– पं. रविन्द्र शास्त्री लेख

करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद ही खास माना जाता है। इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए व्रत रखती हैं। इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 4 नवंबर 2020 को मनाया जा रहा है। करवा चौथ के व्रत में महिलाएं दिन-भर निर्जला व्रत रखती हैं, और रात में चंद्रोदय के बाद पूजा करने के बाद ही अपना व्रत पूरा करती हैं।

करवा चौथ मुहूर्त

04, नवंबर, बुधवार

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करवा चौथ पूजा मुहूर्त :17:33:28 से 20:39:14 तक

करवा चौथ चंद्रोदय समय* 20:11:59

इस दिन इस व्रत के बारे में ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी महिला या लड़की इस दिन व्रत रखती है उसके पति या होने वाले पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन हमेशा ख़ुशियों से भरा रहता है। यह व्रत सूर्योदय से पहले शुरू हो जाता है और चाँद निकलने तक रखा जाता है।

करवाचौथ का व्रत आज रात्रि के बाद शुरु होकर रात को चंद्र दर्शन के बाद ही खोला जाता है। इस दिन मान्यता के अनुसार भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। वैसे तो शादी के बाद 12 या 16 साल तक लगातार इस व्रत को करने का नियम बताया गया है लेकिन कुछ महिलाएं ताउम्र इस व्रत को रखती हैं। पति की लंबी उम्र के लिये उपवास रखती है।

करवा चौथ पूजन विधि
करवा चौथ के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठने का खास महत्व बताया गया है। सुबह सूर्योदय से पहले इसलिए उठना होता है क्योंकि देश के कई हिस्सों में सरगी की प्रथा का पालन किया जाता है। सरगी में सास अपनी बहू को खाने के लिए भोजन इत्यादि देती हैं, इसलिए सुबह उठकर स्नानादि करके महिलाएं सरगी में मिला हुआ भोजन खाती हैं, ढेर सारा पानी पीती हैं। इसके बाद भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत रखने का संकल्प लेती हैं।

करवा चौथ के दिन महिलाएं बिना कुछ खाए-पिए पूरे दिन व्रत रखती हैं।
इसके बाद शाम को चाँद निकलने के बाद पूजा करती हैं और उसके बाद ही अपना व्रत खोलती हैं।
इस दिन की पूजा के लिए शाम के समय एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवी देवताओं की स्थापना करवाई जाती है।
इसके बाद एक थाली में धूप, दीप, चंदन, रोली, सिंदूर, घी का दिया इत्यादि रखा जाता है।
चाँद निकलने से लगभग एक घंटा पहले पूजा शुरु कर देनी चाहिए।
इस दिन की पूजा में करवा चौथ की व्रत कथा सुनी जाती है।
चाँद को देखकर महिलाएं चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं, पूजा करती हैं, और उसके बाद ही अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत पूरा करती हैं।

करवा चौथ की व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार था। साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। 1 दिन साहूकार की सातों बहू और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा। शाम को जब साहूकार और उसके बेटे खाना खाने आए तो उनसे अपनी बहन को भूखा नहीं देखा गया। उन्होंने अपनी बहन को भोजन करने के लिए बार-बार अनुरोध किया लेकिन बहन ने कहा कि मैं चंद्रमा को देखे बिना और उसकी पूजा किए बिना खाना नहीं खाऊंगी।

ऐसे में सातों भाई नगर से बाहर चले गए और दूर जाकर आग जला दी। वापस घर आकर उन्होंने अपनी बहन को बोला कि देखो चाँद निकल आया है, अब उसे देख कर अपना व्रत तोड़ दो। बहन ने अग्नि को चाँद मानकर अपना व्रत तोड़ दिया। हालांकि छल से तोड़े गए इस व्रत के चलते उसका पति बीमार हो गया और घर का सारा पैसा उसकी बीमारी में खर्च हो गया।

कुछ समय बाद जब साहूकार की बेटी को अपने भाइयों का छल और अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने वापस से गणेश भगवान की पूजा विधि-विधान के साथ की, अनजाने में खुद से हुई भूल की क्षमा मांगी, जिससे उसका पति ठीक हो गया और घर में वापस धन-धान्य वापस आ गया।

