

– गरीब को सब माफ, लेकिन मध्यम के लिये बिजली, पानी, किश्त, टैक्स सबसे बड़ी मुसीबत
श्रीगंगानगर ।
कोरोना वाइरस को लेकर एक ओर जहां पूरा विश्व त्राहि-त्राहि कर रहा हैं, तो वहीं भारत में सबसे ज्यादा इसकी मार अब मध्यमवर्गीय परिवार पर पड़ रही हैं। जिसके चलते वह न तो किसी से मांग सकता हैं ओर न किसी सरकारी योजना का पात्र बन पाया हैं। तो दूसरी ओर लॉकडाउन का सबसे ज्यादा फायदा गरीब तबके को मिल रहा हैं, जहां महीने भर का राशन मिलने के साथ-साथ उन्हें विभिन्न सामाजिक संस्थाओं वाले भी राशन किट से लेकर सुबह ओर शाम भोजन घर देकर जा रहे हैं। वहीं समस्या यह नहीं कि गरीब को राहत क्यों मिल रही हैं, सबसे बड़ी समस्या यह हैं कि गरीब के साथ-साथ केन्द्र व राज्य सरकार को मध्यमवर्गीय परिवार का भी ख्याल रखना चाहिये। क्योंकि मध्यमवर्गीय परिवार हमेशा आत्म स्वाभिमान से जीने की सोच रखता हैं ओर वह हमेशा गरीबों के भले की बात करता हैं, लेकिन अब जब लॉकडाउन के दौरान स्वयं पर समस्या आ जाती हैं तो वह किसे कहें। इसलिये सरकार को सोचना चाहिये ओर मध्यमवर्गीय परिवार के बिजली, पानी, किश्त ओर टैक्स माफ करते हुए राहत प्रदान करने चाहिये।


देश में अचानक हुए पूर्णतया: लॉकडाउन के दौरान वेतनभोगी अर्थात दैनिक कार्य पर जाने वाला मध्यमवर्गीय व्यक्ति एक महीने की सैलेरी को अब तक इस्तेमाल कर चुका हैं, ओर बाकी बची जमा पूंजी को बिजली-पानी के बिल ओर हर माह आने वाली मकान, दुकान अन्य प्रकार की किश्तों में लगा चुका हैं। अब उसके पास बचा हैं तो वह पड़ोस की दुकान, जहां से वह उधार लाकर परिवार का पेट पालने को मजबूर है। तो वह भी एक महीने बाद दुकानदार राशन की राशि चुकता नहीं करने पर बंद कर देगा, जो सबसे बड़ी समस्या का कारण हैं। इसलिये अब मध्यमवर्गीय पर यह लॉकडाउन उसके परिवार पर सबसे बड़ी माहमारी बनकर मंडरा रहा है। जिसकी न तो प्रदेश सरकार को फिक्र हैं ओर न जिला प्रशासन को।
– अरे तुम्हार तो पक्का मकान हैं, तुम राशन के लायक नहीं
बिल्कुल यह शब्द हर मध्यमवर्गीय परिवार को देश से लेकर प्रदेश ओर प्रदेश से लेकर शहर के हर गली-कुचे में सुनने में मिल रहा है। जब भी जिला प्रशासन एवं रसद विभाग कार्यालय की गाड़ी या कर्मचारी राहत सामग्री देेने वार्ड में आते हैं तो इसकी सबसे बड़ी पीड़ा मध्यमवर्गीय को यह सुनकर अति दुखदायी होती हैं कि तुम्हारा तो पक्का मकान हैं तुम गरीब थोड़े ही है। तुम इस राहत राशन सामग्री के लिये पात्र नहीं हो। इसलिये मध्यमवर्गीय परिवार अपने भूखे मरते परिवार के लिये राशन भी नहीं मांग सकता हैं ओर मांगें भी तो जलालत भरी पचास ज्ञान की बातें वार्डों में आये रसद विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी सुना जाते है। वहीं मध्यमवर्गीय परिवारों ने बताया कि अब अगर पक्के मकान हैं तो क्या इन पक्के मकानों की दीवारों को खाकर पेट भरे। यह पीड़ा भी मध्यमवर्गीय परिवार की सही है। वैसे आपको चलते-चलते यह भी बता दें कि मध्यमवर्गीय परिवार ज्यादात्तर सरकार की विभिन्न योजनाओं में अयोग्य करार कर दिये जाते हैं। लेकिन जब सरकार को कोई समस्या या आर्थिक सहयोग की आवश्यकता आन पड़ती है तो यहीं मध्यमवर्गीय सबसे पहले आगे आकर अपना कर्तव्य निर्वाह करता है। लेकिन इस लॉकडाउन के समय में सरकार को भी आगे बढ़कर मध्यमवर्गीय की पीड़ा सुनते हुए राहत प्रदान करनी चाहिए।


– गरीब खाये बिरयानी, ओर मध्यमवर्गीय मरे भूखा
बिल्कुल कई जगह यह बात कहने में संकोच नहीं कर सकते कि ‘गरीब खाये बिरयानी, ओर मध्यमवर्गीय मरे भूखा’। लॉकडाउन के दौरान गरीब तबके के परिवारों को हर दूसरा-तीसरा सामाजिक कार्यकर्ता ओर संस्था राहत साम्रगी किट ओर राशन के पैकेट घर पर देकर चला जाता हैं। इन संस्थाओं द्वारा गरीब समझकर दी जाने वाली राहत सामग्री की किस तरह बेकद्री होकर यहीं सामान दुकानों पर फिर से बिकने के लिये आ जाता हैं इसके विडियों भी सोशल मीडिया पर खूब दिख रखे है। जिसके कारण दिये गये दान का कोई मोल नहीं लग रहा। संस्थायें तो गरीब का भला कर रही हैं लेकिन ज्यादात्तर जगह इन संस्थाओं को फोक्ट का माल वाली संस्था समझ लिया गया हैं। वहीं दो दिन से सोशल मीडिया में घूम रही विडियों में दिखाया जा रहा हैं कि एक गरीब तबके के परिवार के घर राशन के कई डिब्बे भरे पड़े हैं आटे की टंकी फुल भरी हुई हैं। ओर वे मीट बनाकर खा रहे हैं। इससे क्या सबक लेगें आप ओर हम।
