कोलकाता, 31 मार्च । ममता बनर्जी और शिशिर अधिकारी के लिए है करो या मरो का चुनाव हो गया है । ममता के लिए चुनाव हारती है तो उनका राजनीतिक केरियर पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा और अधिकारी अगर यह चुनाव हारते हैं तो उनका राजनीतिक कैरियर प्रभावित नहीं होगा।
इधर इस चुनाव में शेख और ताहेर ने अपनी पार्टी तृणमूल का झंडा उठा रखा है। पॉल अब सुवेंदु अधिकारी के साथ है। जयदीप घोष कहते हैं कि नंदीग्राम में तीस प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं। इसलिए पॉल और उनके नेता सुवेंदु ने हिंदुत्व के राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर जीत की चौसर बिछाई है। सुवेंदु के पिता शिशिर अधिकारी की राजनीतिक विरासत बने रहने के लिए जरूरी है कि सुवेंदु जीत जाएं। वहीं, ताहेर और शेख की टीम के मो. सलीम कहते हैं कि ममता बनर्जी नहीं जीती तो फिर पश्चिम बंगाल ही हाथ से निकल जाएगा। इसलिए लड़ाई कांटे की है, हलांकि जीत ममता की ही पक्की है। वैसे अधिकारी परिवार राजनीति का पुराना और सधा हुआ खिलाड़ी है। शिशिर, शिवेन्दु, सुवेंदु सब धीरे-धीरे कद-पद वाले नेता हो चुके हैं। शांतनु बनर्जी कहते हैं कि नंदीग्राम में चप्पे-चप्पे पर सुवेंदु अधिकारी ने तृणमूल का संगठन खड़ा कर रखा था। पिछले दस साल ममता बनर्जी मुख्यमंत्री जरूर रही, लेकिन कभी नंदीग्राम नहीं गई। सब सुवेंदु के ही कंधे पर रहा।सुवेंदु पर पुरा भरोसा किया । अब सुवेंदु तृममूल छोड़कर भाजपा में चले गए हैं तो साथ में 30-35 प्रतिशत तृणमूल के स्थानीय नेता भी चले गए हैं। मामला दिलचस्प है। देखना है किसका होता है नंदीग्राम।
कौन हैं शेख, ताहेर और पाल
सूफियाना शेख, अबु ताहेर और मेघनाथ पॉल। नंदीग्राम में कभी तृणमूल और सुवेंदु अधिकारी के तीन राजनीतिक कमांडर थे। अब इनमें से सूफियाना और ताहेर तो तृणमूल में हैं। ममता के साथ प्रचार कर रहे हैं। जबकि मेघनाथ पाल सुवेंदु के साथ भाजपाई हो गए हैं। तीनों की नंदीग्राम में मतदाताओं के बीच में गहरी पैठ है। इसी को ध्यान में रखकर ममता बनर्जी ने पाल से भी मदद मांगी थी। 30 प्रतिशत मुस्लिम वोटर वाले नंदीग्राम को 2016 में सुवेंदु ने 68 हजार मतों से जीता था। टीम सुवेंदु मानकर चल रही है कि इस 30 प्रतिशत मतदाताओं में से बहुत कम ही उनके साथ आएंगे। इसलिए वह खुलकर हिन्दुत्व का कार्ड खेल रहे हैं।
केवल हिन्दुत्व के कार्ड से सुवेंदु के लिए आसान नहीं नंदीग्राम.
