जिस तरह जंगल में जीना बहुत कठिन है। आपको कदम कदम पर खतरा मंडराता है जीव जंतु से, मौसम के बदलाव से और प्रकृति की भौतिक स्थिति से भी कई खतरे उत्पन्न होते हैं। जंगल से बचने के लिए हम शहरों में रहते हैं हमने अपने अपने प्रदेश एवं देश बना रखे हैं पर हमारी अंदरूनी व्यवस्था पूरी तरह जंगलराज से कम नहीं है। हमें कितने खतरों से जूझना पड़ता है भ्रष्टाचार, लूटपाट, आगजनी, बाढ़, अकाल, दंगे फसाद, नकबजनी, ब्लैक मेलिंग, हत्या, महिलाओं पर बलात्कार और अत्याचार, भूकंप, ज्वालामुखी, दावानल, बवंडर, तूफान, आतंकवाद और घटिया किस्म के निर्माण जिससे बिल्डिंग गिर जाती है डैम टूट जाते हैं सड़के बैठ जाती है और आजकल वातावरण में फैला हुआ वायरस इन सब खतरों के बीच हम रहते हैं। और समय-समय पर इन खतरों से अपना बचाव बनाए रखते हैं। क्या इंसान जो इतना समझदार तरक्की पसंद है इन खतरों से निपटारे का स्थाई हल नहीं ढूंढ सकता। वह इसलिए नहीं ढूंढ पाता है क्योंकि कई खतरे सिर्फ इंसानों से है। प्रकृति के खतरे तो है ही पर कुछ इंसान ने ज्यादा खतरे पैदा किये। आपस में युद्ध से कई इंसान के जीवन को खतरा बना हुआ है। इंसान के जीवन की कोई गारंटी नहीं बची है। इंसान का बनाया हुआ जंगलराज इंसान ही खत्म करें ऐसा तब संभव हो सकता है जब इंसान ही बहुमत से शांति प्रिय जीवन के लिए एकजुट हो जाएं।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)