– प्रतिदिन। -राकेश दुबे

आज दीपावली है, रोशनी का उत्सव । मन में उमंग नहीं है, रस्म के लिए दीया, बाती, तेल सब जुटाया है समझ नहीं आ रहा वो उल्लास कहाँ से लाऊं जो हमेशा प्रफुल्लित करता था ।कोविड-१९ ने जो कहर बरपाया उससे देश में लाखों जाने चली गई । देश में कई लोग रोजी रोटी से महरूम हो गये ।अपना देश तो क्या सारा विश्व अब तक इस महामारी को कोई तोड़ नहीं खोज पाया। इसका कोई न कोई हल जरुर निकलेगा ।लेकिन हमारे देश में इससे इतर जो माहौल वर्तमान में बनता दिख रहा है, वह दुराव, दूसरों से घृणा करना, असहमति के लिए किसी तरह की सहिष्णुता न रखना है ।कुछ मित्र इस परिदृश्य को निरपेक्ष भाव से महसूस कर रहे हैं,तो ज्यादातर मित्र पिछले कुछ सालों से परेशान हैं। समय-समय पर हम में से कुछेक ने एक-दूसरे से आशंकाएं सांझा की हैं, हम सबका यह मानस राजनेताओं के भाषण-लेखों, धार्मिक और सांस्कृतिक अगुवाओं की बातें समाज को तोड़ने की दिखती प्रवृत्ति के कारण ही भयग्रस्त है ।

यह सब देश को किस ओर ले जा रहा है? यह विषय गहराई से मनन करने का है कि वास्तव में हम आज क्या बनाने जा रहे हैं, किन शक्तियों और उनके निरंकुश स्वभाव को खुला छोड़ने जा रहे हैं? दीया जलाने की जरुररत है, जिससे खुद का मन, समाज और देश आलोकित हो सके।
आज, एक बार फिर से विघटनकारी शक्तियां समाज में वैसे ही राक्षस बनाना चाहती हैं, जो हमेशा समाज और देश को बांटते रहे है और हम फिर इतिहास के उसी चौराहे पर पुनः आकर खड़े हो गए हैं, जिसका अंतिम परिणाम देश का एवं दिल का बंटवारा है।अधिसंख्य लोग नहीं जानते देश और ये प्रदेश किस रास्ते पर जाएगा। इस घड़ी में अब यह आपकी निगहबानी पर निर्भर है कि आप अपने दायित्वों के साथ देश और देश के कानून के प्रति पूर मन से वफादार रहें । दीपावली पर मेरा यह अनुरोध विशाल भारतीय समाज से है।
देश के पिंड में सामाजिक एकता की उर्जा है, आजादी की लड़ाई में सामाजिक एकता की उर्जा की अहमियत को सबने महसूस कर लिया था और आज की आज़ादी उसी का परिणाम है ।आज हम दूसरी जंग लड़ रहे हैं । यह जंग आर्थिक तंगहाली से मुक्ति की है । यह दुराव, दूसरों से घृणा करना, असहमति के लिए किसी तरह की सहिष्णुता न रखना है ।इस जंग की राह के रोड़े हैं। विपरीत आचरण करते लोग अपने को गाँधी जी का अनुयायी कहने से भी गुरेज नहीं कर रहे है । गांधीजी के लिए सहिष्णुता सामाजिक एकता की कुंजी थी। दुर्भाग्य से आज हम अपने समाज में सबसे अधिक सहिष्णुता का अभाव ही देख रहे हैं और यही हमारी अनेक समस्याओं की जड़ है। कोई भी ऐसा समाज जिसमें सहनशीलता का गुण न हो, उससे प्रगति की आशा नहीं की जा सकती ।अब असहिष्णुता का आलम यह है कि विदेश में घटी किस घटना को केंद्र बना कर हमारे देश भारत में प्रदर्शन होता है और कुछ लोग इसका समर्थन भी करते हैं।

देश के स्वातंत्र्य केलिए मशाल से जले हमारे पूर्वजो का सपना था स्वाधीन भारत में एकता, सद्भाव और सौहार्द हर कीमत पर कायम रहे ।आज देश के सभी समुदायों के नेताओं को एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखना चाहिए और ऐसे प्रयास करने चाहिए कि समाज में एकता कायम रहे। आज तो यह सम्पर्क और एकता एक दूसरे के काले कारनामे ढंकने तक सीमित रह गई है।हम अपने समाज में जिस एकता की कामना करते हैं वह तभी कायम रह सकती है जब हम दूसरे समुदाय के लोगों के प्रति सम्मान और उदारता का भाव रखें। यह लोकतंत्र के लिए भी आवश्यक है।
दीपावली का दीया जलाने से पहले आज हमें अपने अंदर झांकने की जरूरत है। अंदर कहीं प्रकाश का बिंदु अब भी प्रकश पुंज बनने को कसमसा रहा है। बुझे मन से ही सही, कांपते हाथों से कुछ दीये जलाता हूँ । पहला दीया – देश के नाम, मेरा देश परम वैभव को प्राप्त हो । दूसरा दीया- उन सब पूर्वजों के नाम जिन्होंने, हमें आज़ाद देश दिया।तीसरा दीया- उन सब देशवासियों के नाम जो विश्व के किसी कौने में भारत का परचम लहरा रहे हैं ।देश में अँधेरे का खौफ दिखाने वालों को आपका नन्हा दीया परास्त कर सकता है ।तो आप ही एक दीया जलाओ, देश में अँधेरा गहरा रहा है !