अनुवाद करना चुनौतीपूर्ण, अनुवादक ने किया न्याय: प्रो. चारण

बीकानेर, । राजस्थानी मोट्यार परिषद द्वारा स्टेशन रोड स्थित जोशी होटल में साहित्यकार डॉ. गौरी शंकर प्रजापत द्वारा बंगाली से राजस्थानी भाषा में अनुदित उपन्यास ‘तजरबो’ का लोकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया गया। लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने की। मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ. अर्जुन देव चारण तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. प्रशांत बिस्सा रहे। पत्रवाचन हरीश बी. शर्मा ने किया।
बंगाली साहित्यकार दिव्येंदु पालित के बंगाली उपन्यास ‘अनुभव’ को साहित्य अकादमी नई दिल्ली से सन 1998 में पुरस्कार मिल चुका है। इसका राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया गया है। यह केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ है।
मुख्य अतिथि प्रो. चारण ने कहा कि साहित्य अकादमी हमेशा अन्य भाषाओं के साहित्य को अधिक से अधिक राजस्थानी भाषा में प्रकाशित करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि अनुवाद सांस्कृतिक रूपांतरण है। यह एक भाषाई संस्कृति का दूसरी भाषाई संस्कृति में गमन है। अनुवाद के माध्यम से एक भाषा की कृति दूसरी भाषा में पहुंचती है। डॉ गौरीशंकर ने यह कार्य बखूबी किया है।
कार्यक्रम अध्यक्ष आचार्य ने कहा की अनुवाद की सबसे बड़ी चुनौती अनुवाद में उसकी पुनर्रचना है। अगर वह पुनर्रचना नहीं हो पाती तो वह अपना प्रभाव छोड़ने में सफल नहीं हो सकती। अनुवाद की सृजनात्मकता ही इसमें है कि वह नया सृजन बनकर उभरे। डॉ. प्रजापत ने बंगाली उपन्यास का राजस्थानी भाषा में अनुवाद कर एक नया सृजन किया है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. बिस्सा ने कहा कि अनुवाद करना बहुत कठिन कार्य है। पराई भाषा को अपनी मातृभाषा में उकेरना परकाया में प्रवेश जैसा होता है।
साहित्यकार हरीश बी. शर्मा ने पत्र वाचन करते हुए उपन्यास की महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित किया। इसमें विदेश में रहने वाली भारतीय नारी के जीवन संघर्ष की कहानी है।
कार्यक्रम में डॉ. हरी राम विश्नोई, राजेश चौधरी, प्रशांत जैन, राजेश विश्नोई, योगेश व्यास राजस्थानी ,आनंद मस्ताना, जितेश शर्मा और सोनल प्रजापत आदि मौजूद रहे।