-आरएएस परिणाम से चर्चाओं में आया राजस्थान लोक सेवा आयोग, अब समझ आया कि पैसे वाले और अफसर-नेताओं की संताने कैसे बन जाते हैं बड़े अफसर
– हरीश गुप्ता
जयपुर। आरएएस के परिणाम ने लोगों की आंखें तो खोल ही दी, लेकिन एक टीस भी साथ में छोड़ दी कि गरीब, सामान्य या बिना एप्रोच वाले बेरोजगारों का क्या होगा? क्या किसी ने सोचा कि उस नौजवान पर क्या गुजरेगी जो काबिलियत रखने के बाद भी सेलेक्ट नहीं हुआ? उसे मलाल नहीं रहेगा कि उसे ‘गोविंद’ का आशीर्वाद नहीं मिला? इस परिणाम के बाद तो बहस छिड़ गई है कि इंटरव्यू सिस्टम ही बंद हो जाना चाहिए।
आगे की बात शुरू करने से पहले राज्य के शिक्षा मंत्री व पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा को बधाई। उनकी पुत्रवधू प्रतिभा आरएएस के साक्षात्कार में 80 प्रतिशत नंबर लाई। इसके साथ ही उनके समधी जी को बधाई। घर से एक साथ तीन जने 80 फ़ीसदी नंबर से सेलेक्ट हो गए। तीनों का इंटरव्यू लेने वाले आरपीएससी सदस्य भी बधाई के पात्र हैं कि तीनों के नंबरों में कोई भेदभाव नहीं किया वरना एक दूसरे के प्रति मन खट्टा हो जाता।
सूत्रों की मानें तो आरपीएससी के सिस्टम में बड़ी खामियां हैं। साक्षात्कार बोर्ड का अध्यक्ष आरपीएससी सदस्य होता है। साथ में बैठे प्रोफेसर और विषय विशेषज्ञ केवल साइन करने का काम करते हैं। इसके एवज में उन्हें टीए-डीए, होटल में रुकना, खाना-पीना और गिफ्ट मिल जाती है। नंबर तो सदस्य ही देता है।
गौरतलब है आरपीएससी की स्थापना के बाद यह तय किया गया था कि हाईकोर्ट जज ही मेंबर बनेंगे। शुरू में तो ऐसा ही हुआ बाद में राजनीतिक नियुक्तियां होने लग गई। सूत्रों की मानें तो आरपीएससी सदस्य तो दूर की बात, वहां के बाबू चपरासी भी ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे हैं। सदस्य बनते ही पांचो उंगली घी में और सिर कढ़ाई में हो जाता है। ‘लक्ष्मी’ मां की फुल कृपा बरसती है। यही कारण है कि थैली पीने वाला स्कॉच पीने लग जाता है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि अधिकतर सदस्य ऐसे होते हैं जो पहले कभी सरकारी नौकरी में नहीं रहे। इसलिए कोई जिम्मेदारी भी नहीं। कोई गड़बड़ी भी करे तो संपत्ति भी अटैच नहीं कर सकते। याद आता है सांसद हनुमान बेनीवाल का बयान। उन्होंने भूपेंद्र यादव के चेयरमैन बनते ही कहा था, ‘आरपीएससी अब गर्त में चली जाएगी।’

सूत्रों की मानें तो इस बार ‘खेला’ तो करोड़ों का हुआ है। टॉप 10 बच्चों की मेरिट देखें तो इंटरव्यू में उनसे बहुत पीछे वालों के नंबर ज्यादा है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि यह प्रतिभाओं के कैरियर से खिलवाड़ है। आने वाली पीढ़ी कभी माफ नहीं करेगी। अब होना क्या चाहिए, सदस्यों के लिए आवेदन मांगे जाने चाहिए। आवेदनों में से चयन हाईकोर्ट जज करें ना कि नेता। पहली बात तो यह है कि इंटरव्यू की क्या जरूरत है? जब वह परीक्षा पास करके आया है तो उसके नंबर ही पर्याप्त है, फिर भी इंटरव्यू सिस्टम बंद कर सफल आवेदकों में से 3 गुना बुलाकर ग्रुप डिस्कशन करें जिसकी पूरी वीडियोग्राफी हो। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को नजर रखनी चाहिए। आरपीएससी कि आज तक कोई ‘बड़ी मछली’ एसीबी के जाल में नहीं फंसी, जबकि बनाने वालों ने पांच सितारा खड़ी करली।