कोरोना कमोबेश दुनिया के सभी देशों में फैल गया है। चीन और भारत दुनिया के सबसे बड़े देश हैं लेकिन जब हम सारी दुनिया के आंकड़ें देखते हैं तो हमें लगता है कि इस कोरोना के राक्षस से लड़ने में भारत सारी दुनिया में सबसे आगे है। इस कोरोना-विरोधी युद्ध का आरंभ यदि फरवरी या मार्च के पहले सप्ताह में ही हो जाता तो भारत की स्वस्थता पर सारी दुनिया दांतों तले अपनी उंगली दबा लेती। अब भी भारत के करोड़ों लोग जिस धैर्य और संयम का परिचय दे रहे हैं, वह विलक्षण हैं। लाखों प्रवासी मजदूर अपने गांवों की तरफ लौटते-लौटते रास्ते में ही अटक गए। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के आदेश का पालन किया और पिछले दो हफ्तों से वे तंबुओं और शिविरों में अपना वक्त गुजार रहे हैं।
सारी सरकारें और स्वयंसेवी संगठन दिन-रात उनकी मदद में लगे हुए हैं। हमारे नेता लोग काफी दब्बू और घर-घुस्सू सिद्ध हो रहे हैं लेकिन उनकी तारीफ करनी पड़ेगी कि इस संकट के समय में वे घटिया राजनीति नहीं कर रहे हैं। क्या यह कम महत्वपूर्ण खबर है कि लगभग सारे गैर-भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने तालाबंदी बढ़ाने की बात आगे होकर कही है ? देश में जहां-जहां कर्फ्यू लगा हुआ है, वहां-वहां सरकारी कर्मचारी और स्वयंसेवक लोग घरों में जाकर मुफ्त सामान बांट रहे हैं। लाखों लोगों को रेसाई की गैस-टंकी और खाद्य-सामग्री घर-बैठे मिल रही है। कोरोना-मरीजों की एकांत चिकित्सा के लिए दर्जनों शहरों और रेल के डिब्बों में हजारों जगह बना ली गई हैं। कोरोना के सस्ते जांच-यंत्र, सांस-यंत्र, सस्ती मुखपट्टियां, घरेलू नुस्खे और दवाइयां भी लोगों को मिलने लगी हैं।
दुनिया के कई देश अब भारत से दवाइयां मंगा रहे हैं। भारत इन सब कोरोनाग्रस्त देशों का त्राता-सा बन गया है। दूसरी तालाबंदी के दौरान भारत जो ढील देगा और सख्तियां करेगा, दुनिया के दूसरे देश उससे प्रेरणा लेंगे। यह कोरोना-संकट तीसरे विश्व-युद्ध की तरह पृथ्वी पर अवतरित हुआ है। दुनिया की महाशक्तियों का इसने दम फुला दिया है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रुस और चीन जैसी महाशक्तियां आज त्राहि-माम, त्राहि-माम कर रही हैं। ऐसे विकट समय में भारत विश्व की आशा बनकर उभर रहा है। इस मौके पर भारत की सांस्कृतिक परंपराओं, (नमस्ते और स्पर्श-भेद), ताजा और शाकाहारी भोजन-पद्धति तथा घरेलू नुस्खों का अनुशीलन सारा संसार करना चाहेगा।