बीकानेर | गंगाशहर रोड स्थित आर्य समाज मन्दिर मे शिवरात्रि ऋषि बोधोत्सव के रुप मे मनाते हुवे मुख्यअतिथि आचार्य श्री केसरमल शास्त्री ने कहा कि चित्र/मूर्ति की नही चरित्र की पूजा करनी चाहिये । शिव, शंकर और महादेव की विवेचना करते हुवे आचार्य ने कहा कि शिव शब्द शिवू कल्याणे धातु से बना हे अत: कल्याण स्वरुप और कल्याण करने वाला होने से “शिव”परमेश्वर का नाम हें । शंकर इसी का पर्याय शब्द हे ।
“यो महता देव: स महादेव” जो महान देवो का देव अर्थात विद्वानो का भी विद्वान,सूर्यादि पदार्थो का प्रकाशक होने से परमेश्वर का नाम “महादेव” हे ।परमात्मा निराकार हें ।

यजुर्वेद का मंत्र 32/3
“न तस्य प्रतिमास्ति यस्य नाम महध्य्श:”अर्थात महान यश वाले परमात्मा की कोई प्रतिमा, मूर्ति और उसकी बराबरी की कोई वस्तु नही हे जिससे उसकी तुलना की जा सके ।
वह अनुपम हे। किसी उपमा के द्वारा भी उसे व्यक्त नही किया जा सकता ।
श्री धर्मवीर ने कहा कि महऋषि दयानंद को आज ही के दिन बोध हुवा था कि मूर्ति परमात्मा नही हो सकती क्योकि परमात्मा तो निराकार हे ।
डा मनोज गुप्ता ने कहा कि स्वामी जी मनुष्यता को सही रुप से परिभाषित करते हुवे “मनुर्भव” का संदेश दिया।
सुश्री सूबोधबाला ने कहा कि उन्नीसवी सदी मे जब अन्धविश्वास, पाखंड, छुवाछूत, नारी व दलितो पर आत्यचार हो रहे थे उस समय महऋषि दयानंद ने नव जागरण
का कार्य किया ।

प्रधान महेध आर्य ने कहा कि कांग्रेस की स्थापना से भी पूर्व 1875 मे आर्यसमाज की स्थापना स्वामी जी ने कर समाजिक,धार्मिक,सांस्कृतिक जागरण व स्वंतंत्रता की क्रांति का सूत्रपात किया ।
डा संजय गर्ग ने महऋषि के व्यक्तित्व व कृतित्व पर भजन के माध्यम से प्रकाश डाला । श्री नवलारामजी,(गजनेर), श्री नर्सिंघ जी बंगला जी, अमिता जी आदि ने भी अपने विचार रखे ।
कार्यक्रम की शुरुआत यज्ञ से हूई ।जिसमे श्रधालुवो ने वेदमंत्रौ से आहुतियां दी तथा श्रीमती रुपदेवी,उषा देवी, कंचन देवी,सुनीता देवी आदि ने
दयानंद सा ऋषिवर सागर
धन्य हो गई वसुंधरा ,,,,,,,,मधुर स्वर से गाकर श्रोताओ की वाहि वाहि बटॉरी ।
कार्यक्रम का समापन वेदिक घोष पश्चात अल्पाहार से हुवा ।कार्यक्रम का सञ्चालन मंत्री भगवती प्रसाद सोनी ने किया ।