केंद्र सरकार ने यह बुद्धिमानी का काम किया कि दूसरी तालाबंदी खुलने के पहले करोड़ों मजदूरों, पर्यटकों, छात्रों और यात्रियों की घरवापसी की घोषणा कर दी। यदि यह घोषणा अभी तीन-चार दिन पहले नहीं होती तो इसके परिणाम अत्यंत भयंकर हो सकते थे। चार मई की सुबह ही लाखों मजदूर और छात्र सड़कों पर उतर आते और बगावत का झंडा गाड़ देते। इस तीन-चार दिन की यात्रा की सुविधा देने की बात मैं तालाबंदी के पहले दिन से ही कह रहा हूं।
अब करोड़ों लोग अपने घर वापिस जाएंगे। उनकी यात्रा और जांच आदि की अपनी समस्याएं होंगी, जिनका हल राज्य सरकारें निकाल लेंगी लेकिन उससे भी बड़ी समस्या पर मेरा ध्यान जा रहा है। वह है, इन करोड़ों लोगों को कोरोना से कैसे बचाना ? यदि घर पहुंचकर इनमें कोरोना के लक्षण दिखाई पड़े तो क्या होगा ? जाहिर है कि अभी तक सरकार के पास कोई पक्का टीका, गोली या घोल नहीं है, जो कोरोना का इलाज कर सके। तो क्या किया जाए ? शारीरिक दूरी, हाथ धोते रहना, घर में टिके रहना आदि निर्देश तो लोग पालन कर ही रहे हैं लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि हमारी केंद्र सरकार जीवाणु और विषाणु की रोकथाम के परखे हुए पारंपरिक नुस्खों का प्रचार करने से क्यों घबरा रही है ? इन नुस्खों को गांव के लोग भी बड़े आराम से प्रयोग कर सकते हैं। सुश्रुत संहिता में रोग (संक्रमण) फैलने के आठ तरीके बताए गए हैं। पिछले ढाई हजार साल से इन संक्रामक तरीकों को काबू करने के नुस्खे हमारे आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित हैं। इसका पहला नुस्खा तो यह है कि भेषज-धूपन करें। हवन करें। लोबान जलाएं। हवन-सामग्री में गुग्गलु, अगर, वचा, नीम के पत्ते, विंडग, सरसों, गिलोय, दालचीनी, सौंठ, कुटकी, लौंग, काली मिर्च, चिरायता, नागरमोथा, राल आदि जोड़ लें। इनके धुंआ से जयपुर के स्वामी कृष्णानंद ने बहुत सफल प्रयोग किए हैं। इनके प्रयोगों को ‘इंडियन कौंसिल आॅफ मेडिकल रिसर्च’ ने भी मान्यता दी है। औषधियों का यह हवन हिंदू, मुसलमान, ईसाई सभी कर सकते हैं। आहुति डालते समय मंत्र पढ़ना जरुरी नहीं है।
आप चाहें तो कुरान की आयत और बाइबिल व जिन्दावस्ता के पद भी पढ़ सकते हैं। आयुष मंत्रालय के पूर्व सलाहकार प्रसिद्ध वैद्य डाॅ. सुरेंद्र शर्मा ने 1994 में इन्हीं औषधियों के काढ़े और हवन-सामग्री सूरत के प्लेग के वक्त बंटवाने में बड़ी पहल की थी। औषधियों का धुंआ रोगी को तो संक्रमण से मुक्त करता ही है, सारे वातावरण को भी प्रदूषण-मुक्त करता है। इसी प्रकार उक्त औषधियों का क्वाथ (काढ़ा) भी रोगी को जल्दी ही लाभ पहुंचाता है। देश भर में लगभग 5-6 करोड़ प्रवासी मजदूर हैं। इनकी घर-वापसी के बाद यदि इन्हें कुछ हो गया तो इनको सरकारी डाॅक्टर और अस्पताल कैसे संभालेंगे ? यदि हमारी केंद्र और राज्य सरकारें मप्र सरकार की तरह इनके घर पहुंचने से पहले ही इन्हें भेषज-चूर्ण के पूड़े पकड़ा दें तो एक बड़े संकट की आशंका से हम मुक्त हो सकेंगे।