

मथुरा (रिपोर्ट :- रजत शर्मा)।। ब्रज चौरासी कोस में एक गांव बसा है जो राधा कृष्ण की क्रीड़ा लीलाओं का साक्षी है, नाम है गांठोली। कलयुग के एकमात्र जाग्रत देव श्री गिर्राज जी यानी श्री गोवर्धन महाराज की गोद में बसा यह गांव अपने अनूठे महत्व के लिए जाना जाता है। अनुपम प्राकृतिक छटा लिए इस गांव का प्रत्येक व्यक्ति अपने को श्री गिरिराज का सेवक और राधा कृष्ण की लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी लीलाओं का दिव्य साक्षी मानता है। गांव से निकलने वाला हर पत्थर गांव वालों के लिए गिरिराज जी का रूप और पूज्यनीय है तो दूसरी तरफ गांव की हर पगडंडी गिरराज जी की और जाती दिखाई देती है जिस पर गांव का प्रत्येक गांववासी प्रातः काल मंगला आरती के दर्शन को तत्पर रहता है। दूर दूर से आए भक्त गो दर्शन और गौ सेवा के लिए इसी गांव को चुनते हैं। इस गांव में कुछ है जो अपनी ओर सभी को बरबस खींचता है, राजस्थान की सीमा से सटा यह गांव अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भी सभी को अपनी और आकर्षित करता है। कभी यह गांव पूरे उत्तर भारत में अपने सुरीले बैंडों के लिए मशहूर हुआ और हर वैवाहिक समारोहों का आकर्षण रहा तो कभी राजनीतिक रूप से उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के गांव के रूप में राजनीति का केंद्र बिंदु बना।
ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा की विश्राम स्थली भी इस गांव को कहा जा सकता है। गोवर्धन से तीन किमी दूर स्थित गांठोली गांव का नामकरण होली-लीला से जुड़ा है कहा जाता है कि यहां होली खेलने के दौरान राधा माधव सिंहासन पर विराजमान थे। तब कुछ सखियों ने उनके वस्त्रों में गांठ लगा दी। इस लीला से ही गांव का नाम ‘गांठोली’ पड़ा। इस गांव में राधा-कृष्ण ने सखियों के साथ होली खेली थी। यहां आने वाले श्रद्धालुओं को सेवा के लिए गांव का प्रत्येक गांववासी हर समय तत्पर रहता है। गिरिराज जी जतीपुरा, दानघाटी मंदिर, राधा रानी मंदिर बरसाना, परिक्रमा मार्ग के समीप होने के कारण यह ब्रज यात्रा पर आए श्रद्धालुओं के लिए सदैव आकर्षण का केंद्र रहा है । पौराणिक दृष्टि से देखा जाए तो इस गांव का विशेष महत्व है यह भगवान कृष्ण और राधा के दिव्य युगल की दिव्य लीलाओं की अनूठी निशानी रहा है। इस गांव में स्थित गुलाल कुंड भगवान श्री कृष्ण और राधा की आलौकिक लीलाओं का मंच स्थल रहा है कहा जाता है कि यहां होली के दौरान भगवान राधा-माधव, सिंहासन पर विराजमान थे। श्याम-श्यामा ने यहां अपनी सखियों के संग होली खेली।वैष्णव आस्था में श्री राधा कृष्ण की दिव्य होली लीला के स्थल के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पौराणिक कथा के अनुसार, दैवीय युगल ने गांठोली में गुलाल से जमकर होली खेली और जिस कुंड में उन्होंने होली खेलने के बाद अपने चेहरे और सिर से रंगों को धोया, उसका नाम गुलाल कुंड पड़ा। गांव को ऋषि गर्गाचार्य का निवास स्थान भी माना जाता है।
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि कैसे श्री राधा और उनकी सखियों ने फाल्गुन के महीने में गांठोली में कृष्ण के साथ होली खेली, और उनकी दिव्य लीला को तीनों लोकों ने देखा। ऐसा कहा जाता है कि फाल्गुन के महीने में कुंड के पानी का रंग गुलाबी हो जाता है। जो राधा कृष्ण की दिव्य होली खेलने का प्रमाण प्रदान करता है। गांठोली गांव अपनी ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के लिए जाना जाता है। इस गांव के लोगों की सरलता और भावभक्ति इसे अनूठा बनाती है। समय समय गांव में आने वाले आगंतुकों के लिए आधी रात को भी तैयार रहता है गांव का हर निवासी वर्तमान में कृष्ण भक्ति श्री गिराज भक्ति की संगम स्थली बना है यह गांव। ब्रज की आत्मिक अनुभूति को समेटे हुए यह गांव ब्रज का केंद्र है। आराध्य श्री गिरिराज के प्रति लगाव और अपनेपन का प्रतीक है। कहा जाता है कि ब्रज की रज मखमल बनी, कृष्ण भक्ति का राग, गिरिराज की परिक्रमा, कृष्ण चरण अनुराग। इसी भावना को समेटे है हर ब्रजवासी और गांठोली गांव वासी, चौरासी कोस के प्रत्येक ब्रजवासी के आत्मिक प्रेम का केंद्र है यह गांव भाव भक्ति, ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व, कृष्ण कालीन धरोहरों को समेटे, साधु संतों को तपोस्थली यह गांव अनूठा सभी महत्वों की गांठ लगाने वाला या संगम है।


