राजस्थान में तीसरी बार कांग्रेस मुख्यमंत्री बनने वाले अशोक गहलोत की सरकार के दो वर्ष
अशोक गहलोत राजनैतिक कौशलता, परिपक्वता तथा अपने मैत्रीपूर्ण व्यवहार से संघर्षों व समस्याओं का सफलतापूर्वक मुकाबला करते हुए राजधर्म को निभा रहें हैं।
जयपुर। (जैन लूणकरण छाजेड़ )राजस्थान की कांग्रेस सरकार के दो साल होने पर जिस तरह सरकारें अपने कार्यकाल की वर्षगांठ मनाती है, वैसा कोई भी आयोजन नहीं हो रहा । दरअसल, कोविड-19 महामारी को देखते हुए सरकार ने दूसरी वर्षगांठ सादगी से मनाने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने निर्देश दिए हैं कि कोरोना संक्रमण से लोगों के जीवन की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए वर्षगांठ के कार्यक्रम वर्चुअल माध्यमों से आयोजित किए जा रहें हैं ।
गहलोत की अध्यक्षता में मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित बैठक में निर्णय लिया गया है कि राज्य सरकार का दूसरा वर्ष पूर्ण होने पर राज्य स्तरीय समारोह 18 दिसंबर को आयोजित किया जाएगा। इस दिन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में वर्चुअल माध्यम से विभिन्न विकास कार्यों के लोकार्पण एवं शिलान्यास किए जाएंगे। समारोह में राज्य सरकार की उपलब्धियों को वर्चुअल तरीके से प्रदर्शित किया जाएगा और उपलब्धियों पर प्रकाशित साहित्य का विमोचन किया जाएगा। गहलोत ने मंत्री परिषद के सभी सदस्यों को दो-दो मंत्रियों के समूह में 19 एवं 20 दिसम्बर को तीन-तीन जिलों का दौरा करने एवं राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं तथा कोरोना प्रबंधन की समीक्षा करने के भी निर्देश दिए हैं।
संघर्ष व चुनौती पूर्ण रहे दो साल
राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को बने दो साल पूरे हो गए हैं। ये दो साल अशोक गहलोत की सरकार के लिए संघर्ष व चुनौती पूर्ण रहे हैं। सत्ता में आने के महज 4 महीने बाद ही हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी को पहली बार सत्ता में रहते हुए राज्य की 25 की 25 सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा। कार्यकाल के दूसरे वर्ष में अपनी ही पार्टी के भीतर उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की बगावत और कोरोनावायरस महामारी की वजह से राज्य की कांग्रेस सरकार की राह आसान नहीं रही। बावजूद इसके अशोक गहलोत राजनैतिक कौशलता, परिपक्वता तथा अपने मैत्रीपूर्ण व्यवहार से संघर्षों व समस्याओं का सफलतापूर्वक मुकाबला करते राजधर्म को निभा रहें हैं।
– मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार को गिराने की तरह हुयी बगावत
कोरोना महामारी के कहर के बीच, राज्य में अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के साथ खुलकर सामने आए। हालत यहां तक पहुंच गई कि सीएम गहलोत ने आरोप लगाया कि बीजेपी उनकी सरकार भी ठीक वैसे ही गिराने की कोशिश कर रही है जैसे मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार को गिराया गया था। एक महीने से ज्यादा वक्त तक चले इस संकट का अंत हालांकि खुशनुमा रहा जब सचिन पायलट और उनके समर्थकों ने विश्वास मत के दौरान अशोक गहलोत के पक्ष में वोट दिया। लेकिन जब तक यह तनाव जारी रहा कई अनिश्चितताओं को भी समेटे रहा। इस पूरे मामले में आयकर विभाग और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियां तक शामिल हो गई थीं। सचिन पायलट के बगावती तेवर को देखते हुए उन्हें न सिर्फ उपमुख्यमंत्री के पद से हटा दिया गया बल्कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से भी उनकी छुट्टी की गई। पायलट के दो करीबी विश्वेंद्र सिंह और रमेश मीणा को भी कैबिनेट मंत्री के दर्जे से हाथ धोना पड़ा। हालांकि, बाद में शीर्ष नेतृत्व ने मामला अपने हाथ में लिया और सरकार पर मंडराता संकट दूर हुआ।
लॉकडाउन लगाने वाला देश का पहला राज्य
इस साल की शुरुआत ही गहलोत सरकार के लिए चुनौतियों से भरी हुई थी जब मार्च में एक इतालवी नागरिक कोरोनावायरस संक्रमित पाया गया था। राजस्थान कोरानावायरस को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगाने वाला देश का पहला राज्य था। कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों में ही इसकी रोकथाम के लिए अपनाए गए राजस्थान के ‘भीलवाड़ा मॉडल’ की पूरे देश में वाहवाही भी हुई। हालांकि, राजस्थान के बाकी इलाकों में कोरोनावायरस का फैलाव गहलोत सरकार के लिए चिंता का कारण बना रहा। आज स्थिति में कोरानावायरस को फैलने से रोकने में राजस्थान काफी हद तक सफलता की तरफ अग्रसर है।
पंचायत, जिला प्रमुख और स्थानीय निकाय चुनावों ने दिखलाया आयना
इस दौरान राज्य की राजनीति में भी कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं। खासतौर पर अभी हाल ही में हुए पंचायत, जिला प्रमुख और स्थानीय निकाय चुनावों में। इन चुनावों के नतीजे काफी चौकाने वाले रहे, जिसमें कई कांग्रेस उम्मीदवारों की ग्रामीण इलाकों में हार हुई, तो शहरी इलाकों में उन्हें समर्थन भी मिला। इस बीच कांग्रेस को राजनीतिक संकट और राज्यसभा चुनाव में मदद करने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) भी अब उससे संबंध तोड़ना चाहती है। बीटीपी का आरोप है कि कांग्रेस ने जिला प्रमुख चुनाव में बीजेपी का समर्थन किया ताकि वह कुछ अहम इलाकों में अपने स्थानीय सहयोगी को दूर रख सके।