मोदी सरकार पर इस सियासी धरने-प्रदर्शन का कितना असर होता होगा, यह तो वह ही जाने लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि सीएए को कानून बने एक माह से ऊपर हो चुका है लेकिन इसका विरोध अनवरत जारी है। धीरे-धीरे यह विरोध “विरोध” की सीमाओं को लांघ कर हताशा और निराशा से होता हुआ अब विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है। शाहीन बाग का धरना इसी बात का उदाहरण है। अब लखनऊ का घंटाघर पार्क का नाम भी इसमें शामिल हो गया है। यहां से गुजरना भी अब आसान नहीं रह गया है। अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए कुछ लोग या दल किस हद तक जा सकते हैं यह धरने इस बात का प्रमाण है। दरअसल, विपक्ष आज बेबस है क्योंकि उसके हाथों से चीजें फिसलती जा रही हैं।
जिस तेजी और सरलता से मौजूदा सरकार इस देश के सालों पुराने उलझे हुए मुद्दे जिन पर बात करना भी विवादों को आमंत्रित करता था, सुलझाती जा रही है, विपक्ष खुद को मुद्दाविहीन पा रहा है। और तो और वर्तमान सरकार की कूटनीति के चलते संसद में विपक्ष की राजनीति भी नहीं चल पा रही जिससे वो खुद को अस्तित्व विहीन भी पा रहा है। शायद इसलिए अब वो अपनी राजनीति सड़कों पर ले आया है। खेद का विषय है कि अपनी राजनीति चमकाने के लिए अभी तक विपक्ष आम आदमी और छात्रों का सहारा लेता था, लेकिन अब वो महिलाओं-बच्चों को अपना मोहरा बना रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस देश की मुस्लिम महिलाएँ और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार बन गये हैं क्योंकि शाहीन बाग हो या फिर लखनऊ का घंटाघर पार्क दोनों जगह का मोर्चा महिलाओं के ही हाथ में है।
दरअसल सीएए कानून का विरोध तो एक बहाना है असल तो किसी न किसी बहाने यह मोदी सरकार का विरोध है |मोदी विरोध के चलते ऐसे-ऐसे मुद्दों को हवा दी जा रही है जिसका देश की जनता से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन उसको लेकर देश में अशांति फैलाई जा रही हैं। यह सिलसिला 2014 में मोदी की जीत से शुरू हुआ था और अभी तक जारी हैं। वैसे, यहां यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस दिन यह तय हो गया था कि अबकी बार मोदी सरकार बनेगी तभी से देश को कभी राफेल के नाम पर तो कभी तीन तलाक को लेकर भड़काया गया।
सर्जिकल स्ट्राइक पर सबूत मांगा गया। अयोध्या मसले को हवा दी गई। कश्मीर से धारा 370 हटाने के नाम पर देश को गुमराह किया गया। अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा हैं, फ्री कश्मीर के नारे लगते हैं। मुसलमानों को भयभीत बताया जाता है। पाकिस्तान जाकर कांग्रेस के एक नेता मोदी को हटाने के लिए मदद मांगते हैं। विरोध का यह सिलसिला अब सीएए, एनपीआर एवं एनआरसी पर आकर अटक गया है।
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