प्रतिदिन -राकेश दुबे
कोरोना दुष्काल के कारण सरकारें राहत पैकेज जारी कर रही है।अंतत: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कोरोना वायरस राहत पैकेज पर हस्ताक्षर कर दिए।व्हाइट हाउस ने घोषणा की कि राष्ट्रपति ने राहत पैकेज पर हस्ताक्षर कर दिए हैं।वहां अब कोरोना प्रभावितों को सरकारी सहायता मिलने का रास्ता साफ हो गया है। इससे पहले, डोनाल्ड ट्रंप ने पैकेज को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था. उनके इस रुख की अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने निंदा की थी।वास्तव में कोरोना संकट से त्रस्त दुनिया को महामारी से उबारने के साथ ही उन उपायों को करने की भी जरूरत है।साथ ही भविष्य में किसी भी ऐसी नयी चुनौती से मुकाबले के लिये स्थायी तंत्र विकसित करने पर वैश्विक विमर्श प्रारम्भ हो जाना चाहिए।
अब सवाल सिर्फ कोरोना का ही नहीं है, भविष्य में आने वाली नयी महामारियों का भी है। मौजूदा संकट से सबक लेकर भविष्य की रणनीति तैयार करने की जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठक में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अधनोम ने दुनिया के देशों से आह्वान किया कि हमें भविष्य की महामारियों के मुकाबले तथा दुनिया को स्वस्थ बनाने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों में अधिक से अधिक निवेश करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इतिहास बताता है कि यह पहली महामारी नहीं होगी। महामारी हमारे जीवन का सत्य तथ्य है।
सारी दुनिया का भला इसी में है कि मौजूदा संकट से मुकाबले के लिये पैसा पानी की तरह बहाने के बजाय स्थायी व दूरगामी नीतियों पर बल दिया जाना चाहिए। एक स्थायी तंत्र विकसित होना चाहिए जो भविष्य की आपदाओं को समय रहते नियंत्रित करने में सहायक हो। निस्संदेह यह अंतिम महामारी नहीं है, भविष्य में ऐसी चुनौतियां नये रूप में हमारे सामने आ सकती हैं। मानव को उन कारकों पर भी विचार करना होगा जो महामारी के विस्तार को आधारभूमि उपलब्ध कराती हैं। यह संकट हमारे लिये चुनौती के साथ एक बड़ा सबक भी है जो हमारे खानपान-जीवन व्यवहार तथा आर्थिक नीतियों के निर्धारण से जुड़े पहलुओं पर प्रकाश डालता है।
दुष्काल के संकट ने इस लड़ाई को कमजोर किया है। अभी इन इलाकों में कोरोना वैक्सीन लगाने का अभियान भी चलाया जाना है। लंबे समय से भय व असुरक्षा के माहौल में जी रही दुनिया के जीवन को सामान्य बनाने के लिये ऐसे ही रचनात्मक अभियान चलाये जाने की जरूरत है। निस्संदेह कोरोना काल के अनुभव हमें भविष्य की ऐसी चुनौतियों से मुकाबले के लिये आधारभूमि उपलब्ध करायेंगे। विडंबना यह है कि हम एक महामारी के खत्म होते ही ऐसी नयी चुनौती के बारे में सोचना छोड़ देते हैं जो एक अदूरदर्शी सोच है। दरअसल, कोई भी महामारी मनुष्य के स्वास्थ्य, जीवों तथा धरती के अंतरंग रिश्तों के असंतुलन को भी उजागर करती है। आज ही नहीं बल्कि अभी से मानव को प्रकृति से बेहतर रिश्ते बनाने की जरूरत है। इसे ही धरती को रहने की अनिवार्य शर्त बनाना जरूरी है।