करण समर्थ : आयएनएन भारत मुंबई
पांच-दिवसीय दिपावली पर्व के पश्चात षष्ठी तिथि को भगवान सूर्य देव और छठी माई के पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है, यही है छठ पूजा।

छठ महापर्व में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का प्रचलन और उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। इस दिन सभी महिलाएं नदी, तालाब, जलाशय या समुद्र के तट पर सूर्य को अर्घ्‍य देकर सुर्य देव की पूजा करती है। यह पर्व 4 दिनों तक मनाया जाता है, इस वर्ष 8 नंवबर से ही नहाय खा से महापर्व की शुरुआत हो जाएगी। 9 नंवबर को खरना, 10 नवंबर को सांध्य अर्घ्‍य और 11 नवंबर को उषा काल का पवित्र अर्घ्‍य दिया जाएगा।

छठ पूजा यह हिन्दू धर्म का बहुत प्राचीन त्यौहार है, जो ऊर्जा के परमेश्वर के लिए समर्पित है जिन्हें सूर्य या सूर्य षष्ठी के रूप में भी जाना जाता है। हिन्दू पृथ्वी पर हमेशा के लिये जीवन का आशीर्वाद पाने के लिए भगवान सूर्य को धन्यवाद देने के लिये यह त्यौहार मनाते हैं। लोग बहुत श्रद्धा उत्साह से भगवान सूर्य की पूजा करते हैं और अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों और बुजुर्गों के अच्छे के लिये सफलता, प्रगति तथा आरोग्य के लिए प्रार्थना करते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार सूर्य की पूजा कुछ श्रेणी रोगों के इलाज से संबंधित है जैसे कुष्ठ रोग आदि।

छठ दिन जल्दी उठकर पवित्र गंगा में नहाकर पूरे दिन उपवास रखने का रिवाज है, यहाँ तक कि वह पानी भी नहीं पीते और एक लम्बे अवधि के लिए पानी में खड़े रहते हुए उगते हुये सूर्य को प्रसाद और अर्घ्य देते हैं। यह भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाता है, जैसे: मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और नेपाल। प्राचीन हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह कार्तिक महीने याने अक्टूबर और नवम्बर महीने के छठे दिन मनाया जाता है।

छठ पूजा हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखती है और ऐसी धारणा है कि राजा द्वारा पुराने पुरोहितों से आने और भगवान सूर्य की परंपरागत पूजा करने के लिये अनुरोध किया गया था। उन्होनें प्राचीन ऋगवेद से मंत्रों और स्त्रोतों का पाठ करके सूर्य भगवान की पूजा की। प्राचीन छठ पूजा हस्तिनापुर याने आज की नई दिल्ली के पांडवों और द्रौपदी के द्वारा अपनी समस्याओं को हल करने और अपने राज्य को वापस पाने के लिये की गयी थी। यह भी माना जाता है कि, छठ पूजा सूर्य पुत्र कर्ण, जो महाभारत युद्ध के महान योद्धा था और अंगदेश आज के बिहार का मुंगेर जिले का शासक था, उसके द्वारा अपने जन्मदाता को मनाने के लिए शुरु की गयी थी।

छठ पूजा के दिन छठी मैया, याने भगवान सूर्य की पत्नी की भी श्रद्धा से पूजा की जाती है। छठी मैया को वेदों में ऊषा के नाम से भी जाना जाता है। ऊषा का अर्थ है, दिन के सुबह की पहली किरण। लोग अपनी परेशानियों को दूर करने के साथ ही साथ मोक्ष या मुक्ति पाने के लिए छठी मैया से प्रार्थना करते हैं।

छठ पूजा मनाने के पीछे दूसरी ऐतिहासिक कथा भगवान राम की है। यह माना जाता है कि, 14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान राम और माता सीता ने अयोध्या वापस आकर राज्यभिषेक के दौरान उपवास रखकर कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में भगवान सूर्य की पूजा की थी। उसी समय से, छठ पूजा हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण और परंपरागत त्यौहार बन गया और लोगों ने उसी तिथि को हर साल मनाना शुरु कर दिया।

