पहले एक जमाना था जब सत्यमेव जयते याने सत्यमेव जयते होता था परंतु अब कई चेहरे सत्ता और पावरफुल लोगों के दोहरे हो गए। वह बातें तो आदर्शता और इमानदारी की करते हैं परंतु मन में छल कपट और दोगलापन कहीं ना कहीं छुपा रहता है और वह अपना डंक मारते रहता है। अमूमन सभी राजनीतिक पार्टी कहती हैं कि हम रामराज्य स्थापित करेंगे पर पूरी जिंदगी अपनी देखते-देखते कट गई पर रामराज्य कहीं किसी भी कोने में नहीं दिखा। आप इस कदर सरकार के टैक्स जाल में उलझे हुए हो कि आप झूठे इनकम टैक्स रिटर्न बनाने पर मजबूर है।भ्रष्टाचार में इतनी राशि जाती है जिसे आप अपने अकाउंट बुक में नहीं ले पाते हो। बड़े-बड़े विज्ञापन आप देखते हो नेता नगरी के और चुनाव में बड़ी बड़ी सभाए और रैलियां ये खर्चा कहां से आता है इसका कौन हिसाब देखता है, बहुत सारे चंदे आप से जाते हैं जिन्हे आप अकाउंट में लेते नहीं है। आप चाह कर भी एकदम आदर्श और ईमानदारी के साथ जीवन नहीं जी पातें है कही न कहीं आपको झूठ का सहारा लेना पड़ रहा है। व्यवस्थित जीने का व्यवस्था और माहोल सरकार देने का दायित्व सरकार का होता है जो कम रुचिकर होते जा रहा है। सत्ता पाने और टिके के रहने का लालच सरकार से जो न करना चाहे वह भी करवाता है और यही आदर्शता और इमानदारी मैं जंग लग जाती है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)