करवा चौथ महत्व
क्या आप जानते हैं कि किसने सबसे पहले रखा था करवा चौथ का व्रत? करवा चौथ के व्रत की महिमा अपार बताई जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो कोई भी महिला इस व्रत को करती है ना ही सिर्फ उसका पति लंबी उम्र पाता है बल्कि उनका जीवन निरोगी भी रहता है।

हिंदू धर्म में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि यह व्रत सबसे पहले शक्ति स्वरूपा देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ के लिए रखा था। इसी व्रत के प्रभाव से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई थी और तभी से सुहागिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना करते हुए इस व्रत का पालन करती हैं।

इस व्रत के बारे में प्रचलित एक कहानी के अनुसार बताया जाता है कि एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। बहुत उपायों के बाद भी देवताओं को सफलता नहीं मिल पा रही थी तभी ब्रह्मा देव ने सभी देवताओं की पत्नियों को करवा चौथ व्रत रखने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि इस व्रत को रखने से देवता दानवों पर जीत हासिल कर लेंगे।

इसके बाद कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवियों ने अपने पतियों के लिए युद्ध में सफलता की कामना करते हुए इस व्रत को रखा और तभी से इस व्रत को रखे जाने की शुरुआत हुई। इसके अलावा कहा जाता है कि द्रौपदी ने भी पांडवों को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था।

इस दिन क्या करें और क्या ना करें?
हिंदू धर्म में जितने भी व्रत-त्योहार बताए गए हैं उन दिनों कुछ खास काम वर्जित माने जाते हैं। ऐसे में करवा चौथ के दिन भी कुछ ऐसे काम बताए गए हैं जिन्हें करने से बचना चाहिए अन्यथा इससे अशुभ माना जाता है। जाने क्या है वह काम जिसे करने से बचना चाहिए।

इस दिन नीले, भूरे, और काले रंग को अशुभता का प्रतीक माना जाता है। संभव हो तो इस दिन लाल रंग या चटक रंग के कपड़े पहने उससे अच्छे फल मिलते हैं। भूल कर भी इस दिन नीले, भूरे, या काले रंग के वस्त्र ना पहनें क्योंकि इन्हें अशुभ माना गया है। यह रंग ओजस्विता कम करता है।

इस दिन भूल से भी ना करें यह काम, किसी भी सोए हुए इंसान को नींद से ना उठाएं। किसी की भी बुराई या चुगली ना करें। आज के मॉडर्न जमाने में कुछ महिलाएं इस दिन अपना समय व्यतीत करने के लिए जुआ इत्यादि खेलती हैं। ऐसे में कहा जाता है कि व्रत के समय में इस तरह के काम करने करना शुभ नहीं होता है ऐसे में यह काम करने से जितना हो सके बचना चाहिए।

वहीं इस दिन से जुड़े कुछ ऐसे भी काम हैं जिन्हें अवश्य करना चाहिए। जैसे,
इस दिन अपनी बहू को सरगी अवश्य दें, वैसे तो सरगी का चलन भारत के कुछ हिस्सों में माना जाता है लेकिन सरगी को बेहद ही शुभ कहा जाता है। व्रत शुरु होने से पहले सास अपनी बहू को कुछ मिठाइयां पकवान, नए कपड़े, श्रृंगार के सामान इत्यादि देती हैं जिन्हें सरगी कहा जाता है। बहुएं सरगी को खाकर ही अपने व्रत की शुरुआत करती हैं।

और कुछ व्रत के बाद खाती है

पूजा से पहले और बाद में भजन कीर्तन करें, इस दिन की पूजा में भजन-कीर्तन बेहद शुभ माना जाता है। इससे ना सिर्फ वातावरण में सकारात्मकता आती है बल्कि इससे पूजा का संपूर्ण और शुभ फल भी मिलता है।
पर इस व्रत का श्रास्त्र मे नहीं है यह एक परम्परा है जो कई राज्यों में मनाए जाता हैं

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