देवकिशन राजपृरोहित
आदिकाल से हमारे पूर्वजों ने जहां भी बसतिया बसाई वहां पहले पानी की व्यवस्था की यहा तक कि जहां भी रुके पहले तालाब खोदे।कुए खोदे।बावडिय़ों का निर्माण किया।उसके बाद ही वहां पर अपने आवास बनाए।राजा महाराजाओं का अष्तित्व जनता से था और जनता को सर्वप्रथम पानी उपलब्ध कराना होता था। मेड़ता भी एक पुराना राज्य था और यहां के शासकों ने भी पानी का समुचित ओर स्थाई प्रबंध किया था।
थिरराज डांगा चौधरी ने डॉगोलाई तालाब खोदा वहीं एक पुरोहित बैजनाथ ने भूतों से बेझपा ओर कुंडल तालाब खुदवाए।हालांकि कुंडल के बारे में कहा जाता है कि जब मारवाड़ के महाराजा राव मालदेव ने मेड़ता पर युद्ध किया तब जयमलजी चारभुजा की पूजा में बैठे थे और खुद चारभुजा जयमल बन कर युद्ध भूमि में गए और वहां उनका कुंडल कानका श्रृंगार खो गया था उसे खोजने के लिये की गई खुदाई से कुंडल बना।जो भी हो कुंडल पानी का बहुत बड़ा स्रोत था।दुदासागर,विष्णुसागर,देराणी,जेठानी आदि अनेक तालाब शहर के चारों ओर हैं।एक बार बारिश से भरने पर कई बार तो दो तीन साल तक खाली नहीं होते थे।यहां तक कि चारों ओर से बीस बीस कोस तक पानी ले जाया जाता था।
व्यवस्था ऐसी थी कि इन तालाबों में कोई किसी प्रकार की गंदगी करता तो उसे दंडित किया जाता था।इन तालाबों के पायतांन याने कैचमेंट एरिया में रास्ते चलते लघुशंका करना भी अपराध की श्रेणी में आता था।
स्वतन्त्रता के बाद एक नए प्रकार का शासन प्रशांसन पनपा।सब आजाद हो गए।भय का नाम नही रहा।इसी का लाभ उठा कर लोगों ने सरकारी भूमियों पर कब्जे सुरु किये।अधिकारियों को भी अपने अपराध में शामिल कर लिया।परिणाम उन कब्जाधारियों ओर अफसरों की मिली भगत से न तालाब बचे ओर न पायतन।प्लाट काट कर बेच दिए और भवन बन गए।बाकी पर कब्जे हो गए अब पानी को तरसते लोगो के लिए प्रशासन अखबारों और टीवी पर विज्ञापनों से पेय जल का प्रबंध कर रहा है।
अगर स्थाई समाधान करना है तो प्रशासन इन तालाबों ओर उनके कैचमेंट एरिया को खाली कराए।जिन अधिकारियों की मिली भगत से ये कब्जे हुए उनको कठघरे में खड़ा किया जावे।बुलडोजर चला कर इन अवैध कब्जों को मिट्टी में मिलाया जावे ओर दंडित किया जावे।तालाबों की भूमि की आसानी से किस्म नहीं बदलती है।अब तो यह बीमारी कस्बों और गांवों में भी घर कर गई है।
यह तो मात्र एक मेड़ता का उदाहरण है।प्रत्येक शहर की यही स्थिति है और सुस्त प्रशासन कभी भी अपना असली रंग नहीं दिखा सकता।तब तक पानी टीवी में दिखाते रहो।
अब्दुल रहमान बनाम सरकार में राजस्थान उच्च न्यायालय ने पूरे प्रदेश के लिए आदेश पारित किया था कि राजस्व रिकार्ड के अनुसार तालाबों उनके पायतांन याने कैचमेंट एरिया को तुरन्त 1947 की स्थिति में लाया जावे मगर कई सरकारें आई और गई मगर उच्च न्यायालय के आदेशों पर कोई कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा सकी।सरकार की क्या मजबरी है यह तो सरकार जाने मगर जल के प्रारंभिक श्रोतों की बहाली के बिना पानी की समस्या का कोई समाधान नहीं हो सकता।पानी की समस्या का स्थायी हल पुराने तालाबों की बहाली ओर उनका संरक्षण ही है।हर साल होने वाली वर्षा का पानी फालतू बाह जाता है और तालाबों में बहुमंजिली इमारतें खड़ी है।
दबंग अधिकारी ऐसे अतिक्रमण अवश्य हटा सकते है।बड़े शहरों की तो छोडि़ए गांवों में भी तालाबों पर गुंडा तत्वों के अवैध कब्जे है और उनको हटाए कौन।बीकानेर में अवैध कब्जा तोडऩे के लिये खुद कलक्टर आर एन मीणा गए थे।घोड़े पर चढ़ कर पास में खड़े रह कर भूमाफियाओ से जा भिड़े थे।काश सभी जिलों के कलक्टर पानी के लिये तालाबों को कब्जा मुक्त कर सके तो राजस्थान का कल्याण हो सकता है।मगर होगा नहीं क्योंकि ऐसे भूमाफियाओं के सम्बंध दोनों दलों के उच्चपदधिकारियो तक हैं और कोई कलक्टर मुख्यमंत्री की अवमानना कर अपना भविष्य बर्बाद नहीं करेगा।काश।सरकार स्वयम कलक्टरों को नैतिक समर्थन दे कर कार्यवाही करावे तो प्रदेश में पानी की कोई कमी नहीं होगी।मगर शासन तो केवल बैठकें कर सकता है।
चिंता कर सकता है और अपील कर सकता है।तुलसीदास जी ने रामायण में लिखा है भय बिन होय न प्रीति।सरकार एक बार डंडा चला कर तो देखे मगर अधिकारियों की जेबें गर्म हो जाएंगी तथा तालाबों के कब्जे ज्यों के त्यों रह जाएंगे।सरकार अगर कठोर निर्णय ले तो पानी पर खरबों रुपये बच जाएंगे।अन्यथा पानी की चिंता भी मात्र दिखावा ही रह जायेगा।