प्रतिदिन। -राकेश दुबे
दो- तीन पहले भोपाल की नरोन्हा प्रशासनिक अकादमी के अतिथिगृह में कुछ मित्र मिले सबका एक समान प्रश्न था कि “यह कोरोना दुष्काल कब तक चलेगा ?” चूँकि मै पिछले एक वर्ष से निरंतर इस दुष्काल के प्रभाव को देख समझ और लिख पढ़ रहा हूँ तो सबकी उत्तर की अपेक्षा मुझसे ही थी | अपने आकलन अध्ययन और बहुत समझने के बाद मैंने जो उत्तर दिया उससे सब सहमत हो गये | मेरा उत्तर था जब तक बाज़ार चाहेगा |विचार करेंगे तो आप भी अपने को इससे सहमत पाएंगे, परन्तु आप सतर्क रहे तो यह वायरस और बाज़ार दोनों आपका कुछ बिगाड़ नहीं पायेगा।
ऐसे वक्त में जब देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या और पीड़ितों की मौत के आंकड़ों में गिरावट दर्ज की जा रही थी, ब्रिटेन में कोरोना वायरस के रूप बदलने के घटनाक्रम ने हमारी चिंता बढ़ा दी । चिंता की वजह यह है कि ब्रिटेन से आये तमाम लोग कोरोना जांच कराए बगैर अपने गंतव्य स्थलों को निकल गये और अब देश का सोया पड़ा तंत्र उन लोगों की तलाश में लगा है जो ब्रिटेन से आने के बाद नहीं मिल रहे हैं। ये हर देशवासी की गहरी चिंता का विषय है क्योंकि ब्रिटेन में कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन ने दुनिया को चौंकाया है। जो पहले वायरस के मुकाबले सत्तर फीसदी अधिक तेजी से फैलता है।
भारत में इस संक्रमण को रोक पाना आबादी के कारण बड़ी चुनौती है। हमारे देश में जनसंख्या का घनत्व ब्रिटेन समेत अन्य देशों के मुकाबले बहुत ज्यादा है जो संक्रमण के तेजी से फैलने क लिए मुफीद है। प्रवासी भारतीयों के देश लौटने पर बरती गई लापरवाही हमारे तंत्र की कोताही को भी उजागर करती है।
निस्संदेह, एक नागरिक के रूप में भी हम समाज के प्रति अपने दायित्वों के निर्वहन में चूकते हैं। बहुत संभव है कि ब्रिटेन में सामने आया नया स्ट्रेन घातक हो सकता है। ऐसे में ब्रिटेन से आने वाले लोगों को ईमानदारी से सरकारी एजेंसियों को सूचित करना चाहिए था और वे कोरोना जांच के लिये आगे आते। लेकिन अब भी ऐसा नहीं हुआ और पहले भी ऐसा नहीं हुआ था। यह तथ्य सर्वविदित है कि चीन में संक्रमण फैलने के बाद वुहान से आने वाले देसी-विदेशी नागरिकों की जांच में लापरवाही बरती गई थी। यदि समय रहते कार्रवाई की गई होती तो शायद देश को इतनी बड़ी कीमत न चुकानी पड़ती। संक्रमितों का आंकड़ा एक करोड़ पार करना और मृतकों की संख्या एक लाख से ऊपर जाना इस आपराधिक लापरवाही की ही देन है।
यूरोप व एशिया के कई देशों में शुरुआती दौर की सतर्कता से संक्रमण पर काबू पाने में सफलता पाई गई है। जिस देश में चिकित्सा तंत्र पहले ही चरमराया हो, वहां एक महामारी से जूझना बड़ी चुनौती साबित हुआ है। वहीं एक नागरिक के तौर पर हमारा गैर जिम्मेदाराना व्यवहार भी संक्रमण के विस्तार का कारक रहा है।
आपका हमारा यह आलस्यपूर्ण लापरवाह नजरिया हमेशा किसी ऐसे उपाय को खोजता है जिसे आम बोलचाल में “रेडीमेड” कहा जाता है और इसका पहला पायदान बाज़ार होता है।अब मामला आपके और आपके अपनों के प्राणों का है और “बाज़ार” कभी सदाशयी साबित नहीं हुए हैं।