यतो धर्म: ततो जय ”

बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है।

मौत से आंखें मिलाने की ज़रूरत क्या है ।।

सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल ।

यूं ही क़ातिल से उलझनें की ज़रूरत क्या है।

जिंदगी एक नेमत है उसको संभाल कर रखो ।

क़ब्र-गाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ।।

दिल बहलाने के लिए घर में वजह है काफी ।

यूं ही गलियों में भटकने की ज़रूरत क्या है ।।

-बिहार(सुपौल)ओम एक्सप्रेस

लॉक डाउन का 3 मई तक विस्तार, कोरोना के भयावहता को देखते हुये समयोचित है और जनकल्याणकारी भी!

स्टे सेफ @ HOME

बात निकली है तो बहुत दूर तक चली जाएगी……असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की मजबूरियां शब्दों के पड़े हैं …..अल्फ़ाज़ बोने हैं इनके त्रासदी के सामने……संत्रासी जीवन जीने को अभिषप्त हैं ये!!! पलायान, प्रदेश, दिहाड़ी, होमसिकनेस, ओवर टाइम इत्यादि उनके अपने निजी शब्दकोश में हैं …….!और कुछ प्रदेश से परिवार के सदस्यों के लिए कुछ चुने संदेश …..टाका भेज दे-ब (रुपे लगा दूंगा)इस जुमले को अपना पेटेन्ट मानते ।अंतहीन दुःख है एक चटपटाती वेदना ,बेबस हालात ,दम तोड़ती ख़्वाहिशे ज्वार सी जरूरतें और भाटा सा बेबसी का एक ठाठे मारता समुंदर ….।।।?।कोरोना के इस करूणामयी काल में बेबस है जिन्दगियां ……और Rebirth of Messiah कि धारणा पुख़्ता होती है: Turning Turning widening jar …..!How I wonder what they are??

मानवता के रक्षार्थ हर किसी को अपनी जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी होगी! प्रशांत कुमार