———————————————————–
नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं, मान्यता है कि इस दिन महिलाएं सौभाग्य बढ़ाने व रूप सौंदर्य के लिए 16 श्रृंगार करती हैं*
———————————————————–
✍🏼तिलक माथुर
केकड़ी_राजस्थान
दिवाली से एक दिन पहले चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी व रूप चौदस (छोटी दिवाली) के रूप में मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को हम आमतौर पर छोटी दिवाली ही कहते हैं। इस दिन भगवान कृष्‍ण, यमराज और बजरंगबली की पूजा करने का विधान है। मान्‍यता है कि इस दिन पूजा करने से मनुष्‍य नरक में मिलने वाली यातनाओं से बच जाता है। नरक चतुर्दशी को मुक्ति पाने वाला पर्व कहा जाता है।

इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इसलिए इस चतुर्दशी का नाम नरक चतुर्दशी पड़ा। इस दिन सूर्योदय से पहले उठने और स्थान करने का महत्त्व है। इससे मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है। विष्णु और श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार नरकासुर नामक असुर ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मानवों को परेशान कर रखा था। असुर ने संतों के साथ 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बनाकर रखा था।

जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता और ऋषि-मुनियों ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आकर कहा कि इस नरकासुर का अंत कर पृथ्वी से पाप का भार कम करें। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया लेकिन नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का शाप था इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध किया। जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी। नरकासुर के वध के बाद श्रीकृष्ण ने कन्याओं को बंधन से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद कन्याओं ने भगवान कृष्ण से गुहार लगाई कि समाज अब उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा, इसके लिए आप कोई उपाय निकालें। हमारा सम्मान वापस दिलवाएं। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से 16 हजार कन्याओं से विवाह कर लिया। 16 हजार कन्याओं को मुक्ति और नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में घर-घर दीपदान की परंपरा शुरू हुई। भगवान श्रीकृष्‍ण ने इस दिन 16 हजार कन्‍याओं का उद्धार किया, इसी खुशी में इस दिन महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं। नरक चतुर्दशी को ‘रूप चौदस’ भी कहते हैं।

इस दिन जल में औषधि मिलाकर स्नान करने और 16 ऋृंगार करने से रूप सौन्दर्य और सौभाग्य बढ़ता है ऐसी मान्यताएं हैं। रूप चौदस के दिन सूर्योदय से पहले उठने और स्‍नान करने का महत्‍व है, इससे रूप में निखार आता है। वहीं इससे मनुष्य को यम लोक का दर्शन नहीं करना पड़ता है। कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए, फिर भी इस तिथि विशेष को शरीर में तेल लगाकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिणाभिमुख होकर दिए गए मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन तिलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं। नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली के दिन इन मंत्रों का जप किया जाता है। ॐ यमाय नमः, ॐ धर्मराजाय नमः, ॐ मृत्यवे नमः, ॐ अन्तकाय नमः, ॐ वैवस्वताय नमः, ॐ कालाय नमः, ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः, ॐ औदुम्बराय नमः, ॐ दध्नाय नमः, ॐ नीलाय नमः, ॐ परमेष्ठिने नमः, ॐ वृकोदराय नमः, ॐ चित्राय नमः, ॐ चित्रगुप्ताय नमः। संध्या के समय देवताओं का पूजन कर दीपदान करना चाहिए। नरक निवृत्ति के लिए चार बत्तियों वाला दीपक पूर्व दिशा में मुख कर के घर के मुख्य द्वार पर रखना चाहिए। मंदिरों, रसोईघर, स्नानघर, देववृक्षों के नीचे, नदियों के किनारे, चहारदीवारी, बगीचे, गोशाला आदि स्थान पर दीपक जलाना चाहिए। विधि-विधान से पूजा करने वाले सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।