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कई लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि क्या भारत और चीन के बीच युद्ध होने की संभावना है ? इसके वे तीन कारण बताते हैं। पहला, लद्दाख से दोनों देशों के बीच तनाव की खबर आने पर पहले रक्षा मंत्री ने सेनापतियों के साथ बैठक की और उसके बाद प्रधानमंत्री ने भी उनके साथ गंभीर विचार-विमर्श किया। कोरोना-संकट की गंभीरता के बावजूद संपूर्ण शासन-तंत्र द्वारा भारत-चीन मुद्दों पर घंटों खर्च करने का अर्थ क्या है? दूसरा, लद्दाख और सिक्किम की भारतीय सीमाओं के पास तीन-चार स्थानों पर चीनी सेनाओं के असाधारण जमावड़े का संदेश क्या है ? अपने सीमा-पार क्षेत्रों में चीन ने पहले से मजबूत सड़कें, बंकर और फौजी अड्डे बना रखे हैं।

अब हर चौकी पर उसने फौजियों की संख्या बढ़ा दी है। तीसरा, भारत में काम कर रहे चीनी कर्मचारियों, व्यापारियों, अफसरों और यात्रियों को वापस चीन ले जाने की कल अचानक घोषणा हुई है। किसी देश से अपने नागरिकों की इस तरह की थोक-वापसी का कारण क्या हो सकता है ? अपने नागरिकों की इस तरह की सामूहिक वापसी कोई भी देश तभी करता है, जब उसे युद्ध का खतरा हो। इस खतरे के अंदेशे को बढ़ाने में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अंग्रेजी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ का भी योगदान है। उसमें छपे एक लेख में भारत को धमकी दी गई है। उसको उसकी आक्रामकता के लिए सावधान किया गया है। उसे अमेरिकी चश्मा उतारकर चीन की तरफ देखने के लिए कहा गया है। कुछ विशेषज्ञों ने मुझे यह भी कहा कि भारत से भिड़कर चीन दुनिया का ध्यान बंटाने की रणनीति बना रहा है याने चीन चाहता है कि कोरोना की विश्व-व्यापी महामारी फैलाने में चीन की भूमिका को भूलकर लोगों का ध्यान भारत-चीन युद्ध के मैदान में भटक जाए। उनका मानना यह भी है कि चीन से उखड़नेवाले अमेरिकी उद्योग-धंधे भारत की झोली में न आन पड़ें, इसकी चिंता भी चीन को सता रही है।

भारत से भिड़कर वह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहता है और अपनी भड़ास भी निकालना चाहता है। उपरोक्त सारे तर्क और तथ्य प्रभावशाली तो हैं लेकिन मुझे नहीं लगता कि वर्तमान परिस्थितियों में भारत या चीन युद्ध करने की मनस्थिति में हैं। जो चीन जापान और ताइवान को गीदड़भभकियां देता रहा और जो दक्षिण कोरिया और हांगकांग को काबू नहीं कर सका, वह भारत पर हाथ डालने का दुस्साहस कैसे करेगा, क्यों करेगा ?