

संत, जननायक या आम जनता, कई आडंबर मे फसे।
संसार त्याग कर संत बने, कई तिर गए, कई तारक बन गए और कई आडंबर वाले भव्य आयोजन से नही बच सके। जन्म जयंती, दीक्षा महोत्सव, पुण्यतिथि खासकर कई साधु संत के नाम से बहुत भव्य पैमाने पर कार्यक्रम होते हैं करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। अनेक राजनितीज्ञय् द्वारा अब अपने पद ग्रहण, जन्म दिसव, पुत्र पुत्री या पोत्र पोत्री की शादी पर भी भव्य पैमाने पर आयोजन आयोजित होते हैं। अरबपतियों की शादियां उनके तो लोग वीडियो देखकर ही खुश होते हैं। हालांकि ऐसी बात करने वाले को जलकुकड़े की उपाधि मिलती है उसे कहा जाता है तुम में दम हो तो तूम भी करके दिखाओ।
जिन्होंने स्वयं पैसा कमा कर ऐसे यश गान वाले कार्यक्रमों को किया वह तो उचित है परंतु जिन्होंने पैसा नहीं कमाया पर उनके यहां ऐसे यश गान वाले कार्यक्रम का होना एक गंभीर आशंका को जन्म देता है कि आखिर यह पैसा आया कहां से जिसको आयकर विभाग भी ढूंढ ना सका। काश ऐसे झांकी वाले कार्यक्रम आयोजित करने के बजाए आध्यात्मीक रूख रखते हुए ऐसी दुनिया पर खर्च किया जाता जहां सिर्फ मेहनतकश को कई सुविधाए निशुल्क मिल पाती या अपंग लोगों को मिलपाती। ध्यान दे आलसी और मक्कार को फ्री में कुछ नहीं मिलना चाहिए ये लोग सरकार से भी कई सुविधा एवं लाभ ले चुके।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)

