

आज के दौर में यह तीनों चीजें राजनीतिज्ञो और आम व्यक्तियों की आदत में शुमार है। दुख और आश्चर्य होता है जब राष्ट्रीय स्तर के जनप्रतिनिधि इन तीनों चीजों की बल पर चुनाव जीतते हैं। हम टीवी पर कई बार देखते रहते हैं चुनावी सभाओं में किस प्रकार एक दूसरे को नीचा दिखाना और एक दूसरे के लिए निम्न स्तरीय भाषा का उपयोग यह आम बात हो गई है। दुख होता है जब कई सम्माननीय इस प्रकार का आचरण करने लगते है। कई सरकारी विभाग सत्य जानकारी नहीं देंगे मैन्यू प्लेटेड स्टैटिसटिक्स बनाकर रखेंगे कई विभाग लाभ हानि के गलत आंकड़े देते हैं और भ्रमित करते हैं।
कई व्यक्ति द्वारा परिवार, व्यापार और समाज या समूह मैं प्रमुख बने रहने के लिए भी इस बुराई का सहारा लिया जाता है। आम बात हो गई है यदि कोई पुलिस रिपोर्ट भी लिखाएगा या किसी के सामने अपना पक्ष रखेगा तो अधिकतर झूठ कपट और आरोप लगाने पर ज्यादा फोकस रखेगा। मामला चाहे एक्सीडेंट का छोटे-मोटे झगड़े का सत्य जानते हुए भी व्यक्ति अपने आप को सच्चा साबित करने के लिए झूठ बोलेगा और सामने वाले पर आरोप लगाएगा।
बहुत कम होते हैं जो सत्य को स्वीकारते हुए सच बोलते हैं।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)