– ओम दैया
■ शिक्षा मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की पुत्रवधू के भाई-बहनों का राजस्थान प्रशासनिक सेवा में चयन परिवार के लिए खुशखबरी है। इस जश्न के माहौल में मीडिया,भाजपा ने खलल डाल दिया है। राज्य की इस शीर्ष प्रतियोगी परीक्षा का एक स्तर और चयन प्रक्रिया की गरिमा रही है। राजस्थान में और भी कई परिवारों के एक से ज्यादा सदस्य आर.ए.एस. बने हैं लेकिन विवाद का कारण डोटासरा के रिश्तेदारों को साक्षात्कार में मिले समान अंक हैं। तीनों रिश्तेदारों को साक्षात्कार में 80-80 अंक मिले हैं। यह संयोग भी हो सकता है लेकिन लोग पूछ रहे हैं कि ऐसे सुखद संयोग नेताओं के घरों में ही क्यों होते हैं? डोटासरा सही कह रहे हैं कि बच्चे प्रतिभाशाली हैं और इनके अलावा भी कई उम्मीदवारों के 80 अंक आए हैं।
यह सही है बच्चों की क्षमता और प्रतिभा पर प्रश्नचिन्ह लगाने का अधिकार किसी को नहीं है और नेताओं के बच्चों को तो सिर्फ इसलिए लांछित नहीं किया जाना चाहिए कि वह किसी परिवार से संबंध रखते हैं। फिर भी इस प्रकरण से राजस्थान लोक सेवा आयोग की कार्यप्रणाली और इसके सदस्यों की सत्य निष्ठा पर आंच आती है। आयोग की गरिमा और इसके प्रति विश्वास बना रहे इसलिए सारे तथ्य सामने आने चाहिए।
आर.पी.एस.सी. में एक अध्यक्ष और कुछ सदस्य होते हैं। ये सदस्य प्रशासन शिक्षा या अन्य क्षेत्रों के जाने-माने ऐसे लोग होते हैं जिनकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा असंदिग्ध होती है। पिछले कुछ वर्षों से इन सदस्यों के चयन का आधार योग्यता के साथ-साथ राजनीतिक पृष्ठभूमि भी हो गया है। हर सरकार अपनी विचारधारा के लोगों को आयोग का सदस्य बनाकर उपकृत करती रही है। दुखद यह है कि अब इसमें जाति भी योग्यता का पैमाना बन गई है और इसी कारण आयोग की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। पिछले दिनों एक सदस्य के निकटवर्ती लोगों से भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 23 लाख रुपए बरामद किए। अब आर.ए.एस. में यह चमत्कार हुआ कि जिनके लिखित परीक्षा में 47% अंक है उन्हें साक्षात्कार में 80 नंबर और जिनके लिखित में 80% है उन्हें साक्षात्कार में 25 नंबर मिल रहे हैं। चर्चाएं आम है कि आर. ए. एस. इंटरव्यू के पहले कई लोग दावे कर रहे थे कि सलेक्शन करवाना है तो हमसे मिलो। हम यह नहीं मानना चाहते हैं कि ऐसा हुआ होगा लेकिन अगर ऐसा हुआ है तो उन हजारों बच्चों का विश्वास लोक सेवा आयोग से उठ जाएगा जिन्होंने जी जान लगाकर मेहनत से इस परीक्षा की तैयारी की थी और अपनी आंखों के सामने नाकाबिल लोगों को आर.ए.एस.बनते देख रहे हैं। यह टूटा हुआ विश्वास पूरी युवा पीढ़ी का मनोबल तोड़ देगा। जिस के कंधों पर आधुनिक राजस्थान के निर्माण की जिम्मेदारी है।
सिर्फ आर.ए.एस.नहीं अन्य भर्तियों में भी आरपीएससी की चयन प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। राजनेताओं का दबाव,धनबल का प्रयोग ऐसे कलंक है जो आयोग की प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। आयोग के सदस्य इतने निष्पक्ष,विद्वान और प्रतिष्ठित होने चाहिए कि उनके सामने कोई अपने रिश्तेदार के चयन की सिफारिश तक नहीं कर सके लेकिन आज हालात यह हैं कि आयोग के सदस्य अपनी विद्वता और प्रतिष्ठा के कारण नहीं बल्कि अपने राजनीतिक रसूख के कारण जाने जाते हैं। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है और आयोग को खुद ऐसे कदम उठाने होंगे कि उनकी गरिमा बनी रहे। इसके साथ ही सरकारों को विचार करना होगा कि आयोग के सदस्य इस प्रकार चुने जाएंगे कि उनको लेकर कोई भी उंगली उठाने का साहस न कर सके।