क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है - OmExpress

‘राजस्थानी रै बिना क्यांरो राजस्थान’ का झलका दर्द

लूणकरनसर, 21 फरवरी। मायड़ भाषा राजस्थानी की मान्यता को लेकर ‘राजस्थानी रै बिना क्यांरो राजस्थान’ कार्यक्रम इक्कीस एकेडमी फॉर एक्सीलेंस, गोपल्याण (लूणकरणसर) में आयोजित किया किया। इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार डॉ. हरिमोहन सारस्वत ने कहा कि राजस्थानी भाषा का साहित्य अत्यंत समृद्ध है। राजस्थान की सुरंगी संस्कृति राजस्थानी भाषा के माध्यम से ही सुरक्षित रह सकती है। राजस्थानी के बिना राजस्थान अधूरा है। संस्था प्रधान और युवा साहित्यकार राजूराम बिजारणियां ने कहा कि राजनैतिक इच्छाशक्ति से ही राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता संभव है। शिक्षा के अधिकार कानून में बच्चे को उसकी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा देने की वकालत की गई है, जबकि राजस्थान का विद्यार्थी इससे वंचित है। संस्थाध्यक्ष आशा शर्मा ने विभिन्न प्राचीन ग्रंथों का हवाला देते हुए कहा कि राजस्थानी भाषा का इतिहास वर्षों पुराना है।

राजस्थान का लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है। इस कार्यक्रम में सिद्धार्थ रूंख, अनिता महला ने राजस्थानी की समृद्ध साहित्यिक विरासत के उदाहरण देते हुए राजस्थानी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने और प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनाने की वकालत की। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने बढ़ चढ़कर भागीदारी निभाई। तुषार बांगड़वा, रवीना, हंसराज, नरेन्द्र सिद्ध, साक्षी, विष्णु, आरती, वासुदेव सारण आदि ने दमदार उपस्थिति दर्ज करवाई। कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्यार्थी संजू प्रजापत ने की।