जीवन की अमूल्य निधि लुट गई, जिस स्वतंत्रता के वे सेनानी थे पूरी ताकत से हमें उसकी सुरक्षा करनी होगी

29 मई 1964 को अटल ने संसद में नेहरू को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “आज एक सपना खत्म हो गया है, एक गीत खामोश हो गया है, एक लौ हमेशा के लिए बुझ गई है। यह एक ऐसा सपना था, जिसमे भूखमरी, भय डर नहीं था, यह ऐसा गीत था जिसमे गीता की गूंज थी तो गुलाब की महक थी।”

*नई दिल्ली*।भारत के पूर्व प्रधान मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी अपनी जबरदस्त भाषा शैली और लेखन के लिए जाने जाते थे। जब वे पहली बार सांसद पहुंचे थे तो जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। नए सांसद होने के बाद भी अटल संसद में नेहरू की खुलकर आलोचना करते थे।
देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू भी अटल को पसंद करते थे। उन्होंने एक बार कहा था कि अटल एक दिन देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन पर अटल बिहारी वाजपेयी ने अलग ही अंदाज में उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। 29 मई 1964 को अटल ने संसद में नेहरू को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, “आज एक सपना खत्म हो गया है, एक गीत खामोश हो गया है, एक लौ हमेशा के लिए बुझ गई है। यह एक ऐसा सपना था, जिसमे भूखमरी, भय डर नहीं था, यह ऐसा गीत था जिसमे गीता की गूंज थी तो गुलाब की महक थी।”

अटल ने आगे कहा, “यह चिराग की ऐसी लौ थी जो पूरी रात जलती थी, हर अंधेरे का इसने सामना किया, इसने हमे रास्ता दिखाया और एक सुबह निर्वाण की प्राप्ति कर ली। मृत्यु निश्चित है, शरीर नश्वर है। वह सुनहरा शरीर जिसे कल हमने चिता के हवाले किया उसे तो खत्म होना ही था, लेकिन क्या मौत को भी इतना धीरे से आना था, जब दोस्त सो रहे थे, गार्ड भी झपकी ले रहे थे, हमसे हमारे जीवन के अमूल्य तोहफे को लूट लिया गया।”

पूर्व प्रधान मंत्री ने कहा था, “आज भारत माता दुखी हैं, उन्होंने अपने सबसे कीमती सपूत खो दिया। मानवता आज दुखी है, उसने अपना सेवक खो दिया। शांति बेचैन है, उसने अपना संरक्षक खो दिया। आम आदमी ने अपनी आंखों की रौशनी खो दी है, पर्दा नीचे गिर गया है। दुनिया जिस चलचित्र को ध्यान से देख रही थी, उसके मुख्य किरदार ने अपना अंतिम दृश्य पूरा किया और सर झुकाकर विदा हो गया।’
बता दें अटल बिहारी वाजपेयी जवाहर लाल नेहरू का सम्मान करते थे। 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ जबरदस्त लहर थी। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी। इस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बनाए गए थे।

उस दौर में सत्ता बदलते ही ब्यूरोक्रैट्स ने कांग्रेस के निशान वाले चिन्ह और उनके नेताओं की तस्वीर हटानी शुरू कर दी। नौकरशाहों को लग रहा था कि इंदिरा विरोध पर बनी सरकार में कांग्रेस की निशानियों से सत्ता में बैठे लोग नाराज हो सकते हैं।

उसी दौर में एक दिन वाजपेयी जब अपने दफ्तर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि दफ्तर के दीवार का एक हिस्सा खाली है। वहां एक स्पॉट बना हुआ था. वाजपेयी जी तुरंत अपने सचिव से बोले- यहां पर नेहरूजी की तस्वीर हुआ करती थी। मैं पहले भी इस दफ्तर में आया-जाया करता था। मुझे याद है कि इस जगह पर नेहरूजी की तस्वीर थी। वो कहां गई? मुझे तुरंत वो वापस चाहिए।’