“सूचना के अधिकार के तहत प्रार्थना पत्र करीब 3 महीने पहले देने के बाद भीआज तक कोई जवाब नहीं दिया ”

जयपुर।(दिनेश शर्मा”अधिकारी”)। सूचना का अधिकार आम आदमी की पकड़ से बाहर होता जा रहा है। सरकार के नुमाइंदे जैसे चाहे वैसे इसका चीरहरण कर देते हैं। सरकार द्वारा मांगी गई किसी सूचना का आप आदमी को तुरंत जवाब देना होता है । लेकिन वहीं सरकार पर या उसके अधिकारियों, कर्मचारियों पर कोई दबाव नहीं है। स्वायत्त शासन विभाग में बैठे उन अधिकारियों और कर्मचारियों को जो वेतन तो मोटा उठाते हैं लेकिन आम आदमी की उनको कोई फिक्र नहीं। विभाग के कर्मचारियों ने सूचना के अधिकार को तो जैसे मजाक बना दिया है। जब अधिकारियों से इस संबंध में बात की जाती है तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता।आवेदक ने 3 महीने पहले सूचना के अधिकार के तहत आवेदन किया था लेकिन सरकारी नुमाइंदों की कारगुजारियों के आगे भारत का संविधान भी बोना नज़र आता है। कानून का पालन करने के लिए सभी बाध्य हैं लेकिन यहां तो पूरा कानून ही इनके हिसाब से चलता है।

प्रार्थी ने नगर निगम में स्वायत्त शासन विभाग की शह पर कब्जा जमाए बैठी संस्था शहरी आजीविका केंद्र संस्थान को लेकर सूचना के अधिकार के तहत प्रार्थना पत्र करीब 3 महीने पहले दिया था लेकिन उसका आज तक कोई जवाब नहीं दिया गया।

प्रार्थी चक्कर काटने को मजबूर

तीन महीने गुजर जाने के बाद भी जब स्वायत्त शासन विभाग ने जवाब नहीं दिया तो प्रार्थी अपने अधिकार की बात करने वहां गया तो सही लेकिन खाली हाथ ही लौटा। कई बार चक्कर काटने के बाद ऐसा लगने लगा जैसे स्वायत्त शासन विभाग कानून से ऊपर है। वहां संविदा कर्मियों से लेकर कर्मचारी और अधिकारी सब टालने में लगे रहते हैं। किसी के पास कोई पुख्ता जवाब नहीं मिला।

कोरोना को बनाया बहाना

ये सही है कि आम आदमी को जरूर कोरोना ने अंदर तक हिला कर रख दिया लेकिन डीएलबी ने तो सूचना के अधिकार को ही आइसोलेट कर दिया। विभाग की माने तो कोरोना में कोई काम नहीं हुआ इस कारण से आरटीआई के जवाब नहीं दिया गया। लेकिन अब प्रश्न यह है कि लॉक डाउन हटने के बाद भी सूचना के अधिकार की फ़ाइल विभाग के लिए फुटबॉल बनी हुई है। जब सूचना ही अभी तक आवेदकों के पास नहीं पहुंची तो प्रथम अपील का तो पता नहीं क्या हश्र होगा।

स्टाफ की कमी का भी बहाना

जब प्रार्थी अपने आवेदन की जानकारी मांगने विभाग के सूचना सेक्शन में जाता है तो उसको स्टाफ नहीं होने का भी हवाला दिया जाता है । वहां मौजूद कर्मचारी कहते हैं हम तो काम कर रहे हैं लेकिन जब कंप्यूटर ऑपरेटर ही नहीं तो हम क्या जवाब बनाए। उनका कहना है कि 20 दिन में 5 बार हम उच्च अधिकारियों को इस समस्या से अवगत करा चुके हैं लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं हुआ।अब विभाग के अंदर की समस्या तो वही जाने लेकिन प्रार्थी अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है। सूचना का अधिकार का जवाब ही खो गया

प्रार्थी द्वारा जब मांगी गई सूचना के आवेदन के बारे में डीएलबी के सूचना विभाग से जानकारी चाही तो अपने कंप्यूटर पर देखकर वहां बैठे कर्मचारी ने जवाब दिया कि आपके आवेदन अभी तक पीडी सेक्शन की शोभा बढ़ा रहा है । लगता है शायद अभी तक वहां से जवाब आने का मुहूर्त नहीं निकला। वहीं जब प्रार्थी पीडी सेक्शन में गया तो वहां संयुक्त निदेशक वीडी सकरवाल ने कहा कि आपका जवाब तो कब का ही यहां से जा चुका है। जब उन्होंने अपने स्टाफ को आवेदन के जवाब की स्थिति जानने के लिए बुलाया तो वो टालमटोल करने लगे। थोड़ी देर बाद डिस्पेच डायरी में आवेदक को सूचना विभाग की रिसिविंग दिखा दी गई जो सही है या गलत ये सब वो ही जाने। लेकिन एक बात तो तय है कि सीएलसी के खिलाफ सूचना देने में पीडी सेक्शन टालमटोल कर रहा है। जब प्रार्थी वापस सूचना सेक्शन में जाता है तो वहां के बाबू द्वारा पूरी फाइलें खंगालने के बाद जवाब मिलता है कि हमारे पास नहीं आया। अब शायद वो आवेदन का जवाब कहीं खो गया है।

प्रथम अपील का भी नहीं पड़ता फर्क

प्रार्थी द्वारा सूचना नहीं मिलने के कारण प्रथम अपील लगाई गई उसका तो पता ही नहीं वो किस कोने में धूल फांक रही है। बार बार पीडी सेक्शन और सूचना सेक्शन में चक्कर काटने के बाद भी कोई जवाब नहीं मिलता तो ऐसा लगता है कि अधिकारी और कर्मचारियों को किसी का भी डर ही नहीं है। वे अपनी गलती छुपाने के लिए अपने उच्च अधिकारी को भी गुमराह करने से नहीं चूकते। पीडी सेक्शन में जब प्रथम अपील के बारे में पूछा गया तो वहां के कई सारे कर्मचारी प्रार्थी पर ही दबाव बनाने लगे कि हमारे पास ऑफिस कॉपी है उसकी फोटो कॉपी ले जाओ।लेकिन अपनी गलती मानने को कोई तैयार ही नहीं कि अभी तक सूचना दी ही नहीं या देना ही नहीं चाहते। लेकिन जिस तरह से वहां प्रार्थी के साथ पेश आया गया उससे तो ऐसा ही लगता है कि शहरी आजीविका केंद्र संस्थान के बारे में कोई जानकारी नहीं देना चाहता जो कि किसी न किसी मिलीभगत की तरफ इशारा करता है।कोरोना के कारण अभी सूचनाएं देने में देरी हो रही थी। हमारे यहां अभी स्टाफ की भी कमी है। जल्दी ही सुचारू रूप से सूचनाएं दी जाएगी।