– कोरोना संक्रमण के ख़ौफ़ के बीच जुलाई से स्कूल खोलना होगा एक बड़ी चुनौती, खतरनाक भी हो सकता है !

– सरकार कर रही है विचार, लेकिन क्या अभिभावक भी हैं तैयार ? कितना उचित या अनुचित होगा जुलाई से स्कूल खोलना !

-बच्चों में इतनी समझ नहीं कि वे कर पाएंगे सोशल डिस्टेंसिंग व अन्य बचाव का पालन, घर पर अभिभावक करें बच्चों को तैयार
● तिलक माथुर केकड़ी -राजस्थान

कोरोना संक्रमण फैलने का सिलसिला अभी भी तेजी से जारी है भले ही सरकार ने कई तरह की छूट दे दी हो मगर खतरा अब भी चारों ओर मंडरा रहा है, लगातार संक्रमण के फैलने से लोग ख़ौफ़ज़दा हैं। सरकार द्वारा दी जा रही छूट के बाद जनजीवन सामान्य होता दिखाई दे रहा है, अधिकांश समझदार लोग इस संक्रमण से बचने के लिए सरकारी एडवाइजरी का पालन कर रहे हैं, लेकिन अब भी कई नासमझ हैं जो कोरोना के खतरे को भांपने के बावजूद गम्भीर नहीं हैं और सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क लगाने, सेनेटाइजेशन का ध्यान नहीं रख रहे। आखिर सरकार भी क्या करे, गत दो माह से लॉकडाउन से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया जिसे पटरी पर लाने के लिए सरकार को संक्रमण के खतरे के बीच जनजीवन को सामान्य करने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले लेने पड़ रहे हैं। सरकार द्वारा 25 मार्च से लगे देशव्‍यापी लॉकडाउन के बाद एक-एक कर सभी सेक्‍टरों को खोला जा रहा है। लेकिन क्या कोरोना संक्रमण के बढ़ते ग्राफ के बीच हर मामले में छूट देना खतरनाक साबित नहीं होगा यह चिंता का विषय है।

केंद्र सरकार ने लॉकडाउन 5 में राज्य सरकारों को अपने हिसाब से फैसला लेने को कहा है, जिसके बाद कई राज्यों में लॉकडाउन होने के बावजूद भी ज्यादातर सुविधाओं में छूट दे दी गई है जिससे संक्रमण फैलने का खतरा और बढ़ गया है। उल्लेखनीय है कि हर तरह की छूट के बीच जुलाई से शिक्षण संस्थानों को खोलने पर भी विचार किया जा रहा है लेकिन फिलहाल अभिभावक इसके बिल्कुल भी पक्ष में नहीं हैं। देशभर से अभिभावकों की आवाज उठ रही है, केंद्र सरकार से मांग की जा रही है कि जब तक कोविड-19 के हालात सुधर नहीं जाते या उसकी वैक्सीन तैयार नहीं हो जाती, तब तक स्कूल नहीं खोले जाने चाहिए। इधर केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि स्कूलों, कॉलेजों, कोचिंग सेंटरों और अन्य शिक्षण संस्थाओं को जुलाई में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ कोरोना वायरस के हालात की चर्चा के बाद खोला जाएगा। जुलाई से स्कूलों के खुलने की चर्चा से कई अभिभावक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनके बच्चे संक्रमण से स्कूल में कैसे सुरक्षित रह पाएंगे। क्या बच्चे स्कूल में सोशल डिस्टेंसिंग व मास्क लगाने का ख्याल रख पाएंगे, कौन रखेगा उनका ध्यान ? सबसे बड़ी बात तो ये है कि जब बड़े समझदार व्यक्ति ही संक्रमण से बचाव के लिए जारी सरकारी एडवाइजरी का पालन नहीं कर पा रहे तो बच्चे तो नासमझ हैं वो कैसे रखेंगे अपना ख्याल, कौन रखेगा उनका ध्यान।

अभिभावकों को एक सवाल जो परेशान कर रहा है वो ये है कि आखिर स्कूल स्टाफ इतने बच्चों का कैसे रख पायेगा ध्यान, वे बच्चों को कैसे करा पाएंगे बचाव का पालन, यह वास्तव में सम्भव नहीं है। अभिभावकों का कहना है कि जुलाई में स्कूलों को खोलना सरकार का सबसे गलत फैसला होगा। यह इस समय आग से खेलने जैसा होगा। हालांकि केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को अपने स्तर पर सावधानी बरतते हुए स्कूल खोलने का निर्णय लेने की बात कही है। मगर सरकारी व गैर सरकारी स्कूलों में गत वर्ष की बच्चों की संख्या देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना इतना आसान होगा ? यह स्कूलों के लिए भी बड़ी चुनौती होगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या स्कूल सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के लिए दो शिफ्ट चलाएंगे, अगर दो शिफ्ट में स्कूल चलेंगे तो क्या स्कूल स्टाफ बढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। स्कूल स्टाफ बढ़ेगा तो उसका भार क्या अभिभावकों को नहीं उठाना पड़ेगा। उधर संक्रमण से बचने के लिए समय-समय पर स्कूल को सेनेटाइज कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वैसे भी जुलाई वर्षा ऋतु का महीना होता है, यह मौसमी बीमारियों का संक्रमणकाल होता है। बच्चों में वैसे भी रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है ऐसे में संक्रमण का खतरा ज्यादा रहेगा। इन सभी का ध्यान रखते हुए सरकार को कुछ बिंदुओं पर गहनता से विचार करना होगा।

अभिभावकों को विश्वास दिलाना होगा कि उनके बच्चे स्कूल में पूर्णतः सुरक्षित रहेंगे, तभी ऐसे विकट हालातों में अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बारे में सोच पाएंगे। जानकारों का कहना है कि सरकार को इस मामले में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाते तब तक वर्तमान शैक्षणिक सत्र को ई-लर्निग मोड में जारी रखा जाना चाहिए। अगर स्कूल दावा करते हैं कि वर्चुअल लर्निग के जरिये वे अच्छा काम कर रहे हैं तो क्यों न इसे बाकी शैक्षणिक सत्र में भी जारी रखा जाए। वहीं अभिभावकों की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को कोरोना वायरस के बारे में सतर्क करें, उन्हें तरीके से समझाएं व बचाव के किये तैयार करें। इस मामले में बच्चों को सिर्फ़ भरोसा देने भर से काम नहीं चलेगा, उन्हें सशक्त बनाना होगा सशक्त बनाने से मतलब ये है कि उन्हें ये बताना होगा कि वो कौन से ऐसे क़दम उठाएं ताकि वो संक्रमित होने के ख़तरों को टाल सकें। हालांकि यह सभी के लिए बहुत बड़ी चुनौती है, गम्भीरता से सतर्क रहने की आवश्यकता है। जरा सी लापरवाही खतरनाक साबित हो सकती है।