-प्राइमरी कक्षा की छात्रा की लापरवाही से मौत के मामले में _सवा महीने में भी पुलिस जांच शुरू नहीं कर पाई?

जयपुर , (हरीश गुप्ता) । डॉक्टर और पुलिस की मिलीभगत का खेल निराला है। यही कारण है कि हंसती-खेलती सैकिंड क्लास की छात्रा की रहस्यमय मौत के मामले में सवा महीने बीत जाने के बाद भी जयपुर पुलिस जांच की दिशा तय नहीं कर पाई। उधर बच्ची के पिता पर शांत रहने और मामले को रफा-दफा करने का दबाव बनाया जा रहा है।
गांव या कस्बे में इस तरह घटना हो तो समझ में आती है, लेकिन राजधानी में ऐसी घटना सोचने पर विवश कर देती है। जी हां प्रताप नगर स्थित एक बड़े प्राइवेट अस्पताल से जुड़ा मामला है।
जानकारी के मुताबिक सीआरपीएफ में तैनात एक जवान बिजेश कुमार शर्मा की 6 वर्षीय बेटी पीहू को दूसरी क्लास में परिजनों ने जोधपुर में नाना नानी के पास पढ़ने के लिए भेजा और घर के पास स्कूल में दाखिला करवा दिया। बच्ची नानी के साथ स्कूल से घर आ रही थी तो उसने नानी को बताया कि स्कूल बैग उठाती है तो उसके स्वांस में परेशानी होती है। बच्ची को वहीं के अस्पताल में दिखाया तो डॉक्टर ने ईसीजी और इको की जांच करवाई। रिपोर्ट देख डॉक्टर ने कहा बच्ची नॉर्मल है, 7 दिन की दवा दे दी है। परिजनों को फिर भी चिंता रही तो 23 जुलाई को परिजन बच्ची को लेकर प्रताप नगर, जयपुर स्थित एक प्राइवेट अस्पताल ले आए। अस्पताल के रिसेप्शन पर पता चला कि कार्डियो के डॉक्टर प्रशांत महावर 10 बजे आते हैं।


परिजनों के मुताबिक 10 बजे डॉक्टर प्रशांत को दिखाया तो उन्होंने फिर से सभी जांचें करवाई और कहा बच्ची नॉर्मल है। साथ ही अगले दिन सीटी स्कैन करवाने के लिए कहा। उसके अगले दिन प्रशांत महावर ने एंजियोग्राफी के लिए कहा। 4 बजे बच्ची की एंजियोग्राफी के बाद डॉ प्रशांत ने परिजनों से कहा कि बच्ची पर रिसर्च कर लिया है, वह बच नहीं सकती, जबकि एंजियोग्राफी के लिए बच्ची पीहू खुद चलकर गई थी।
परिजनों के मुताबिक रात करीब साढ़े 11 बजे बच्ची के बारे में जानकारी ली तो कुछ देर बाद बताया गया कि बच्ची की मौत हो चुकी है। यह पता चलते ही परिजन प्रतापनगर थाने आ गए। परिजन थाने में मौजूद थे और अस्पताल की ओर से थाने में फोन गया कि परिजन अस्पताल में हंगामा कर रहे हैं। तब ड्यूटी अफसर ने कहा कि परिवार वाले तो यहां बैठे हैं, हंगामा कौन कर रहा है? उधर कई बार मांगने के बाद भी अस्पताल की ओर से परिजनों को एंजियोग्राफी की सीडी तक नहीं दिखाई जा रही।
उधर पुलिस ने अभी तो कोई लापरवाही का मुकदमा दर्ज नहीं किया, जबकि 25 जुलाई को बच्ची की मौत हो चुकी। केवल प्राथमिकी लेकर अपने पास रख ली है। सवाल खड़ा होता है इतना संगीन मामला है पुलिस को जांच का समय क्यों नहीं मिल रहा? क्या डॉक्टर का कोई रिश्तेदार ‘खाकी डिपार्टमेंट’ से ताल्लुक रखता है? क्या पुलिस ने डॉक्टर को क्लीन चिट दे दी है?