-युवाओं को चाहिए कि भाषा की मान्यता को लेकर गंभीर कार्ययोजना बनाएं : चारण

बीकानेर।साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कहा है कि राजस्थान का जाया-जन्मा अगर राजस्थान में राजस्थानी नहीं बोलेगा तो कहां बोलेगा, लेकिन हमारे मन में भाषा के संदर्भ में स्वाभिमान ही नहीं है। यही नहीं, कुछ लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया है कि राजस्थानी भाषा की संवैधानिक भाषा की मान्यता की बात करने का अर्थ राष्ट्रद्रोह है जबकि यह हमारी अस्मिता का प्रश्न है। जबकि असली राष्ट्रद्रोही तो वे हैं, जो हमारी मान्यता को रोके बैठें हैं। जो हमारी पहचान है। ऐसे में हमारी भाषा के बगैर तो हमारी नागरिकता ही संदिग्ध हो गई है। उन्होंने कहा कि जिस प्रदेश की 15 प्रतिशत लोग किसी एक भाषा को बोलते हैं तो उसे राष्ट्रपति संवैधानिक मान्यता दे सकते हैं, लेकिन हमारे तो अकेले मारवाड़ में ही 15 प्रतिशत लोगों का आंकड़ा पूरा हो जाता है, क्यों नहीं राजस्थानी को मान्यता मिल रही है। राजस्थानी को मान्यता मिलेगी तो हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित होगा।
आधुनिक राजस्थानी कहानी के प्रणेता मुरलीधर व्यास राजस्थान की 125वीं जयंती पर धरणीधर रंगमंच पर आयोजित विचार गोष्ठी ‘राजस्थानी भाषा री मानता : अबखायां अर निवेड़ो ‘ में डॉ.चारण ने यह विचार रखे। यह कार्यक्रम मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी ‘ स्मृति संस्थान की ओर से आयोजित किया गया।
उन्होंने कहा कि राजस्थानी की पहली भाषा राजस्थानी होनी चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि इसे संवैधानिक मान्यता मिले। हमारी शिक्षा के प्राथमिक स्तर से ही राजस्थानी अनिवार्य विषय होनी चाहिए। अब तो नई शिक्षा नीति में भी यह बात आ गई है, युवाओं को चाहिए कि भाषा की मान्यता को लेकर गंभीर कार्ययोजना तैयार करे।
डॉ.चारण ने कहा कि व्यक्ति की पहचान के तीन तत्त्व होते हैं, भाषा, भूषा और भोजन। हमने अपना पहनावा और खान-पान तो बदल लिया है, भाषा को बदल लेंगे तो रही मौलिकता भी जाती रहेगी। उन्होंने कहा कि राजस्थानी की एकरूपता का सवाल खड़ा करना ही बेमानी है, क्योंकि राजस्थान के विश्वविद्यालयों में लंबे समय से जो राजस्थानी पढ़ाई जा रही है, जिसे भाषा में आकाशवाणी से समाचार प्रसारित हो रहे हैं, उसी राजस्थानी को मान्यता देने की बात कही जा रही है। राजस्थानी को मान्यता देने के आड़े सिर्फ इच्छाशक्ति आ रही है, जिसके लिए जनता को जागना होगा, क्योंकि भाषा को मान्यता लेखकों के भरोसे नहीं मिलने वाली है।
कार्यक्रम में स्वागताध्यक्ष वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार व साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि भाषा की मान्यता का आंदोलन तब तक अधूरा है, जब तब इस रणनीतिक दृष्टि से चाक-चौबंद करके नहीं चलाया जाए। यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया होनी चाहिए, जिसे नेताओं को समझ में आए कि जिस भाषा में वोट मांगा जाता है, उसे मान्यता भी देनी होगी। वातावरण बनाना होगा कि भाषा नहीं वोट नहीं।
कार्यक्रम समन्वयक साहित्यकार-पत्रकार हरीश बी.शर्मा ने कहा कि राजस्थानी भाषा की मान्यता के रास्ते में अड़ंगे लगाने वालों के पास कोई भी ऐसा सवाल नहीं है, जिसका हमारे पास जवाब नहीं हो, लेकिन आंदोलन के बिखराव और तैयारी के अभाव में हर बार आंदोलन असफल हो जाता है। जब तक गांव और ढाणी से भाषा की मान्यता का स्वर नहीं उभरेगा भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलेगी।
इस अवसर पर साहित्यकार भंवरसिंह सामौर, डॉ. गीता सामौर, राजाराम स्वर्णकार, डॉ.अजय जोशी, जुगल पुरोहित, नमामिशंकर आचार्य, रामअवतार उपाध्याय, बलदेव व्यास, प्रशांत जैन ने भाषा की मान्यता को लेकर अपनी जिज्ञासाएं रखीं। कार्यक्रम में कांग्रेस नेता कमल कल्ला, भाजपा नेता विजय मोहन जोशी, कर्मचारी नेता भंवर पुरोहित, प्रकाश आचार्य, डूंगरसिंह तेहनदेसर, राजेश चौधरी, राजकुमार व्यास, आशीष पुरोहित, कासिम बीकानेर, गंगाबिशन, आनंद पुरोहित ‘मस्ताना’ गोपाल पुरोहित, व्यास योगेश ‘राजस्थानी’ सहित राजस्थानी के स्टूडेंट्स, स्कॉलर्स और एक्टिविस्ट्स ने शिरकत की। आभार संस्थान के अध्यक्ष श्रीनाथ व्यास ने स्वीकार किया। इस अवसर पर विचार गोष्ठी में सहभागिता करने वाले प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए। लोकेश चूरा ने राजस्थानी भाषा की मान्यता के संबंध में ओजपूर्ण गीत प्रस्तुत किया।