ओरण-गोचर बोर्ड का हो गठन, धरोहर को संरक्षण की दरकार

  भारत जैसे विविधता वाले देश में पशु-पक्षियों व मेवशियों के जीवन को लेकर बेहद ही सुन्दर व अनुकरणीय परम्पराएं रही है । भारत के विभिन्न भागों में इन पशु-पक्षियों व जीव-जन्तुओं के संरक्षण के लिए नियत अरण्य अथवा वनों को सुरक्षित रखा गया है । ऐसे में राजस्थान के परिदृश्य में राज्य भर में पशु-पक्षियों व जीव-जन्तुओं के संरक्षण हेतु लाखों बीघा में ओरण-गोचर, देववन, रूंध आदि विद्यमान है । जो हमारी सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत होने के साथ-साथ पशुपालकों, मवेशियों, वन्य जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों आदि के जीवन का आधार रही है । ओरण-गोचर क्षेत्रों का उपयोग पशु चराई, ईमारती लकड़ियों तथा ईंधन, विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां, चारा उत्पादन, वन्य जीवों की शरण स्थली, फल उत्पादन सहित कई प्रकार से सदियों से समुदाय में होता रहा है । ओरण गोचर के धार्मिक, सांस्कृतिक व आर्थिक महत्व ने जन-जन में अपार आस्था पैदा की है । वर्तमान की आपाधापी व प्रतिस्पर्धा के जीवन में ओरण-गोचर क्षेत्रों पर दिनों-दिन अतिक्रमण की घटनाएं बढ़ती जा रही है । अब तो स्थितियां विकट होती जा रही है । समुदाय में महज् एक ही सवाल चिन्ता पैदा किए ज रहा है कि इन अतिक्रमण की बढ़ती घटनाओं से ओरण-गोचर को आखिर कब मुक्ति मिलेगी ?

ओरण में अतिक्रमण
  राज्य में सांस्कृतिक व धार्मिक आस्था के नाम पर लाखों बीघा में फैली ओरण-गोचर, देवबनी व रूंध साईटें इन दिनों अतिक्रमियों की नजर में है । वहीं कई हजार बीघा भूमि आज भी अतिक्रमियों के अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी है । जिसको लेकर कई मामले प्रकाश में भी आ रहे है । राज्य भर में विभिन्न जिलों में ओरण-गोचर, देवबनी, रूंध आदि को संरक्षित करने को लेकर प्रशासन व सरकार के पास कोई पुख्ता नीति-नियम नही होने के चलते अतिक्रमण की घटनाएं बढ़ती जा रही है । ओरण-गोचर पर अतिक्रमण के मामलों में कोई सख्त व तुरन्त कार्यवाही के अभाव में अतिक्रमियों के हौंसले बुलन्द होते जा रहे है । कई स्थानों पर बाहुबलियों अथवा ताकतवर लोगों द्वारा ओरण-गोचर पर अतिक्रमण होने के बाद भी कहीं से भी चू तक नही निकलती है । प्रशासन के नुमाइन्दों द्वारा विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी के बाद भी कार्यवाही नही होने से ओरण-गोचर, देवबनी, रूंध आदि का अस्तित्व में खतरे में है ।
संरक्षण के उपाय
  ओरण-गोचर-रूंध-देवबनी आदि को बचाने के लिए राज्य सरकार को इन चारागाहों के संरक्षण व विकास के लिए कड़े व प्रभावी कानून बनाने, पृथक से ओरण-गोचर बोर्ड बनाने, ओरणों में वर्तमान में विद्यमान अतिक्रमणों को हटाने, चारागाहों को मनरेगा से जोड़ना तथा ओरण-गोचर, देवबनी, रूंध आदि के डाटा को कम्प्यूट्रीकृत करने, इन साईटों के ऑनलाईन सेटेलाईट से जोड़ने सहित कई सकारात्मक पहलुओं पर कार्य करने की महती आवश्यकता है । इन ओरण-गोचर क्षेत्रों को ग्रीन पार्क के रूप में विकसित कर मवेशियों के लिए हरे चारे की समस्या खत्म करते हुए ओरण-गोचर को संरक्षण प्रदान करना चाहिये ।