– मुकेश बोहरा अमन
चुनावों के परिणाम 10 मार्च को लेकिन कोरोना के नतीजे प्रतिदिन

  भारतीय लोकतंत्र में चुनाव किसी उत्सव से कम नही है । जिसे लोकतंत्र की आत्मा भी कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नही होगी । भारत में व्यवस्थित, स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव आयोजन के लिए चुनाव आयोग का गठन किया गया है । हाल में भारतीय चुनाव आयोग ने भारत के सबसे बड़े राज्य उतरप्रदेश, पंजाब, उतराखण्ड, गोवा व मणिपुर राज्यों में विधानसभाओं के चुनावों की घोषणा की है । इन राज्यों में चुनाव अलग-अलग चरणों में अलग-अलग तिथियों को आयोजित होंगें । जिसको लेकर चुनाव आयोग एवं राजनैतिक दलों द्वारा युद्ध स्तर पर तैयारियां की जा रही है । वहीं कोरोना जैस वैश्विक महामारी भी पुनः उफान पर है जिसके चलते सम्पूर्ण भारत में प्रतिदिन 2.5 लाख से भी अधिक केस आ रहे है । वहीं सैंकड़ों की संख्या में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है ।
  चुनावों के मद्देनजर उतरप्रदेश सहित कई स्थानों में प्रतिदिन राजनीतिक दलों द्वारा हजारों-लाखों की भीड़ को एकत्रित कर सभाएं व रैलिया की जा रही है । कोरोना महामारी एवं आम आदमी के कीमती जीवन की परवाह किए बगैर अपनी सत्ता की चाह में आमजन को जोखिम में डाला जा रहा है । जबकि राज्य सरकारों द्वारा आम आदमी पर एकत्रिीकरण की पूर्ण पाबंदियां लगाई हुइ है । परन्तु राजनीतिक दलों पर किसी पर अंकुश नजर नही आ रहा है । प्रशासनिक नियंत्रण एवं सख्त कार्यवाही के अभाव में प्रतिदिन कोरोना के केस बढ़ते जा रहे है ।
  हाल में जिन राज्यों में चुनाव होने है, उनमें कोरोना के लिए बनाई गई गाइडलाइंस की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है । जहां न तो मास्क, न तो सोशियल डिस्टेंस की पालना दिखाई दे रही है । इसके उलट इन सभाओं में अपार भीड़ भी कोरोना को फैलाने में कोई कसर छोड़ती नजर नही आ रही है । आखिर क्या इस तरह के चुनाव महत्वपूर्ण है या लोगों की जिन्दगी ? यह एक यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब किसी राजनीतिक दल अथवा स्वयं चुनाव आयोग के पास भी नही है । वहीं कोरोना प्रोटोकॉल की पालना सबसे बड़ा सवाल बनता जा रहा है ।
  देश और दुनिया में कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन के केस जिस तेजी से बढ़ रहे हैं. लेकिन देश में हो रही चुनावी रैलियों पर कोई रोक नहीं दिख रही. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि चुनाव प्रचार का सिर्फ एक ही तरीका है. बड़ी-बड़ी रैलियां, बड़ी-बड़ी भीड़ कोरोना काल में सबकुछ ऑनलाइन हो रहा है. बच्चों की पढ़ाई से लेकर हमारे आपके ऑफिस का काम तक सभी ऑनलाईन माध्यमों से संचालित हा रहे है फिर नेताजी की रैली ऑनलाइन क्यों नहीं हो सकती है ?
  चुनावों को लेकर प्रतिदिन राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही सभाओं, रैलियों का परिणाम तो मतान के बाद ही 10 मार्च को आ पायेगा लेकिन कोरोना व ओमिक्रॉन के नतीजे प्रतिदिन आ रहे है । जिसमें कोरोना प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । मगर सरकारों अथवा प्रशासन के चेहरे पर कोई शिकन तक नही है । नेताजी सभाओं व रैलियों के माध्यम से अपने वोट बढ़ाने की चाह में कोरोना के केस अवश्य बढ़ा रहे है । फिर भी नेताजी यही कहते है कि हम देश हित में कार्य कर रहे । आखिर इन तमाम नेताओं का देशहित कौनसा है ? आम आदमी की जिन्दगी से बढ़कर राजनीतिक दलों के अपने स्वार्थ ही नजर आ रहे है । उललेखनीय तो यह है कि विभिन्न दलों के कई नेता भी कोरोना संक्रमित हो चुके है, हो रहे है । फिर भी वे बाज नही आ रहे है ।
  प्रचंड कोरोना के इस वक्त में जहां चुनाव आयोग को सख्ती करनी चाहिए वहीं राजनीतिक दलों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे विभिन्न मैदानों आदि में होने वाली बड़ी-बड़ी सभाओं की बजाय अपना प्रचार-प्रसार वर्चुअल माध्यमों से करे । इस सबके बावजूद आम आदमी की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बन जाती है कि वह इन भीड़-भाड़ वाले कार्यक्रमों, सभाओं, रैलियों आदि दूरी कर स्वयं की हिफाजत करे । चुनाव आयोग को कोरोना प्रोटोकॉल्स की सख्ती से पालना करवानी चाहिए और कड़े निर्णय लेने की जरूरत है ।

You missed