एक कहानी और भी इससे जुड़ी है, प्राचीन काल एक राजा था जिसका नाम प्रियव्रत था और उसकी पत्नी मालिनी थी। वह दोनों खुशहाल जीवनशैली जी रहे थे किन्तु इनके जीवन में एक ही दुःख था…. उनको कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप की मदद से सन्तान प्राप्ति के आशीर्वाद के लिये बहुत बडा यज्ञ करने का निश्चय किया। यज्ञ के प्रभाव के कारण उनकी पत्नी मालिनीदेवी गर्भवती हो गयी, किन्तु नौ महीने के बाद उन्होंने मरे हुये बच्चे को जन्म दिया। इससे राजा प्रियव्रत बहुत दुःखी हुआ और उसने आत्महत्या करने का निश्चय किया। आत्महत्या करने के दौरान उसके सामने एक देवी प्रकट हुयी। देवी ने कहा, मैं देवी छठी हूँ और जो भी कोई मेरी पूजा शुद्ध मन और आत्मा से करता है वह सन्तान अवश्य प्राप्त करता है। राजा प्रियव्रत ने वैसा ही किया और उसे देवी के आशीर्वाद से मालिनीदेवी ने स्वरुप सुन्दर और प्यारी संतान को जन्म दिया। तभी से लोगों ने छठ पूजा को मनाना शुरु कर दिया।

छठ की पूजा में एक-एक विधि-विधान को महत्व दिया गया है। इन विधि-विधानों में पूजन सामग्री विशेष महत्व है, साथ ही इन सामग्री के बिना छठ पूजा अधूरा माना गया है। छठ पूजा के लिए जो पूजन सामग्री महवपूर्ण है, इसका पूरी जानकारी इस प्रकार है….‌बाँस या पीतल की सूप, बाँस के फट्टे से बने दौरा, डलिया और डगरा, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता हो, सुथनी, शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा यदि हरा हो तो अच्छा, नाशपाती, बड़ा नींबू, शहद की डिब्बी, पान, साबूत सुपारी, कैराव, सिंदूर, कपूर, कुमकुम, अक्षता के चावल, चन्दन, मिठे पकवान। इसके अतिरिक्त घर में बने हुए पकवान जैसे ठेकुवा, खस्ता, पुवा, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, इसके अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, इत्यादि छठ पूजन के सामग्री में शामिल होती है।

यह माना जाता है कि, छठ पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र स्नान लेने के बाद संयम की अवधि के 4 दिनों तक अपने मुख्य परिवार से अलग रहे । इस अवधि के दौरान वह शुद्ध भावना के साथ एक कंबल के साथ फर्श पर सोता है। यह मान्यता है, यदि किसी परिवार नें छठ पूजा शुरु कर दी तो उन्हें और उनकी अगली पीढी को भी छठ पूजा को प्रतिवर्ष करना पडेगा और इसे तभी छोडा जा सकता है, जब उस वर्ष परिवार में किसी की मृत्यु हो गयी हो।

भक्त छठ महापर्व पर मिठाई, खीर, ठेकुआ और फल सहित छोटी बाँस की टोकरी में सूर्य को प्रसाद अर्पण करते है। इस प्रसाद की शुद्धता बनाये रखने के लिए बिना नमक, प्याज और लहसुन के तैयार किया जाता है। यह चार दिन का त्यौहार है जिसमें यह विधि शामिल होती है,

पहले दिन भक्त जल्दी सुबह गंगा के पवित्र जल में स्नान करते हैं और अपने घर प्रसाद तैयार करने के लिये कुछ जल घर भी लेकर आते हैं। इस दिन घर और घर के आसपास साफ-सफाई होनी चाहिये। वह एक वक्त का खाना लेते हैं, जिसे कद्दू-भात के रूप में जाना जाता है जो केवल मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकडियों का प्रयोग करके ताँबे या मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है।

