दिन चतुर्दशी तिथि अरुणोदय अथवा चंद्र उदय का स्पर्श करती है तो नरक चतुर्दशी पहले दिन मनाने का विधान है। इसके अलावा अगर चतुर्दशी तिथि अरुणोदय या चंद्र उदय का स्पर्श नहीं करती है तो भी नरक चतुर्दशी पहले ही दिन मनानी चाहिए।
3👉 नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले चंद्र उदय या फिर अरुणोदय होने पर तेल अभ्यंग( मालिश) और यम तर्पण करने की परंपरा है।
अभ्यंग स्नान मुहूर्त
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नरक चतुर्दशी (14 नवम्बर, शनिवार) के अभ्यंग स्नान का समय सुबह 05:21 से 06:41 तक रहेगा *ऐसा कीजिये दिवाली पर– जिसे कर के आप व्यवसाय में उन्नती और घर में सुख-शांति पा सकते हैं |*
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दीवाली की रात जब लोगों के घरों के बाहर दीये सजने शुरु होते हैं, तो इस त्योहार की चमक और दमक जैसे पूरी धरा को सम्मोहित कर लेती है।
चारों ओर टिमटिमाती हुई रौशनी इतनी खूबसूरत लगती है कि ऐसा लगता है कि हम तारों के बीच में खडे़ हों। दिवाली का महत्व बहुत बडा़ होता है, इस दिन मन से किया गया कोई भी कार्य जरुर पूरा होता है।
आज हम आपको कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं जिसे कर के आप व्यवसाय में उन्नती और घर में सुख-शांति पा सकते हैं |
1. दिवाली के दिन अपने गल्ले के नीचे काली गुंजा जंगली बेल के दाने डालने से व्यवसाय में हो रही हानि रूक जाती है।
2. दिवाली की रात घर के मुख्य दरवाज़े पर सरसों के तेल का दीपक जला कर उसमें काली गुंजा के 2-4 दाने डाल दें। ऐसा करने पर घर में सुख-शांति बनी रहेगी।
3. दिवाली के दिन दोपहर के समय हल्दी की 11 गांठो को पीले कपडे़ से बांध कर गणेश यंत्र की एक माला जप कर तिजोरी में रखने से व्यापार में बढौतरी होती है।
4. दिवाली के दिन कांच की काली चूड़ियों को दुर्गा मंत्र से अभिमंत्रित करके उसके टुकडे़ घर की परिधि के बाहर डालने से विघ्न-बाधांए समाप्त होती हैं।
5. दिवाली के दिन कच्चा सूत लेकर शुद्ध केसर से रंगकर कार्यक्षेत्र व तिजोरी में रखने से उन्नति होती है।
6. दिवाली के दिन तुलसी का पूजन करने वाले को कभी धनाभाव नहीं रहता है।
7. दिवाली के दिन तेल के दीपक में कौडी़ को रातभर पडा़ रहने दें। फिर सुबह साफ कर के पर्स में रख लें। ऐसा करने से पर्स में हमेशा पैसा बना रहेगा।
8. दिवाली की रात को देवी के सामने जलाए दीपक की लौ से काजल बना लें। सुबह इस काजल को परिवार के प्रत्येक सदस्य, महत्वपूर्ण स्थानों, गैस के चूल्हे, अलमारी इत्यादि पर हल्का सा लगा दें। बच्चों को भी नज़र के टीके के रूप में लगाएं। विघ्न-बाधाएं दूर होगी और घर में बरकत बनी रहेगी।
9. दिवाली की संध्या एक सुपारी और तांबे का सिक्का लेकर पीपल के पेड़ के नीचे रख आएं। सोमवार को उस पेड़ का पत्ता ला कर गद्दी के नीचे रखें। तो ग्राहकों में वृद्धि होगी।
10. दिवाली की रात शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार की रात्रि में महालक्ष्मी पूजन के समय लाल अकीक पत्थर की मन से पूजा करें। इससे वर्षभर समृद्धि प्राप्त होगी।
– दिवाली की रात दिख जाये ये 4 जीव
तो समझ जाएं घर में हो चुका है मां लक्ष्मी का आगमन, जानिए कौन से है वो जीव
दिवाली को लेकर लोग अपने घरों की साफ़-सफाई करने में लग गए हैं. सबका उद्देश्य होता है कि दिवाली में उनके घर का कोना-कोना साफ़ दिखे. शायद आपके मन में भी ये सवाल उठ रहा होगा कि ऐसा लोग क्यों करते हैं? हिंदू मान्यता के अनुसार माता लक्ष्मी उन्हीं घरों में जाती हैं जिस घर का कोना-कोना साफ़ होता है. इसके अलावा यह भी माना जाता है कि दिवाली की रात जो घर रौशनी से चमकता है, माता लक्ष्मी का आगमन भी उसी घर में होता है.
किन माता लक्ष्मी का आपके घर में आगमन हुआ है या नहीं इसका भी संकेत ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है. ज्योतिष शास्त्र में ऐसे 4 संकेतों का ज़िक्र है जिससे पता चलता है कि मां लक्ष्मी का घर में आगमन हुआ है या नहीं. इन संकेतों को जानने के लिए आप भी उत्सुक होंगे. तो आईये जानते हैं दिवाली की रात ऐसे कौन से 4 संकेत हैं जिसका दिखना माता लक्ष्मी का आगमन बताया गया है.
