– प्रतिदिन -राकेश दुबे
अमेरिका आस्ट्रेलिया और अन्य कुछ देशों कोरोना से बचाव का टीका लगना शुरू हो गया है उसके सुखद-दुखद परिणाम सामने आने लगे हैं | भारत में भी राज्य टीकाकरण की अपनी योजनाये बनाने के लग गये है | ये सब कितना कारगर होगा और टीकाकरण अभियान किस रूप में आगे बढे़गा, इसको लेकर अभी स्थिति साफ़ नहीं हुई है। इसका एक कारण है कि देश के शिक्षाविदों , सरकार और सूचनाओं में अंतर है। टीकाकरण अभियान की रूपरेखा और इसके सफल संचालन की समय-सीमा को लेकर भी अलग-अलग खबरें आ रही हैं।
सबसे पहले जहाँ वैक्सीन दी गई वहां वो कैसा काम कर रही हैं| 2 ब्रिटेन में दवाओं व स्वास्थ्य सेवा उत्पादों की निगरानी करने वाली राष्ट्रीय एजेंसी ‘एमएचआरए’ ने तीसरे चरण के परीक्षण के आधार पर फाइजर और बायोएनटेक की एमआरएनए-आधारित कोरोना वैक्सीन को अपने यहां अस्थाई तौर पर इस्तेमाल की मंजूरी दे दी। इस तरह, वह दुनिया की पहली नियामक संस्था बन गई, जिसने ऐसी मंजूरी दी है।, एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार हो रहे टीके ने भी, जो कि चिम्पांजी से लिए गए वायरस के आधार पर बना है, परीक्षणों में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित कम से कम ५० प्रतिशत प्रभावशाली होने संबंधी बेंचमार्क से बेहतर नतीजा दिखाया है। इससे यह धारणा मजबूत हुई है कि स्पाइक प्रोटीन के आधार पर तैयार टीके कारगर होंगे।
सब जानते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन टीकाकरण के लिए जरूरी आपूर्ति-शृंखला के प्रबंधन के छह ‘राइट्स’ की वकालत करता है- राइट प्रोडक्ट (सही उत्पाद), राइट क्वांटिटी (सही मात्रा), राइट कंडिशन (सही स्थिति), राइट प्लेस (सही जगह), राइट टाइम (सही वक्त) और राइट कॉस्ट (सही कीमत), यानी सही वैक्सीन, उसकी सही मात्रा, उसका परिवहन, भंडारण, वितरण, टीकाकरण आदि सभी में संतुलन की दरकार होती है। लिहाजा, रेफ्रिजरेटेड गाड़ियों की उपलब्धता, परिवहन की सुरक्षा, टीके की चोरी और नकली उत्पादों की मिलावट रोकने जैसे कई मोर्चों पर भी हमें तैयारी रखनी होगी।