नई दिल्ली। राजस्थान कांग्रेस में हुई बगावत की गाज प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे पर गिरी है आलाकमान की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि पांडे ने अपने कर्तव्य का सही निर्वहन नहीं किया तथा आलाकमान को कभी हालात नहीं बताएं, यथा स्थिति से अनभिज्ञ रखा, जिसके चलते पार्टी की देशभर में अटपटी स्थिति हो गई तथा सरकार दांव पर लग गई।
अविनाश पांडे राजस्थान के प्रभारी महासचिव के रूप में लगभग सवा 3 साल रहे उनके प्रभारी रहते ही पार्टी ने राजस्थान में अपनी सरकार बनाई, उनके प्रभारी रहते राजस्थान में राष्ट्रीय नेताओं के कई दौरे हुए तथा दिल्ली में हुई राष्ट्रीय स्तर की रैली और कार्यक्रमों में राजस्थान से अच्छी संख्या में कार्यकर्ता पहुंचे, पांडे की प्रभारी महासचिव के रूप में सभी कार्यक्रमों और आयोजनों में नियमित उपस्थिति रहती थी उनका कार्यकर्ताओं से जुड़ाव भी हो गया था, लेकिन इन सबके बावजूद अविनाश पांडे अपने मूल कार्य में असफल रहे इससे इनकार नहीं किया जा सकता । प्रभारी महासचिव को आलाकमान प्रदेश में अपनी आंख नाक कान मानता है और उम्मीद रखता है कि प्रदेश की संगठन की स्थिति, नेताओं के आपसी संबंध, जनता में पार्टी की छवि आदि के बारे में प्रभारी महासचिव आलाकमान को समय-समय पर जानकारी दें।

इस काम में अविनाश पांडे पूरी तरह विफल रहे उन्होंने सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच में चल रही तनातनी की सच्चाई से आलाकमान को कभी अवगत नहीं कराया। आलाकमान का मानना है कि बगावत की जो स्थिति बनी वह 1 दिन में नहीं बन पाई उसे कई महीने लगे तथा बगावत की सच्चाई आलाकमान को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तथा संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से मालूम पड़ी क्योंकि वेणुगोपाल जून में संपन्न राज्यसभा चुनाव में राजस्थान से कांग्रेस प्रत्याशी थे जो जीतने के बाद राज्यसभा में पहुंच गए। केसी वेणुगोपाल ने चुनाव के उपरांत आलाकमान को राजस्थान की स्थिति अवगत कराते हुए चिंता जता दी थी। इसके बाद आलाकमान कुछ कदम उठाता इससे पूर्व कांग्रेस में बगावत हो गई तथा 19 विधायक सचिन पायलट के नेतृत्व में मानेसर जाकर रिसोर्ट में बैठ गए।
आलाकमान का मानना है कि प्रभारी महासचिव के रूप में यदि पांडे यथा स्थिति से आलाकमान को अवगत कराते रहते तो सचिन पायलट को बगावत करने से रोका जा सकता था। आलाकमान उनसे पद छीन कर उनकी ताकत कम कर सकता था, मुख्यमंत्री गहलोत को भी सबको साथ लेकर चलने की हिदायत दी जा सकती थी। सचिन पायलट को स्पष्ट रूप से समझाया जा सकता था कि 5 साल तक गहलोत मुख्यमंत्री रहेंगे उसके उपरांत होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनने पर उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में लाया जा सकता है।

आलाकमान के सूत्रों के अनुसार सचिन पायलट 7 साल तक अध्यक्ष पद पर आसीन रहे जो पार्टी के संविधान के अनुरूप नहीं था आलाकमान के प्रतिनिधि के तौर पर पांडे नए अध्यक्ष के लिए सहमति नहीं बना पाए, यही हाल राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर रहा, पांडे आलाकमान के सामने गहलोत और सचिन पायलट की सहमति वाली सूची नहीं पेश कर पाए इसलिए डेढ़ साल गुजरने के उपरांत भी प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हो पाई।
कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस दावे से अचंभित था कि सरकार गिराने का यह तीसरा अटेम्प्ट था जबकि पांडे ने तो किसी भी ऐसी स्थिति की जानकारी नहीं दी। आलाकमान ने यथा स्थिति का अध्ययन करते हुए दिल्ली से दो वरिष्ठ नेताओं अजय माकन और रणदीपसिंह सुरजेवाला को मुख्यमंत्री की सहायता के लिए जयपुर भेजा जो लगभग 1 माह तक प्रभारी महासचिव पांडे तथा विधायकों के साथ बाड़ाबंदी में रहे। तथा सरकार गिराने की साजिश को उन्होंने मिलकर नाकाम कराया।

आलाकमान का मानना है कि अविनाश पांडे ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों को खुश रखने का मात्र प्रयास किया इसलिए वे सारे निर्णय टालते रहे, आलाकमान को भी यही बताते रहे कि राजस्थान में सब ठीक-ठाक है। जानकारों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी राजस्थान में बगावत होने के साथ ही पांडे की रवानगी का फैसला ले चुकी थी लेकिन स्थिति सामान्य होने की प्रतीक्षा कर रही थी। और सरकार द्वारा विधानसभा में बहुमत प्राप्त करते ही उन्होंने पांडे की रवानगी कर दी।