प्रभु श्रीराम के बाल रूप नूतन विग्रह को, श्रीराम जन्मभूमि पर बन रहे नवीन मंदिर भूतल के गर्भगृह में विराजित करके प्राण प्रतिष्ठा शुभ अवसर भारतीय जीवन संस्कृति का पुनरुत्थान होगा। अभी जो देश भर में श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र को लेकर अभियान चल रहा है वो अद्भुत प्रयास है। जन जन का राम जन्मभूमि से जुड़ाव राष्ट्रीय जीवन का शुभ संकेत है। हर भारतीय को इस अभियान में अपना योगदान देना ही चाहिए। भारतीय जीवन संस्कृति रामायण और गीतामय है। यह अनादि संस्कृति भारत को विश्व में महान बनाती है। जिसमें कर्म, धर्म और कर्तव्य सब सर्वजन हिताय ही होते हैं। मनुष्य का जीवन स्वार्थ और बंधन से परे विश्व कल्याण की भावना से जीने की सीख है। जीव मात्र के कल्याण की भावना है। समस्त जीव जगत में आत्म तत्व को एक मानकर सह अस्तित्व की भावना से जीने की प्रेरणा है। धर्म जीव जगत और प्रकृति के प्रति कर्तव्य भाव को ही माना है। अध्योध्य में आयोजित यह प्राण प्रतिष्ठा समारोह भारत को अपनी मूल जीवन संस्कृति से ओतप्रोत कर देगा। हम अपने जीवन मूल्यों को फिर से आत्मसात करेंगे। युवा पीढ़ी को नई प्रेरणा मिलेगी। भारत संस्कृति और मूल्यों के स्तर पर एक हो सकेगा। यह आयोजन नए भारत का पुरातन मूल्यों में समागम होगा। शंखध्वनि, घंटानाद और आरती नई चेतना देगी। आयोजन श्रीराम के धर्म, कर्तव्य और लोक कल्याण से जन जन को जोड़ता है। मंदिर केंद्रित कार्यक्रम सबको सामूहिक रूप से जोड़ना यानि एकात्मकता स्थापित करना है। श्रीराम जय राम जय जय राम विजय मंत्र का जाप, भजन कीर्तन, आरती पूजा हम सबको एक मंच पर लाकर जीवन संस्कृति का अहसास करवाना है। 22 जनवरी को सब घरों में दीपक, दीपमालिका और दीपोत्सव नए भारत को जीवन संस्कृति और मूल्यों के पुनरुत्थान कर नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। सब जुड़े तो एक राष्ट्र एक दीपमालिका जैसा बन जाएगा।