जो क्षमा को धारण करता वही परिश्रयों को जीतता- आचार्य श्री

बीकानेर। सच्चे श्रावक को दूसरों की खामियों की ओर नहीं बल्कि उसकी खूबियों की ओर ध्यान देना चाहिए। हमें जो दृष्टि, सोच, चिंतन की शक्ति मिली है। इसे हम दूसरों की खामियों को देखने में नहीं उसकी खूबियों को देखने में लगाएगें और अपने अंदर दृष्टि करने पर हमें असलियत का बोद्य होता है और वही सम्यक दर्शन है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने यह सद् विचार शनिवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चातुर्मास पर चल रहे अपने नित्य प्रवचन में व्यक्त किए। आचार्य श्री ने बताया कि संसार में तीन व्यक्तियों को समझना कठिन है। पहला दुष्ट, दूसरा दुराग्रही एवं तीसरा जो दुर्भागी होता है। यह तीन प्रकार के लोग अपनी पकड़ी बात को छोड़ते नहीं है। इसलिए इनको समझना बहुत कठिन है। यह कभी क्षमाशील नहीं बनते, जब क्षमाशील नहीं बनते तो इनके साता वेदनीय कर्म का बंध नहीं होता है। दूसरी और जो शिष्ट, शालीन एवं सौभाग्यशाली होते हैं, वह अनाग्रही होते हैं, जिन्हें समझना बहुत आसान होता है।
महाराज साहब ने कहा कि सामायिक क्या है…?, सामायिक है समभाव की कमाई, चार गति, चौरासी लाख यौनी और 24 दण्डक के लिए मन में समभाव आ जाए वही सामायिक होती है।
महाराज साहब ने कहा कि जिस प्रकार एक चिंटी का स्वभाव छिद्र देखकर उसमें प्रवेश करने का होता है। भले ही वहां पर सुदंर, समतल, संगमरमर का आलीशान फर्श लगा हो, उस पर दृष्टि नहीं डालती, छिद्र ढूढती रहती है और मिलते ही उसमें प्रवेश कर जाती है। ठीक इसी प्रकार दुष्ट आदमी भी दूसरों की अच्छाई पर नहीं उसकी खामियों पर ही ध्यान देता है। लेकिन हमें दूसरों के भीतर देखकर असंतोष पैदा नहीं करना है। हमें तो अपनी अंतर्दृष्टि करने पर हमें असलियत का बोध होता है और यही सम्यक दर्शन होता है। महाराज साहब ने कहा कि जिस प्रकार कड़वी गोली हमें मालूम होती है कि यह स्वाद में कषैली है, परन्तु स्वास्थ्य के लिए ठीक है, निगल लेते हैं, इंजेक्शन लगाने पर पहले चुभता है,लेकिन ठीक होने के लिए लगवाना पड़ता है। ठीक इसी प्रकार साता के लिए हमें कभी-कभी कड़वी गोली भी निगलनी पड़ती है। महाराज साहब ने कहा कि सहनशक्ति व्यक्ति में बहुत होती है। जिससे मतलब होता है उसे सहन कर लेता है लेकिन जिससे कोई मतलब ना हो, उसे या उसकी कोई बात सहन नहीं करता है। जो बगैर मतलब जिससे कोई मतलब नहीं, उसकी भी सहन कर लेता है, उसे ही सच्ची सामायिक कहते हैं।
*युवाओं को दिया जीवनमंत्र*
नवयुवाओं को महाराज साहब ने जीवन का मूल मंत्र देते हुए बताया कि जीवन है तो संघर्ष है, संघर्ष है तो समाधान है। जीवन है तो हर समस्या का समाधान किया जा सकता है लेकिन मरकर किसी समस्या का समाधान नहीं होता है। महाराज साहब ने आजकल के युवाओं में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृति पर यह बात कहते हुए कहा कि युवा कुछ बातों का विशेष ध्यान रखे, उन्हें अपने जीवन में अपनाए तो वह अपना जीवन सुखी बना सकते हैं। महाराज साहब ने कहा कि हर मां का यह कर्तव्य है कि वह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे, अच्छी शिक्षा के अभाव में घर-परिवार बिखर जाते हैं। आज के युवा में सहनशक्ति का अभाव है। उनके मन में यह भावना घर कर गई है कि हमें सहना नहीं है। आचार्य श्री ने कहा क्षमा को धारण करो, जो क्षमा को धारण करता है वही परीषयों पर विजय पाता है।
श्रावकों के पहुंचने का क्रम जारी
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब के दर्शनार्थ एवं जिन वाणी के श्रवण का लाभ लेने विजयनगर, भीलवाड़ा, ब्यावर , होस्पेट ( कर्नाटक ) और मुंबई से श्रावक पहुंचे। महाराज साहब ने उन्हें मंगलिक सुनाई एवं प्रवचन के बाद पच्चक्खान दिए।
सामूहिक एकासन रविवार 7 अगस्त को
कल रविवार को श्रावक-श्राविकाओं के लिए सामूहिक एकासन का कार्यक्रम अग्रसेन भवन में आयोजित होगा । इसके अलावा बच्चों के लिए संस्कार शिविर सेठ धनराज जी ढढ्ढा कोटड़ी में एवं पुरुषों के लिए धार्मिक परिचर्चा का आयोजन भी किया जा रहा है।