– सरकारी जर्जर आवासों में रहने को मजबूर हैं पुलिसकर्मी
– दूसरों की सुरक्षा के लिए जूझने वाले नहीं है सुरक्षित
आगरा यूं तो विकास के लिए करोड़ों रुपए की योजना आ रही है लेकिन आगरा पुलिस के जवान जर्जर भवन में रह रहे हैं । पुलिस कर्मियों की जान की फिक्र किसी को नहीं है । दूसरों की सुरक्षा के लिए दिन-रात जूझने वाले पुलिसकर्मी खुद असुरक्षित हैं। सिर पर छत है, लेकिन महफूज नहीं। कुछ दिन पहले कानपुर पुलिस लाइन में बैरक की दीवार ढहने का हादसा इसकी ताजा नजीर है। उत्तर प्रदेश में अंग्रेजों के जमाने में बनी कई पुलिस लाइन व पुलिस भवन अब जर्जर हो चुके हैं। इसके बाद भी पुलिसकर्मी व उनके परिवारीजन उनमें रहने को मजबूर हैं।
पुलिस भवनों की जर्जर स्थिति को भांपते हुए एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार ने बारिश का मौसम शुरू होते ही छह जुलाई को सभी जिलों के एसएसपी व एसपी को पत्र लिखकर जर्जर भवनों का निरीक्षण व मरम्मत कराने के लिए आगाह किया था। एडीजी ने जर्जर भवनों में रह रहे और काम कर रहे पुलिसकर्मियों को दूसरे स्थानों पर शिफ्ट किए जाने की बात भी कही थी।
अब कुछ दिन पहले कानपुर में हुई घटना ने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशों के बाद भी जिलों में अनदेखी व पुलिसकर्मियों के असुरक्षित भवनों में रहने को मजबूर होने की कलई खोल दी है। आगरा में पुलिस लाइंस की स्थापना वर्ष 1942 में हुई थी। ऐसे ही कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, मेरठ व अन्य बड़े शहरों की पुलिस लाइन भी अंग्रेजों के जमाने में ही वजूद में आई थीं। इसमें से कई भवन अब रहने लायक नहीं रहे हैं।