दूसरे दिन, छठ से एक दिन पहले पंचमी को, भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को पृथ्वी-धरती की पूजा के बाद सूर्य अस्त के बाद व्रत खोलते हैं। इस पूजा में खीर, पूरी और फल अर्पित करते हैं। शाम को खाने के बाद‌ उसे बिना पानी पियें छत्तीस घण्टे का उपवास रखना होता हैं।

तीसरे दिन याने छठ वाले दिन, नदी के किनारे घाट पर संध्या अर्घ्य देने के बाद पीले रंग की साडी पहनती हैं। परिवार के अन्य सदस्य पूजा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इंतजार करते हैं। छठ की रात कोसी पर पाँच गन्नों से कवर मिट्टी के दीये जलाकर पारम्परिक कार्यक्रम मनाया जाता है। पाँच गन्ने पंचतत्वों जो पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को प्रर्दशित करते हैं, जिससे मानव शरीर का निर्माण हुआ हैं।

चौथे दिन की सुबह-पारण, भक्त अपने परिवार और साथीयों के साथ गंगा नदी के किनारे बिहानिया अर्घ्य अर्पित करते है तब भक्त छठ प्रसाद खाकर व्रत खोलते है।

छठ पूजा का अनुष्ठान, शरीर और मन शुद्धिकरण द्वारा‌ मानसिक शांति प्रदान करता है। इससे ऊर्जा का स्तर तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, जलन क्रोध की आवृत्ति, साथ ही नकारात्मक भावनाओं को बहुत कम कर देता है। यह भी माना जाता है कि, छठ पूजा प्रक्रिया के उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करता है। इस तरह की सकारात्मक मान्यताएँ और रीति-रिवाज छठ अनुष्ठान को हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार बनाते हैं।

छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि से होती है। यह छठ पूजा का पहला दिन होता है, इस दिन नहाय खाय होता है। इस वर्ष नहाय-खाय 08 नवम्बर सोमवार को आता है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:40 बजे तथा सूर्यास्त शाम को 05:30 बजे पर होगा।

दूसरा दिन, लोहंडा और खरना छठ पूजा का होता है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है। इस वर्ष लोहंडा और खरना 09 नवम्बर दिन मंगलवार को है। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:41 बजे पर होगा और सूर्यास्त शाम को 05:29 बजे पर होगा।

छठ पूजा का मुख्य दिन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है। इस दिन ही छठ पूजा होती है, इस दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है ।‌ इस वर्ष छठ पूजा 10 नवम्बर बुधवार को है। इस दिन सूर्यादय 06:42 बजे पर होगा और सूर्यास्त 05:29 बजे पर होगा। छठ पूजा के लिए षष्ठी तिथि का प्रारम्भ 09 नवम्बर को सुबह 10:36 बजे से हो रहा है, जो 10 नवम्बर को सुबह 08:25 बजे तक है।

छठ पूजा का अन्तिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि होती है। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है। उसके बाद पारण कर व्रत को पूरा किया जाता है। इस वर्ष छठ पूजा का सूर्योदय अर्घ्य तथा पारण 11 नवम्बर गुरुवार को होगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:42 बजे तथा सूर्यास्त शाम को 05:28 बजे होगा।

यहां उल्लेखित सूर्योदय और सूर्यास्त समय भारत की राजधानी दिल्ली शहर अनुसार है, अंततः अपने शहर के सही समय और पंचांग की सटीक प्रामाणिकता के लिए आप अपने स्थानीय ज्योतिषी से अवश्य सलाह करें।

जय जय छठ माता की
छठ महापर्व 2021 के पावन अवसर पर भगवान सूर्य देव और छठी माई आप की सभी मनोकामनाएं पूरी करें यहीं प्रार्थना।