उल्लू का दिखना
दिवाली की रात उल्लू का दिखना बेहद शुभ माना जाता है. दिवाली की रात माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू कहीं भी दिख जाए तो यह समझ जाएं कि माता लक्ष्मी की आप पर विशेष कृपा है. आप ऐसा समझ सकते हैं कि आने वाले दिनों में धनवर्षा होने वाली है. संयोग से ही उल्लू का दिखना शुभ माना जाता है.
चूहा का दिखना
चूहा वैसे तो कई घरों में अपना आतंक मचाते ही रहते हैं. लेकिन दिवाली की रात अगर घर में कहीं भी चूहा दिखे तो समझ जाएं कि यह माता लक्ष्मी के रूप में आया है. चूहा दिखने का मतलब आपके घर में पूरे साल सुख-शांति और समृद्धि बनी रहेगी. आने वाले समय में धन की समस्या बहुत हद तक दूर हो जायेगी. इसे सौभाग्य का संकेतक भी माना जाता है.
छछूंदर का दिखना
छछूंदर चूहे जैसे ही दिखते हैं. लेकिन साइज़ में यह उनसे बड़े और डरावने होते हैं. दिवाली की रात छछूंदर का दिखना महज़ संयोग ही नहीं है. इस रात अगर छछूंदर दिख जाए तो यह भाग्य उदय का संकेतक होता है. इसके दिखने पर समझ जाना चाहिए कि आप बेहद भाग्यशाली हैं और धन से जुड़ी आपकी सारी समस्याएं खत्म होने वाली हैं.
छिपकली का दिखना
घर की दीवारों पर अक्सर छिपकलियां देखने को मिलती हैं. लेकिन दिवाली की रात छिपकली का दिखाई देना भी शुभ संकेत होता है. माना जाता है कि छिपकली का घर में आना मां लक्ष्मी के आने का संकेत है. दिवाली की रात छिपकली दिखने पर पूरे साल आने वाली समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है.
दिवाली की रात यदि आप इनमें से कोई भी जीव देख लेते हैं तो समझ जाइए कि मां लक्ष्मी की कृपा आप पर बरसने वाली है. लेकिन यह जीव संयोग से दिखे तभी शुभ माना जाता है. जानबूझ कर इन जीवों को देखने से कोई लाभ नहीं होता है. गृहणी जरूर जलाएं इस तेल के दीए, जमकर बरसेगा पैसा
पिछले कई वर्षों से भारतीय घरों में दीपक जलाने का रिवाज है। भारतीय परंपरा के अनुसार ईश्वर हमारे सामने प्रकाश के रूप में हैं इसलिए किसी भी शुभ काम और पूजा-पाठ शुरू करने से पहले दीपक जलाकर ईश्वर को साक्षी माना जाता है। जैसा की आप जानते हैं दिवाली का शुभ पर्व भी आने ही वाला है। आजकल बहुत से घरों में दियों की जगह आर्टिफिशियल लाइट्स लगाना पसंद किया जाता है। मगर ऐसे बहुत कम लोग हैं जो इस बात को जानते हैं कि दिये जलाकर आप अपने घर के वास्तु दोष दूर कर सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे…
दुर्भाग्य दूर करता है दीपक
अगर लंबे समय से दुर्भाग्य आपको पीछा नहीं छोड़ रहा तो दीवाली से एक दिन पहले यानि शनिवार शाम को सरसों के तेल का दीपक जलाएं। साथ ही इस दिन आटे और गुड़ के पुए बनाकर किसी गरीब बच्चे को खिलाएं। ऐसा करने से आपको दुर्भाग्य से मुक्त मिलेगी।
मुश्किलों से बचाए दीपक
यदि घर की औरत कच्ची घानी के तेल में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करे तो उसके पति के जीवन में आने वाली बाधाएं बहुत जल्द दूर होती है।
शनिदेव की कृपा
इस दीपावली से एक दिन पहले सरसों के तेल में अपना चेहरा देखकर उसे शनि मंदिर में रख आएं। ऐसा करने से दीवाली के दिन मां लक्ष्मी के साथ-साथ शनिदेव की कृपा भी आप पर बनी रहेगी।
बीमारियों से दिलाए मुक्ति
यदि आपके घर में कोई व्यक्ति लगातार बीमार चल रहा है तो पूरे 41 दिनों तक पीपल के पेड़ के नीचे तिल के तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने से बीमार चल रहा व्यक्ति रोग मुक्त होगा साथ ही आपके मन की हर इच्छा पूरी भी होगी।
खुद का घर
अगर आप चाहते हैं कि आपका खुद का घर जल्द बन जाए तो तिल के तेल में थोड़ा सा सरसों का तेल मिलाकर उसका दीपक रोजाना घर के मंदिर में जलाएं॥। लगातार 40 दिनों तक ऐसा करने से आपकी घर खरीदने की मनोकामना बहुत जल्द पूरी होगी
पं नीरज 9929081365 दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन कैसे करें, यहां मिलेगी संपूर्ण प्रमाणिक विधि