बीकानेर- ओम एक्सप्रेस
पर्यावरण दिवस पर संस्था ‘दी बिश्नोईस’ की तरफ से “पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार की रणनीतियाँ और गुरु जम्भेश्वर जी की शिक्षाएं” विषय पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन 04 से 06 जून तक किया गया, जिसमें भारत सहित विभिन्न देशों के वक्ताओं ने जुड़कर संगोष्ठी के विषय पर गहन विचार विमर्श किया।
संगोष्ठी के मुख्य संयोजक विकास बिश्नोई और प्रतीक बिश्नोई ने बताया कि इस संगोष्ठी के तीन दिनों में कुल सात सत्रों का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र में मुख्य वक्ता के तौर पर फ्रांस से फ्रैंक वोगल और जोधपुर से खम्मुराम बिश्नोई के साथ भारतीय वायुसेना से विजय कुमार बिश्नोई ने जुड़कर कोरोना महामारी में पर्यावरण में सुधार, गुरु जम्भेश्वर जी की शिक्षाओं की प्रासंगिकता, फ्रांस के मेट्रो स्टेशन पर बिश्नोई समाज की प्रदर्शनी, प्लास्टिक प्रदूषण आदि विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
दूसरे सत्र में मुम्बई से जुड़े मीडिएटर और फ़िल्म निर्देशक महेश मुसाफिर ने विभिन्न कहानियों के माध्यम से श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का कार्य किया। साथ ही उन्होंने गुरु जम्भेश्वर के कथन “पहले क्रिया आप कमाइए, तो औरां न फरमाइए” पर भी विस्तार से उद्बोधन दिया।
संगोष्ठी के तीसरे सत्र में बीकानेर के डूंगर महाविद्यालय में कार्यरत और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सम्मानित डॉ श्याम सुंदर जाणी ने अपने संबोधन में गुरु जाम्भोजी के नियमों और वाणी की कोरोना समय में उपादेयता, अपने पर्यावरण के कार्यों सहित संगोष्ठी के विषय पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने समाज से पर्यावरण क्षेत्र में योगदान देने बारे भी आह्वान किया। इस सत्र में उनके राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित होने की वीडियो भी सभी दर्शकों, श्रोताओं को दिखाई, जिसे सभी ने अत्यधिक पसंद किया।
संगोष्ठी के चौथे सत्र में ग्रेटर नोयडा से आए पर्यावरणविद और आरटीआई कार्यकर्ता विक्रांत तोंगड ने पर्यावरण, जल संरक्षण आदि मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने पेड़ों की कटाई को किस प्रकार रोका जाए, के बारे में भी बताया। उन्होंने युवाओं को पर्यावरण के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सलाह भी दी।
संगोष्ठी के अंतिम दिन पांचवे सत्र में कनाडा से गिनेटे लेफ़्लेउर बिश्नोई ने संगोष्ठी में शिरकत की। उल्लेखनीय है कि गिनेटे लेफ़्लेउर ने कुछ वर्ष ही गुरु जाम्भोजी की शिक्षाओं से प्रभावित होकर बिश्नोई पंथ अपनाया था। संगोष्ठी के अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि वह जन्म से तो बिश्नोई नहीं है, लेकिन कर्मों से बिश्नोई है और वह बिश्नोई होने पर गर्व महसूस करती है। उन्होंने कहा कि आज जरूरत है कि सभी आज गुरु जम्भेश्वर जी के नियमों को माने, तभी आज धरती सुरक्षित रह सकती है। उन्होंने बिश्नोई पंथ के पर्यावरण संरक्षण के योगदास की भी सराहना की।
संगोष्ठी के छठे और अंतिम सत्र में गाजियाबाद से प्रसिद्ध पर्यावरणविद ग्रीनमेन विजयपाल बघेल ने अपना संबोधन देते हुए यूएनओ द्वारा खेजड़ली बलिदान के दिन को पर्यावरण दिवस मनाने की मांग को पुनः दोहराया। उन्होंने अपनी संस्था द्वारा हरित सत्याग्रह आंदोलन के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आज वैज्ञानिक हर चीज विज्ञान से बना सकता है, परन्तु ऑक्सीजन और जल वह नहीं बना सका और न बना सकेगा। उन्होंने कहा कि गुरु जम्भेश्वर जी दुनिया के पहले पर्यावरणविद थे, जिन्होंने आज से 550 वर्ष पूर्व ही आज की भयानक आपदाओं को भांप लिया था और उनसे बचने के लिए अपनी वाणी और 29 नियम रूपी सुरक्षा कवच प्रदान किया।
संगोष्ठी के समापन सत्र में संस्था “दी बिश्नोईस” के संरक्षक धनराज गोदारा और पृथ्वी सिंह बैनीवाल ने धन्यवाद ज्ञापन में सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने भविष्य में भी इसी प्रकार के आयोजन की इच्छा भी जताई।