

जयपुर।सीकर के सांसद स्वामी सुमेधानंद सरस्वती की इन दिनों दांतारामगढ़ में सक्रियता दिखाई दे रही है। पंद्रह मई को स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत के जन्म शताब्दी समारोह को भव्य बनाने के लिए बाबोसा के नवासे अभिमन्यु सिंह और स्वामी सुमेधानंद सरस्वती ने अपनी संपूर्ण ताकत झौंक दी है, स्वामी सुमेधानंद सरस्वती हर बैठक में भाग ले रहे हैं। वैसे तो स्वामी सुमेधानंद सरस्वती ने दांतारामगढ़ को गोद ले रखा है, किंतु दांतारामगढ़ के प्रति उनकी आसक्ति बढ़ती जा रही है। आसक्ति का मूल कारण है सत्ता प्राप्ति। राजस्थान के दस सांसदों को 2023 के विधानसभा चुनाव में उतारने का मानस भाजपा बना चुकी है। इनमें बालकनाथ, सीपी जोशी, नरेन्द्र खीचड़, राहुल कस्वां, गजेन्द्र सिंह शेखावत, स्वामी सुमेधानंद सरस्वती, दीया कुमारी, अश्विनी वैष्णव आदि है। इस रणनीति के तहत दांतारामगढ़ में कमल का फूल खिलाने के लिए स्वामी सुमेधानंद सरस्वती का समर में उतारा जाना तय है। 1977 के बाद दांतारामगढ़ में बाहरी और भारी उम्मीदवार ने ही कद्दावर नेता नारायण सिंह को टक्कर दी है। साल 1990 में ताऊ देवीलाल चौटाला ने नारायण सिंह ने तथा 2009 में अमराराम ने सियासी समर में पटकनी दी। अजय चौटाला जनता के प्रत्याशी थे तथा भाजपा का समर्थन था। जबकि अमराराम दांतारामगढ़ से कम्युनिस्ट पार्टी से जीतने वाले पहले विधायक बनें। स्वर्गीय भैरोंसिंह ने यहां पहला चुनाव लड़ा और जीतकर वे विधानसभा में पहुंचे। 1957, 1967 और 1977 के तीन चुनाव राजर्षि दांता ठाकुर ने जीते। 1962 में बाटडा़नाऊ के जगन सिंह बाटड़ ने कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा और उन्होंने विजयश्री का वरण किया। 1980 में भाजपा के प्रादुर्भाव के बाद से अब तक भाजपा का यहां खाता नहीं खुला। संख्या की दृष्टि से यहां जाट सर्वाधिक ताकतवर जाति है तथा कुमावत दूसरी सबसे बड़ी जाति है। 2003 में झुंझुनूं के बसंत मोरवाल ने कुमावत समाज में राजनीतिक चेतना जगाई और लामबंद किया। इस एकजुटता का परिणाम है कि यहां से नागौर भीष्म पितामह हरीश कुमावत को दो बार टिकिट दी गई। मगर दोनों बार उनको हार को मुंह देखना पड़ा। इससे पहले एक बार जाट को तथा एक बार ब्राह्मण को टिकिट दी गई मगर दोनों ही जीत नहीं सकते। जन संघ, भाजपा से दस बार राजपूत प्रत्याशियों को टिकिट दी गई। दस में से चार बार राजपूत प्रत्याशियों की जीत हुई ।