

लॉक डाउन -४ में हर घर चिन्तन शिविर बन गया है | ६ माह पूर्व गृहस्थी बनाने वाले दम्पति हो या पांच दशक से साथ निभाते आ रहे जोड़े, सबकी पहली चिंता यह है आगे के दिन कैसे कटेंगें ? ठेठ भारत के सोच और पश्चिम के सोच का भारत पर प्रभाव इस बात की दुविधा को और बढा रहा है | दुष्काल घोषणा के पहले जो लोग कारोबार कर रहेथे , उन्हें कारोबार को दोबारा जमाने की चिंता है । जो नौकरी में लगे थे, उन्हें नौकरी बचाने, तनख्वाह कटने या उसके न बढ़ने की चिंता है, जिनको किराया, कर्ज की किस्तें या कोई और भुगतान करना है, उनकी चिंता आगामी आपूर्ति को लेकर है । घर का खर्च, बच्चों के स्कूल की फीस, तरह-तरह के बिल और कहीं कोई मुसीबत आ पड़ी, तो ये सारी चिंताएं आज घरों में चिन्तन के विषय बन गये हैं | सबसे ज्यादा झटका उन्हें लगा है, जो दुष्काल के पूर्व की अपनी योजनाओं को अंतिम सत्य मान चुके थे |




इसके बाद आपको हिसाब लगाना है कि कुल खर्च कितना है और आपके पास उसे पूरा करने का इंतजाम क्या शेष बचा है, इसके तीन तरह के नतीजे निकल सकते हैं। या तो आप पाएंगे कि आपके पास अपनी बचत, पीएफ, पेंशन और संपत्ति या निवेश से आने वाली रकम मिलाकर महीने का खर्च भी पूरा हो जाएगा और ऊपर से बचत भी होगी। यदि ऐसा है, तो आप फिलहाल चैन की सास लें। दूसरी स्थिति यह हो सकती है, आप पाएं कि खर्च और आमदनी का तराजू करीब-करीब संतुलित है, कभी इधर कभी उधर की स्थिति है, यानी गुजारा तो हो जाएगा, लेकिन थोड़ी समझदारी से खर्च करें । तीसरी स्थिति सबसे चिंताजनक स्थिति तब बनेगी जब यह कि हमें पता चले कि सब कुछ जोड़ने के बाद भी उतने पैसे का इंतजाम नहीं हो पाएगा, जितना हम हर महीने खर्च करते रहे हैं। यह स्थिति ज्यादातर लोगों के साथ होगी |लॉक डाउन के बाद खुलने वाला बाज़ार महंगा होगा | वैश्विक रूप से अर्थ शास्त्री कह रहे हैं, आमदनी और घरेलु खर्च के बीच संतुलन बैठना मुश्किल होगा |


बैंक में एफडी पर इंटरेस्ट रेट घट रहा है। प्रॉपर्टी के दाम बढ़ने का सपना भी देखना मुश्किल है। “जो है उसी में सपरिवार खुश रहने और परिवार में सब कुछ बताने का समय आ गया है, यही इस दुष्काल की एक बड़ी सीख है |
