विशेष संपादकीय(हरीश गुप्ता )-जयपुर । श्री राजपूत करणी सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या ने पुलिस तंत्र पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया। सिविल पुलिस से लेकर एसओजी अपने कर्तव्य से पीछे क्यों हटी? आज जब एक जान चली गई तो आम व्यक्ति परेशान हो रहा है।
गोगामेड़ी की दिनदहाड़े हत्या पुलिस तंत्र पर करारा तमाचा है उसका कारण है कि करीब आठ-नौ महीने पहले एटीएस को पता चल गया था कि बठिंडा जेल में संपत नेहरा गैंगस्टर गोगामेड़ी की हत्या की योजना बना रहा है। बाद में एटीएस ने इसकी जानकारी पुलिस तंत्र के सभी जिम्मेदारों को दे दी थी। अब सवाल खड़ा होता है कि उक्त सूचना को ‘जिम्मेदार’ कैसे पीकर पचा गए?
सबसे बड़ी बात तो यह है कि खुद गोगामेड़ी ने जान को खतरा बात कर सुरक्षा की मांग की थी, फिर भी किसी के जूं तक नहीं रेंगी। सवाल खड़ा होता है पुलिस तंत्र आखिर किस महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त है? ऐसा क्या कार्य है जो इंसान की जान से ज्यादा जरूरी है?
गोगामेड़ी की हत्या के बाद अब सवालों व चर्चाओं के दौर शुरू हो गए। प्रत्येक झुंड में चर्चा है तो पुलिस कार्य प्रणाली की। इस घटना के बाद सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में है एसओजी का जमीनी प्रेम। यह हम नहीं कह रहे बल्कि हर तरफ यह चर्चा है, ‘एसओजी की बड़ी मशीनरी जमीनों के काम में लगी हुई है।’ ‘…दूसरे शब्दों में कहें तो विवादित जमीनों के ‘कारोबार’ में लिप्त है।’ इसके पीछे तर्क दिए जा रहे हैं कि पेपर लीक मामले में एसओजी ने दो बार रिमांड लेकर कौन तीर चला दिया?
सूत्रों की मानें तो चर्चाएं जोरों पर है, ‘एसओजी में इन दिनों जो फ़ाइलें हैं, उनमें 90 प्रतिशत जमीनों की है।’ ‘…परिवादियों को फर्जी पट्टे से न्याय मिले या ना मिले, लग्जरी गाड़ियों वाले भू-कारोबारियों के चेहरे खिले हुए मिलते हैं।’ चर्चा यह भी है कि ‘एक-दो बड़े लोग रिटायर होने वाले हैं, कहीं जाने से पहले पेट मोटा करने की योजना तो नहीं? काश पुलिस तंत्र सजग रहता, तो दिनदहाड़े हत्या नहीं होती। आखिर पुलिस तंत्र को जमीनी विवादों से दूर क्यों नहीं रखा जाता? गैंगस्टर या बड़े अपराधियों पर नजर रखने से ज्यादा जरूरी जमीनी विवाद है?