-32 इंजीनियरों का हो गया प्रमोशन पर प्रमोशन, जबकि डिग्री है फर्जी
-डॉ अंबेडकर विधि विवि कुलपति को भी डिग्री विवाद पर छोड़ना पड़ा था पद

जयपुर (हरीश गुप्ता)। स्वायत शासन विभाग लगता है देश व राज्य के नियम कायदों की पालना नहीं करता और विदेशी नियमों से चलता है। यही कारण है कि फर्जी डिग्री वालों का प्रमोशन पर प्रमोशन होता जा रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि शासन, प्रशासन और सरकार धृतराष्ट्र बना हुई है।
गौरतलब है डीम्ड यूनिवर्सिटी से पत्राचार के माध्यम से की गई इंजीनियरिंग की डिग्री को देश की सर्वोच्च न्यायालय ने फर्जी डिग्री की संज्ञा दे दी है। इसके पीछे तर्क यह है कि ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) ने इंजीनियरिंग में 3 वर्षीय डिग्री के लिए 75 फीसदी क्लास की उपस्थिति के साथ-साथ की लैब क्लास और इंटरनल एग्जाम में उपस्थिति भी अनिवार्य कर रखी है।
सूत्रों की मानें तो इस तरह की फर्जी डिग्री वाले कई ‘महान’ इंजीनियर डीएलबी की शोभा बढ़ा रहे हैं। सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि ऐसे ‘महान’ लोगों का प्रमोशन भी असल डिग्री वालों से जल्दी हो जाता है। इन महानुभावों की शासन, प्रशासन व सरकार को काफी शिकायतें हो चुकी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होते देख लगता है मानो डीएलबी में ‘जंगलराज’ है।
विभाग में इस तरह के कार्यकलापों को देखकर लगता है इस तरह की फाइलें व शिकायतें विभाग के मंत्री शांति धारीवाल तक पहुंचती ही नहीं। स्वच्छ व बेदाग छवि के धनी धारीवाल से छिपाकर यह सब हो रहा है ऐसा लगता है।
सूत्रों की मानें तो विभाग में ऐसे महान इंजीनियर करीब 3 दर्जन है। इन्हीं में से एक है रमेश चंद शर्मा। शर्मा वैसे तो बिजली में 3 वर्षीय डिप्लोमा किए हुए हैं और इनकी प्रारंभिक नौकरी नगरपालिका करौली में हुई सेटिंग से हुई। यहां कनिष्ठ अभियंता विद्युत पर आसीन हुए। बाद में डीएलबी ने सितंबर 2000 में नियमित कर दिया। जुलाई 07 में प्रमोशन कर एईएन बना दिया, जबकि डिप्लोमा के हिसाब से सितंबर 09 में प्रमोशन होता।
सूत्रों की मानें तो इस बीच बिना कोई अवकाश व स्वीकृति लिए बगैर 17 तक शर्मा ने डिग्री भी कर ली और मई 2017 में विभाग में पेश भी कर दी। इधर 1 अप्रैल 12 में विभाग ने प्रमोशन देते हुए अधिशाषी अभियंता बना दिया। हांलांकि आदेश 2017 में जारी हुआ। रमेश शर्मा के प्रमोशन की ‘रेलगाड़ी’ ऐसी स्पीड से दौड़ी कि सभी सिग्नल पार करते एक से एक अजूबे होते चले गए। प्रमोशन के लिए नए नए पद भी सृजित कर दिए गए। अतिरिक्त मुख्य अभियंता तो मुख्य अभियंता के पद भी बना दिए गए।
सवाल खड़े होते हैं रमेश चंद शर्मा में ऐसी क्या जादुई कला है जो सभी रेलगाड़ी को दौड़ाने में सहायक रहे? किसी ने भी रोकने की हिम्मत क्यों नहीं की? अधिकारियों पर आखिर किस का दबाव रहा? विभाग में चर्चाएं जोरों पर है, ‘धन की ‘गंगा’ में सभी डुबकी लगाते रहे।’ चर्चा यह भी है, ‘…रमेश चंद्र शर्मा की सोच जूदेव वाली रही है, पैसा खुदा तो नहीं, खुदा की कसम खुदा से कम भी नहीं।’
अब देखना है सेवानिवृत्ति के बाद भी शर्मा को सेवा में रखने वालों पर कोई कार्रवाई होगी? ईमानदार छवि वाले सेवानिवृत्त आईएएस जीएस संधू जब ₹1 वेतन पर काम कर सकते हैं तो रमेश शर्मा क्यों नहीं?