जीवन एक यात्रा है- 1008आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

दिया हुआ कभी निष्फल नहीं जाता- विजयराज जी म.सा.

बीकानेर, ( नरेश मारू) । चार गति और चौरासी लाख यौनियों में गति करने के बाद जीव को अंतिम पड़ाव मनुष्य के रूप में मिलता है। पूर्व जन्मों के सत्कर्मों के परिणाम से यह मनुष्य जीवन प्राप्त होता है। यहां आदमी को यह निश्चित कर लेना चाहिए कि मुझे मोक्ष का मार्ग तय करना है। अगर व्यक्ति मोक्ष के मार्ग का अनुसरण कर लेता है तो फिर वह संसार से तर जाता है, मुक्ति को पा लेता है। यह सद्विचार 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने अपने नित्य प्रवचन में व्यक्त किए।
बागड़ी मोहल्ला स्थित सेठ धनराज जी ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने अपने नित्य प्रवचन में कहा कि जीवन एक यात्रा है और हमारा जीव अनन्त यात्रा करता रहता है। जैसे सांसारिक जीवन में देखते हैं कि यात्री चार प्रकार के होते हैं। पहले वो जो सोते- सोते सफर करते हैं और जैसे ही मंजिल आती है तो उतर जाते हैं। दूसरे प्रकार के यात्री वह हैं जो पूरे सफर में सहयात्रियों से लड़ते-झगड़ते यात्रा करते हैं। तीसरे प्रकार के यात्री रास्ते भर में ताश- चौपड़ खेलते हुए मंजिल की ओर बढ़ते हैं तथा चौथे प्रकार के यात्री यात्रा के दौरान पूरे रास्ते शांति से बेठकर अपना सफर पूरा करते हैं। रास्ते में हर आते स्टेशन को, लोगों को चढ़ते- उतरते, खिडक़ी से बाहर हरियाली, पेड़- पौधे, पहाड़ और नदियां सब को देखकर आनन्द लेते हुए आगे बढ़ते हैं। ठीक इसी प्रकार जीवन में भी चार प्रकार के यात्री होते हैं। पहले प्रकार के वह यात्री होते हैं जो संसार में लोभ, मोह, अज्ञान की नींद में रहकर अपनी यात्रा पूरी करते हैं। दूसरे प्रकार के लोग अपने भाई-बंधुओं से, रिश्तेदारोंं से, पड़ौसियोंं से लड़ते-झगड़ते जीवन पूरा करते हैं। तीसरे प्रकार के वह जो मौज-शौक, मनोरंजन और मस्ती में अपना पूरा जीवन बीता देते हैं और चौथे प्रकार के लोग वह हैं जो जीवन में जो कुछ भी घटित हो रहा है, सब शांति से देखते रहते हैं। ऐसे चौथे प्रकार के यात्री संत होते हैं, जो जीवन को समझते हुए अपनी यात्रा को पूर्ण करते हैं। ऐसे संत ही सही मायने में जीवन की यात्रा को पूर्ण कर पाते हैं। हम सभी को भी चौथे प्रकार का यात्री बनना चाहिए। इसके लिए यात्रा का उद्देश्य भी तय करना होगा। यह भी निश्चित करना होगा कि हम कहां से चले और कहां पर पहुंचना है। इससे आगे की यात्रा सुगम हो जाती है।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि हर समय में परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिए। परमात्मा के स्मरण के साथ हमें पुण्य की नौका का भी आलम्बन कर लेना चाहिए। यह कर लेते हैं तो संसार के भव सागर से तर जाते हैं।
महाराज साहब ने कहा कि सारे बंध पाप की देन है और सारे सुख पुण्य की देन है। दुनिया में दो प्रकार की नौका होती है। जिस पर हम सवार होते हैं। एक पुण्य की नौका जो लकड़ी की बनी होती है, दूसरी पाप की नौका जो लोहे की होती है। संसारी लोगों को यह मान लेना चाहिए कि अब तक जो हमने पाप कर्म किए हैं, अज्ञानवश या भूलवश वह होने थे और हो गए। लेकिन अब से और अभी से हम पाप की नौका को छोडक़र पुण्य की नौका में आ जाएं तो अब भी तैर कर संसार रूपी भव सागर को पार किया जा सकता है।
महाराज साहब ने कहा कि इस धरा का, इस धरा पर, सब धरा रह जाएगा, खाली हाथ तू आया था, खाली हाथ ही जाएगा। आज जो कुछ भी धन, सम्पदा, एश्वर्य, सुख शांति आपके पास है वह सब पूर्व जन्मों के पुण्यकर्मों का फल है। अब इस मनुष्य जीवन में आप पुण्य का कार्य करते रहें तो मोक्ष का बंध बनेगा और कुछ नहीं तो स्वर्ग तो मिलेगा ही , इसलिए पुण्य और धर्म कर्म करते रहना चाहिए।
महाराज साहब ने कहा कि अच्छा श्रावक बनने का प्रयत्न करना चाहिए। अच्छे श्रावक के जीवन में छह कार्य घटित होते हैं। इनमें से एक कार्य दान है। सच्चा और अच्छा श्रावक सुबह उठते ही यह संकल्प लेता है कि मैं आज दान करुंगा, दान के बगैर मेरा दिन नहीं जाएगा। महाराज साहब ने कहा कि याद रखो दिया हुआ कभी निष्फल नहीं जाता है। पिछले जन्म के पुण्य का फल है कि आप आज शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं। समाज में प्रतिष्ठा है। घर में खुशहाली है और आगे भी सुख चाहते हैं तो इस जन्म में भी पुण्य का अर्जन करते रहो। दान दोगे तो सुख का , पुण्य का, वैभव का पात्र बनोगे।
महाराज साहब ने चक्रवर्ती सम्राट सनन्त कुमार और उनके रसोईये गोपाल का एक प्रसंग बताकर दान की महिमा का वर्णन किया कि किस प्रकार एक रसोईया केवल सच्चे मन से दान के माध्यम द्वारा तीसरे देवलोक में इन्द्र बना।
दर्शनार्थियों के पधारने का क्रम जारी
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के स्वर्णिम दीक्षा वर्ष के पचासवें चातुर्मास पर दूर-दराज के क्षेत्रों से श्रावक संघों का आने का क्रम लगातार बना हुआ है। शनिवार को राजनंदगांव और जावरा से बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं का दल बीकानेर पहुंचकर आचार्य श्री से आशीर्वाद लिया तथा उनके मुखारविन्द से जिन वाणी का श्रवण लाभ लेकर लाभान्वित हुए।
भक्ति संगीत संध्या का आयोजन रखा
विश्ववल्लभ, युगपुरुष आचार्यप्रवर 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के स्वर्णिम दीक्षा वर्ष के उपलक्ष्य में शनिवार की शाम आठ बजे बागड़ी मोहल्ला स्थित सेठ धनराज जी ढ़ढ्ढा कोटड़ी में श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ की ओर से भजन संध्या का आयोजन किया गया। भजन संध्या में प्रसिद्ध भजन गायक विनोद सेठिया, श्रीमती कविता सेठिया, सुनील पारख सहित स्थानीय एवं बाहर से पधारे गायक कलाकार समधुर भजनों की प्रस्तुति दी।