

-मुकेश बोहरा अमन
प्रथम चरण के चुनाव 10 फरवरी को, 10 मार्च को आयेंगें नतीजे
भारतीय राजनीति का चाल-चलन और चेहरा दिन-प्रतिदिन बदलता जा रहा है । इस बार इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पूर्व विशेषकर उतरप्रदेश राज्य की पृष्ठभूमि में हुए बम्पर दल-बदल ने तो राजनीति में काफी उथल-पुथल पैदा कर दी । तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियों से नेताओं से अपने-अपने पाले बदले । जिस प्रकार क्रिकेट को अनिश्चिताओं का खेल कहा जाता है, वैसे ही भारतीय राजनीति भी अनिश्चिताओं के साथ आगे बढ़ती नजर आ रही है । कौन किसके साथ रहेगा, यह कुछ भी पूर्व में कह पाना असम्भव होता जा रहा है । उतरप्रदेश, पंजाब, गोवा, मणिपुर व उतराखण्ड के चुनावों के इस दौर में पिछले कुछ दिनों से दल-बदल का खेल हावी रहा है । जिसमें बड़ी संख्या में नेताओं ने कपड़ों की तरह देखते ही देखते पार्टियों को बदला । नयी पार्टी के पक्ष में पुरानी पार्टी के खिलाफ काफी जहर उगला, हमलावर हुए और मीडिया में जमकर बुराईयां की ।
आगमाी दिनों में 10 फरवरी से पांच राज्यों में सात चरणों में विधानसभा के चुनाव सम्पन्न होने है । जिसको लेकर राजनीतिक दलों का प्रचार-प्रसार भी गति पकड़ता जा रहा है । हालंकि कोविड-19 के चलते बड़ी-बड़ी रैलियों, सभाओं पर तो चुनाव आयोग ने पाबन्दी लगा रखी है परन्तु कार्यालयों के भीतर ही वर्चुअल माध्यमों से संभाएं एवं चुनावी प्रचार-प्रसार का दंगल हो रहा है । ऐसे में सोशियल मीडिया के साथ-साथ प्रिन्ट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया की भूमिका बढ़ती जा रही है । वहीं उतरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में चुनाव प्रचार-प्रसार की सरगर्मियां काफी तेज है । जहां प्रतिदिन नए-नए मुद्दे प्रकाश में आते है । जो राजनीतिक पार्टियों से लेकर आम मतदाता तक को प्रभावित करते है । वहीं कुछ मुद्दे ऐसे में होते है जो महज क्षणिक होते है, जो कुछ समय की हलचल के बाद ओझल हो जाते है ।
परन्तु भारतीय राजनीति में यह हमेशा से रहा है कि चुनावों की शुरूआती सरगर्मियों में विकास का मुद्दा काफी हावी रहता है, परन्तु ज्यों-ज्यों चुनाव प्रचार आगे बढ़ता है, त्यों-त्यों विकास का मुद्दा ओझल होता चला जाता है । भारतीय राजनीति में विकास एक सार्वभौमिक एवं शाश्वत मुद्दा हो चुका है । जिस पर हर पार्टी अपना-अपना रूख व नजरिया रखती है । परन्तु समय के साथ-साथ चुनावों में स्थानीय व क्षेत्रीय मुद्दे भी उभार में आने लगते है ।
चुनावों की घोषणा से लेकर चुनावों के दिन से पूर्व तक राजनीतिक पार्टियों की ओर से वादों, घोषाणाओं आदि की बम्पर पैदावार होती है जिसे शत-प्रतिशत काट पाना भविष्य में असम्भव-सा होता है । भारतीय राजनीति में पिछले कुछ वर्षाें में धर्म, पाकिस्तान, परिवारवाद, अपराधीकरण जैसे मुद्दे काफी प्रकाश में रहे । विकास एक मुद्दा हमेशा रहता है परन्तु वह किसी भी राजनीतिक दल के चुनाव प्रचार में पूर्णरूप से शिखर पर नही चढ़ पाता है । इन सब के बीच धर्म, जाति, भीतरी-बाहरी आदि के मुद्दे आ जाते है और चुनावों के प्रचार-प्रसार की धारा को कहीं का कहीं लाकर छोड़ देते है ।
लेकिन इन सब के बावजूद सारा दारोमदार मतदाता पर रहता है कि वो किस मुद्दे पर ठहरता है और अपना अमूल्य मतदान किस मुद्दे को लेकर किस पार्टी के पक्ष में करता है । यह हर बार की तरह इस बार भी संशय में रहेगा कि आम जनता सबसे अधिक मतदान विकास के मुद्दे पर करती है या क्षेत्रीय या धर्म अथवा अपनी-अपनी जाति के नाम पर ? भारतीय राजनीति में चुनाव प्रचार-प्रसार के तौर-तरीके एवं जनता की नस तक पहुंचना सबसे महत्वपूर्ण रहता है । पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे 10 मार्च को आने है । अब देखना यही रहेगा कि मतदाता का रूझान किन मुद्दों पर रहता है । यही से तय होगा कि इन चुनावों के नतीजों का ऊंट किस करवट बैठेगा ? और किसकी सरकार बनेगी ?