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने नंदीग्राम में कैंप करके सुवेंदु के हिन्दुत्व कार्ड को काफी मजबूती दे दी है। भाजपा के पश्चिम बंगाल के उपाध्यक्ष राजकमल पाठक कहते हैं कि नंदीग्राम ममता के लिए बहुत आसान नहीं है। लेकिन दीपक सान्याल कहते हैं कि ममता को हराना सुवेंदु के लिए भी आसान नहीं है, क्योंकि नंदीग्राम के 70 प्रतिशत हिन्दू मतदाता सुवेंदु को वोट डालने नहीं जा रहे हैं। सान्याल का कहना है कि यदि इतने मतदाता सुवेंदु को वोट डाल दें तो निश्चित रूप से ममता चुनाव हार जाएंगी। ममता बनर्जी ने पिछले सवा साल से भाजपा की रणनीति को भांपकर पूरे बंगाल में खूब सॉफ्ट हिन्दुत्व का कार्ड खेला है। ममता ने अपना गोत्र शांडिल्य और पार्टी का गोत्र मां, माटी, मानुष बताया है। सनातन धर्म के पुजारियों के लिए राज सहायता की घोषणा समेत तमाम प्रयास किए हैं। दूसरे, तृणमूल के सभी हिन्दूओं ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन भी नहीं थामा है। बहुत हिंदू मतदाता अभी तृणमूल मूल के साथ है। वरिष्ठ पत्रकार बनर्जी कहते हैं कि कुछ भी हो पश्चिम बंगाल में राजनीतिक चेहरे के रूप में ममता बनर्जी के सामने सुवेंदु अधिकारी कुछ भी नहीं है और जिस तरह से ममता बनर्जी को जन समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है, उससे साफ लगता है कि भले वह कम अंतर से जीतें, लेकिन सुवेंदु से सीट छीन लेंगी।
क्या कहते हैं शिशिर अधिकारी?
सुवेन्दु के पिता हैं, तृणमूल से सांसद और अब भाजपा में शामिल हैं। शिशिर अधिकारी पंचायत चुनाव से उठे जमीनी नेता हैं। नगर निगम से लेकर संसद तक अपनी जीत का लगातार परचम फहराया है। पत्रकारों को साफ कहते हैं कि क्षेत्र हमारा है। अब हमारा लड़का चुनाव लड़ रहा है तो जीतेगा। जनता ममता बनर्जी को जिताने के मूड में बिल्कुल नहीं है। दो मई को स्थिति साफ हो जाएगी। राज्य में प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह पर भरोसा करके लोग विकास के लिए भाजपा को वोट देंगे। वैसे भी भाजपा ने नंदीग्राम जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है।
भाजपा के लिए ममता बनर्जी का मनोबल तोड़ना जरूरी?
भाजपा के एक पश्चिम बंगाल के उपाध्यक्ष की सुनिए वो ऑफ दि रिकार्ड कहते हैं कि सुवेंदु अधिकारी मंच से पश्चिम बंगाल को चलाने की बात कर रहे हैं। आखिर ऐसी बात किसके बूते कर रहे हैं? क्योंकि न तो भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने और न ही प्रधानमंत्री मोदी या गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें पार्टी का मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है। सूत्र का कहना है कि बंगाल भाजपा का कोई नेता मंच से तो क्या छिपे तौर पर भी ऐसा नहीं बोल रहा है। इसका मतलब समझिए? सूत्र का कहना है कि इसके बाद भी भाजपा ने नंदीग्राम में केंद्रीय मंत्रियों, नेताओं, दूसरे राज्यों के नेताओं, संघ के प्रचारकों, कार्यकर्ताओं की फौज लगा रखी है। रणनीतिकार सूत्र का कहना है कि फिलहाल हमारा मकसद नंदीग्राम में ममता बनर्जी को घेरकर उनके मनोबल को तोडऩा है। क्यों कि अभी इसके बाद छह चरणों के चुनाव बाकी हैं। अगर ममता बनर्जी नंदीग्राम में हार की स्थिति देखकर तंग हो गई तो आगे हमें बड़ा फायदा मिल सकता है। नंदीग्राम का चुनाव ऐतिहासिक चुनाव होगा परन्तु भाजपा की रणनीति ममता को उलझाने की है भाजपा के रणनीतिकार मानकर चलते हैं की ममता को यहां से हरा नहीं सकते । और ममता का मनोबल बहुत मजबूत है तभी तो उन्होंने दो जगह से नहीं केवल नंदीग्राम से चुनाव लड़ा है। अब देखना है वोट किसको ज्यादा मिलते हैं और मुख्यमंत्री की सीट पर कौन बैठता है ।