क्या कोई इंकार कर सकता है किआर्थिक गतिविधियों के पहिये को चलाने के लिए स्नेहक [लुब्रिकेंट ] जरूरी होता है | जो हमेशा सरकार मुहैया कराती हैं। इससे तमाम कारखाने और कारोबारी क्षेत्र सहजता से काम करते हैं। यह सर्व ज्ञात हकीकत है कि हमारे उद्योग, कृषि, सेवा और यहां तक कि घरेलू कामकाज तक किस हद तक गरीब-प्रवासी कामगारों पर निर्भर हैं। ये वे लोग हैं जो अत्यंत कम दैनिक वेतन पर गुजारा करते है। वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी में प्रवासी कामगारों की तादाद ३६ प्रतिशत थी। आज यह तादाद और अधिक होगी। यह कामगार वर्ग ज्यादातर देश के बड़े शहरों में स्थित है जो देश की कुल आबादी का ३० प्रतिशत है।
अगर यह ताल बिगड़ी तो संभलना मुश्किल होता है | जैसे महाराष्ट्र सरकार केंद्र से जी एस टी के १६००० हजार करोड़ चाह रही है |जैसे पीथमपुर के उद्ध्योग मध्यप्रदेश सरकार से १६०० करोड़ वापिसी की मांग कर रहे है, यह राशि भी किसी कर राशि का प्रतिदेय है |जैसे मध्यप्रदेश विंड एनर्जी आयकर से आनेवाले २.५ करोड़ की प्रतीक्षा कर रही है | ये कुछ उदाहारण है, देश के स्तर पर ऐसे कई मामले हैं | इन पर निर्णय या तो हो नहीं रहे हैं या टाले जा रहे हैं | इन राशियों से लाभान्वित होने वाला अंतिम बिंदु श्रमिक है |जो इन दिनों घोर संकट में है |
इसका एक दुखद पक्ष यह भी है कि इस दुष्काल के पूर्व ये जिन शर्तों पर काम करते थे वे पूरी तरह नियोक्ताओं के पक्ष में थीं। उन्हें उनकी सेवाओं के बदले बहुत कम भुगतान किया जाता। अब ये शर्तें बदल सकती हैं क्योंकि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि इन युवा प्रवासियों के बिना हालात कितने खराब हो सकते हैं। जब महामारी का असर कम होने लगेगा, तो हमें कुछ अहम मुद्दों का सामना करना होगा और उन्हें तत्काल हल करना होगा। मसलन सेवा शर्तें, उनके साथ होने वाला व्यवहार और उन्हें बेहतर भविष्य उपलब्ध कराने की बातें।इसमें धन और नीति दोनों लगेगी |
इनमें बड़ी तादाद में गरीब हैं । वे ऐसी सामाजिक परिस्थितियां बना सकते हैं जिनके गहन राजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ होंगे। ऐसे हालात में हिंसा की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। समझदारी का तकाजा यही है कि हम विभिन्न परिस्थितियों में सामने आने वाले विभिन्न परिदृश्यों पर विचार करें। ऐसी खतरनाक स्थिति से बचाव के उपाय किए जाएं। इन बातों को देखते हुए हमें नया सामाजिक समझौता कायम करना होगा जो श्रम शक्ति, उद्ध्योग और हमारी अर्थव्यवस्था के बीच की सहजीविता को स्वीकार कर सके। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकार को उन्हें मौजूदा संकट से निजात दिलाने के लिए वित्तीय तथा अन्य सहायता की पेशकश करनी चाहिए। इस दौरान लालफीताशाही न्यूनतम होनी चाहिए। सरकार को सभी स्तरों पर काम करते हुए चरणबद्ध तरीके से यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना चाहिए कि प्रवासी श्रमिक उद्योग और सेवा क्षेत्र के साथ तालमेल कायम करके अपने-अपने कार्यस्थल पर लौट आएं। हो सकता है इनमें से कुछ इकाइयां बंद हों और दोबारा शुरू नहीं की जा सकें। अन्य इकाइयों को सरकारी मदद की आवश्यकता हो सकती है। राज्य को यह प्रतिबद्धता भी जतानी चाहिए कि वह प्रवासी श्रमिकों को न्यूतनम वेतन और न्यूनतम काम सुनिश्चित कराएगा। उनका बीमा भी होना चाहिए। प्रवासी श्रमिकों के लिए आयुक्त जैसा सक्षम नियामक प्राधिकार होना चाहिए जो उनके हितों की रक्षा कर सके। राज्यों को भी ऐसे नियामक बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।