किसी पालिटिकल लीडर की कितनी राजनीतिक क्षमता है अथवा अपनी सरकार और प्रशासन में कितनी पकड़ है यह उनकी और से उठाए हुए जनहित के मुद्दे के क्रियान्वयन से आंका जा सकता है।

किसी पालिटिकल लीडर की कितनी राजनीतिक क्षमता है अथवा अपनी सरकार और प्रशासन में कितनी पकड़ है यह उनकी और से उठाए हुए जनहित के मुद्दे के क्रियान्वयन से आंका जा सकता है। केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री डा. बी ड़ी कल्ला बीकानेर में रेलबाई पास बनाने के लिए साथ मिलकर काम कर रहे हैं।वे एलिवेटेड रोड, अंडर ब्रिज, ओवर ब्रिज या कोटगेट रेलवे क्रासिंग की समस्या का अन्य समाधान नहीं चाहते। रानी बाजार रेलवे फाटक पर स्वीकृत अंडर ब्रिज पर राजनीतिक दखल के कारण ही काम नहीं हो रहा है। केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और कैबिनेट मंत्री कल्ला ने जिला कलक्टर की अध्यक्षता में रेलवे बाईपास के मुद्दे पर मीटिंग भी की थी। बाद में दोनों रेलवे के महा प्रबंधक व रेलवे मंत्री से भी मिले। करीब एक वर्ष होने को आया है परिणाम ढाक के तीन पात। डॉ. बी. डी. कल्ला तो तीन दशक से इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं। जब राज्य और केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही तभी कल्ला साहब इस समस्या पर जो कुछ कर पाए वो जनता के सामने है। केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल तो खुद अपनी सरकार में ज्ञापन देते हैं और अपने ही मंत्रियों को चिट्ठी लिखते हैं। यह कड़वा सच है कि अपनी सरकार के रेल मंत्री से वे सीधे अधिकार के साथ बाईपास मंजूर करवाले यह राजनीतिक स्किल उनमें नहीं है। करके दिखाओ ना मंत्री जी। जनता की परेशानी से जुड़ा मुद्दा है। जनता को लोलीपॉप तो मत दो। रेल बाईपास को लेकर जनता की आपने खूब उम्मीदें जगा दी है। इस मुद्दे पर आप अपने बयानों को याद करो। आपकी नैतिक जिम्मेदारी बनती है बाईपास बने। आप जनता के प्रतिनिधि हो। जनता को अंधेरे में थोड़े ही रख सकते हो। आप सोचिए की इस मुद्दे की गंभीरता कितनी है। हर नागरिक पीड़ित है। तत्कालीन कलक्टर नमित मेहता तो सार्वजनिक रूप से कहकर गए है कि रेलवे तकनीकी रूप से अंडर ब्रिज की स्वीकृति दी है। यही हो सकेगा।
डा. कल्ला ने अभी फिर मंडल रेल प्रबंधक राजीव श्रीवास्तव के साथ रेल बाईपास की संभावनाओं पर चर्चा की। इस चर्चा का वैसे कोई ओचित्य नहीं है। केवल राजनीतिक अर्थ ही है। वे पहले जयपुर में भी रेलवे के महा प्रबंधक से मिल चुके हैं। रेल मंत्री से मिलने बाद फिर डी आर एम से मिलने की जरूरत का अर्थ है कि रेल मंत्री की बाईपास को हरी झंडी नहीं है। इस मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री और राजस्थान के कैबिनेट मंत्री की थू थू होनी है। मंत्री से मिलने पर डी आर एम से संभानाओं पर चर्चा से स्थिति स्पष्ट है। केंद्रीय मंत्री और कैबिनेट मंत्री रेल बाईपास पर अभी तक कुछ भी करवाने में समर्थ नहीं है। केवल और केवल जनता के साथ थोथी राजनीति कर वाह वाही ले रहे हैं। यह सच नहीं है तो बयानों के मुताबिक धरातल पर करके दिखाओ ना। डा. कल्ला के साथ डी आर एम से मिलने के दौरान सेवानिवृत्त रेल अधिकारी किशन लाल मेघवाल भी मौजूद रहे। कल्ला का कहना ठीक हो सकता है कि रेलवे फाटकों से जुड़ी समस्या का सर्वश्रेष्ठ समाधान रेल बाईपास ही है। पर कल्ला जी रेलवे मान कहां रहा। तीन दशक से इस दिशा में आप रेलवे से पहल करने की गुहार लगा रहे हो। राज्य सरकार ने वर्ष 1998 से 2003 के बीच रेल बाईपास के लिए 61.62 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे, लेकिन 2003 के बाद इसे ड्रॉप कर दिया गया। अब इन बातों का रेलवे में कोई मायने नहीं है। यह राजनीति राग अलापना मात्र रह गया है। राज्य सरकार की ओर से वापस भूमि और पूर्व की भांति राशि देने की बात के मायने कहां है। बाते हैं बातों क्या…?
डा. कल्ला ने फिर कहा है कि शीघ्र ही रेलवे के जनरल मैनेजर से मुलाकात करते हुए इस संबंध में बात की जाएगी। साथ ही केन्द्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के साथ केन्द्रीय रेल मंत्री के समक्ष भी यह बात रखने के प्रयास होंगे। कितनी बार ? आपकी बातों का आदर। कुछ करके तो दिखाओ। नहीं तो केंद्रीय मंत्री और कैबिनेट मंत्री होते हुए भी कुछ नहीं कर पाने से जनता आपके राजनीतिक कैरियर के रेलवे फाटक पर लाल झंडी टंग सकती है। याद रखना।